त्रिवट क्या है ? अध्याय (8/22) Trivat Shaili kya hai ?

पिछले अध्याय में आपने जाना तराना क्या है ? इस अध्याय में आज हम जानेंगे त्रिवट क्या है ?

अध्याय 8 – ” त्रिवट ” | गायन के 22 प्रकार

  1. गायन
  2. प्रबंध गायन शैली
  3. ध्रुपद गायन शैली
  4. धमार गायन शैली
  5. सादरा गायन शैली
  6. ख्याल गायन शैली
  7. तराना
  8. त्रिवट
  9. चतुरंग
  10. सरगम
  11. लक्षण गीत
  12. रागसागर या रागमाला
  13. ठुमरी
  14. दादरा
  15. टप्पा
  16. होरी या होली
  17. चैती
  18. कजरी या कजली
  19. सुगम संगीत
  20. गीत
  21. भजन
  22. ग़ज़ल

त्रिवट क्या है ?

त्रिवट का अर्थ क्या है ?

जब किसी तराने में मृदंग के बोलों का प्रयोग किया जाता है , तो उस विशिष्ट गायन शैली को त्रिवट के नाम से बुलाया जाता है । यह हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के शास्त्रीय गान के मंच पर प्रदर्शित की जाने वाली एक गायन – शैली है ।

त्रिवट की उत्पत्ति

प्राचीनकाल में अलीक्रम प्रबन्ध के एक केवाड नामक प्रबन्ध से इस गायन शैली त्रिवट की उत्पत्ति मानी जाती है । दक्षिण में त्रिवट को एक अन्य नाम चोल्लुकेटु के नाम से पुकारा जाता है । इसकी उत्पत्ति के सन्दर्भ में ऐसा माना जाता है कि मृदंग , तबला आदि शैलियों के मिश्रण के परिणामस्वरूप हुआ है तथा त्रिवट रचनाएँ गुणीजनों द्वारा रची गई हैं ।

त्रिवट शैली की विशेषता क्या है ?

त्रिवट शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • त्रिवट शैली में तराना के समान ही सामान्यतः इसे भी द्रुत लय में गाए जाने का प्रचलन है । गायक द्वारा मृदंग अथवा पखावज के बोल जिस प्रकार विभिन्न लयों में गाए जाते हैं , वैसे ही बोल उसी लय में मृदंग अथवा पखावज वादक द्वारा बजाए जाते हैं इस प्रकार मृदंग के साथ गाए जाने पर अद्भुत रस का सृजन होता है । यह प्रक्रिया विशेष रूप से स्वर व लय प्रधान मानी जाती है ।
  • प्रबन्ध की दृष्टि से त्रिवट शैली केवल पाटादारों का स्वर व ताल प्रयोग की जाती है अतः इसमें पाट नामक अंग और परोक्ष रूप में स्वर व ताल नामक अंगों की गणना भी की जा सकती है ।
  • त्रिवट में कविता नहीं होती , अपितु तराने के बोलों को ही मृदंग या पखावज की सहायता से छन्दोबद्ध करके स्वर और ताल के साथ गाया जाता है ।

रस सिद्धान्त क्या है ? Ras Siddhant and Music.

आशा करता हूँ आप समझ गए होंगे कि त्रिवट क्या है ? आगे आने वाली जानकारियों के लिए Subscribe करें , Share करें अपने मित्रों के बीच और जुड़े रहे सप्त स्वर ज्ञान के साथ, धन्यवाद ।

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