गायन शैली इन हिंदी – विद्वानों ने संगीत को दो भागों में बांटा है पहला मार्गी संगीत और देशी संगीत । मार्गी संगीत हम उसे कहते हैं जिसके द्वारा लोग मोक्ष को प्राप्त करते थे । जबकि देशी संगीत वह है जो साधारण जनता द्वारा प्रयोग किया जाता है । देशी संगीत को गान भी कहते हैं ।
ताल के हिसाब से देखें तो संगीत पुनः मुख्यतः दो भागों में बांटा है पहला ताल बद्ध संगीत दूसरा ताल रहित संगीत ।
विषय - सूची
गायन शैली क्या है ? गायन शैली किसे कहते हैं ?
गायन शैली का मतलब क्या है ? गायन शैली का अर्थ है- गाने के तरीके ।
गायन शैली या गाने के तरीकों के आधार पर एक गीत दूसरे गीत से अलग होता है । जब भी हम किसी गायक को गाते सुनते हैं तो हम उसके गायन शैली को पहचानने की कोशिश करते हैं । हम उसके द्वारा गाए जा रहे गीत को पहचानते हैं और जान पाते हैं कि वह कौन सा गीत गा रहा है । गायन शैली पहचानने के लिए हमे गीत के भाग के बारे में जानना होगा ।
गीत की परिभाषा Definition of Geet
गीत – स्वर, लयबद्ध और तालबद्ध शब्दों के सुंदर समूह गीत कहलाता हैं । गीत में उपयोग किये गए शब्द बिना अर्थ वाले भी हो सकते हैं या अर्थ वाले भी होते हैं । भजन गीत ठुमरी ख्याल के शब्द अर्थ पूर्ण होते हैं वही तनन, देरे, नोम – तोम, तराने के शब्द बिना अर्थ के होते हैं ।
गीत / गाने के भाग Parts of Geet / Songs
नीचे गीत के कुछ प्रकार बताये गए हैं जिनका निर्माण कुछ विशेष चीजों और नियमो से हुआ है । उस विशेष तत्व, नियमों और तरीकों से गीत की एक शैली निर्मित हुई है और इस के लिए यह शब्द प्रयुक्त हुआ ” गायन शैली ” । इसे समझते हैं उससे पहले जानते हैं कि गीत के भाग कितने हैं ?
हर एक गीत को कुछ भागों में विभाजित किया गया है । जैसे – स्थाई, अंतरा, संचारी और अभाव ।
जैसा आपने ऊपर पढ़ा कि गीत कुछ कुछ ख़ास चीजों और तरीको से बना है । उन ख़ास तत्वों, तरीकों और नियमों का कितना उपयोग किया गया ? किन भागों का इस्तेमाल किया गया किन भागों का इस्तेमाल नहीं किया गया ? किस प्रकार से उस गायन शैली का निर्माण हुआ । आइये जानते हैं गायन शैली के कुछ प्रकार के बारे में –
गायन शैली के प्रकार
- ध्रुपद ( Dhrupad )
- धमार ( Dhamar )
- ख्याल ( Khayal )
- ठुमरी ( Thumri )
- टप्पा ( Tappa )
- लक्षण गीत ( Lakshan Geet )
- तराना ( Tarana )
- भजन और गीत ( Bhajan and Geet )
- चतुरंग ( Chaturang )
- त्रिवट ( Trivat )
- स्वरमालिका ( Swarmalika )
- होली ( Holi )
” ध्रुपद ” गायन शैली Dhrupad Gayan Shaili
ध्रुपद – ध्रुपद एक गंभीर प्रकृति का गीत है । इसे गाने पर हमारे कंठ और फेफड़े पर जोर पड़ता है ताकत लगती है इसलिए इस प्रकार के गीत को लोगों द्वारा मर्दाना गीत भी कहा जाता हैं । मध्यकाल में ध्रुपद का प्रचलन अधिक था किंतु वर्तमान लोगों की रूचि में परिवर्तन की वजह से ध्रुपद का स्थान ख्याल गायकी ने ले लिया ।
ध्रुपद के कितने भाग होते हैं ?
पहले के समय में ध्रुपद के 4 भाग थे 1.स्थाई, 2.अंतरा, 3.संचारी और 4.अभोग । अभी के समय में घटकर दो भाग ही शेष बचा है । इसलिए 2 भाग ही गायन में इस्तेमाल किया जाता है यह है 1.अंतरा और 2.स्थाई । इसके शब्द ज्यादातर ब्रजभाषा के होते हैं । इसमें वीर रस तथा श्रृंगार रस की प्रधानता होती है ।
प्राचीन समय में पखावज के साथ ध्रुपद की संगति होती थी, परन्तु इसका प्रचार अल्प होने के वजह से वर्तमान समय में तबले ने इसकी जगह ले ली है । अब ध्रुपद गायक तबले के साथ संगत करते हैं ।
ध्रुपद में पहले नोम – तोम का अच्छी तरह विस्तार से आलाप करते हैं । आलाप के 4 भाग होते हैं । तीसरे भाग से इसकी गति में वृद्धि की जाती है तथा गमक का प्रयोग तीसरे भाग से ही आरम्भ हो जाता है । इसमें गमक और मींड का प्रयोग अधिक होता है । द्रुपद में लयकारी को विशेष स्थान प्राप्त है । प्राचीन काल में द्रुपद गाने वालों को कलावंत कहा जाता था ।
” धमार ” गायन शैली Dhamar Gayan Shaili
धमार को होरी भी कहते हैं । यह भी गीत का एक प्राचीन प्रकार है । धमार में ज्यादातर राधा-कृष्ण तथा गोपियों द्वारा मनाई जा रही होली का विवरण मिलता है इसलिए लोग इसे होरी कहते हैं ।
ध्रुपद के जैसे ही धमार में नोम – तोम का अलाप विस्तार तथा लयकारी करते हैं । इसमें गीत के शब्दों को चुनकर दुगुन, तिगुन, चौगुन आड़ की लयकारी प्रदर्शित करते हैं । इसमें मींड और गमक का अधिक प्रयोग किया जाता है । संगीतज्ञ इसमें सरगम का भी उच्चारण करते हैं किंतु यह ख्याल गायकी के सरगम से भिन्न है । ध्रुपद के जैसे ही धमार के हर एक भाग में गंभीरता होती है । ध्रुपद के जैसे ही धमार में भी पखावज बजाने का चलन है पर आजकल इसकी जगह तबले ने ले लिया है ।
” ख्याल ” गायन शैली Khayal Gayan Shaili
ख्याल का शाब्दिक अर्थ होता है कल्पना । इस प्रकार के गीत में कल्पना की विशेष जरूरत होने के कारण इसका नाम ख्याल पड़ा । इसमें स्वरों को सजाने पर खास ध्यान दिया जाता है ।
ख्याल की परिभाषा – गीत का वह प्रकार जिसमें अलाप, तान, खटका, कण आदि अलंकारों द्वारा किसी राग में नियमों का पालन करते हुए भाव व्यक्त किया जाता है ख्याल कहलाता है । ख्याल में गले की तैयारी पर विशेष जोर दिया जाता है । इसमें गमक का उपयोग कम किया जाता है । ध्रुपद की भांति ख्याल में लयकारी पर जोर नहीं दिया जाता बल्कि स्वर के सौंदर्य पर ध्यान दिया जाता है । इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है ।
ख्याल के दो प्रकार विलंबित ख्याल और द्रुत ख्याल । विलंबित खयाल – इसे बड़ा ख्याल भी कहा जाता हैं इसे विलंबित लय में गाया जाता है इसलिए इसे विलंबित ख्याल कहा जाता है । ख्याल में शब्द कम होते हैं इसमें सिर्फ 2 भाग होते हैं 1.स्थाई और 2.अंतरा ।
द्रुत खयाल का मतलब होता है तेज अर्थात यह तेज गति से गाया जाता है । इसे छोटा ख्याल भी कहा जाता है । इसमें भी 2 भाग होते हैं स्थाई और अंतरा ।
” ठुमरी ” गायन शैली Thumri Gayan Shaili
ठुमरी गीत का वह प्रकार है जिसमें राग की शुद्धता को अलप महत्व दिया गया है लेकिन भाव और सौंदर्य पर ज्यादा जोर दिया गया है । इसमें शब्द का इस्तेमाल कम होता हैं । यह शृंगार रस प्रधान होती है । इसमें मींड और कण का विशेष प्रयोग होता है । ठुमरी गायक का कंठ मधुर और तेज होने पर गायन उपयुक्त और बेहतर माना जाता है ।
कुछ यादगार ठुमरियां :-
- याद पिया की आए
- ठाड़े रहियो ओ बांके यार
- इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा
- आपकी याद आती रही रात भर
- का करूं सजनी आए न बालम
- आन मिलो सजना
” टप्पा ” गायन शैली Tappa Gayan Shaili
टप्पा – टप्पा इस प्रकार के गीत के स्वर पंजाबी में होते हैं यह चंचल प्रकृति की होती है । यह शृंगार रस प्रधान गीत है । टप्पा के दो भाग हैं स्थाई और अंतरा इसमें । छोटी और पेंचदार तान का उपयोग अधिक होता है और आलाप का प्रयोग नहीं के बराबर होता है । इसे गाने वाले गायक का गला काफी तैयार होना चाहिए । इसमें खटका, मुर्की आदि का प्रयोग बहुत अधिक होता है ।
” लक्षण गीत ” गायन शैली Lakshan Geet Gayan Shaili
लक्षण गीत – कोई गीत जिस राग में हो उस राग का पूरा गुण उस गीत में होता है यह लक्षण गीत कहलाता है । इसमें शुरुआती विद्यार्थियों का गीत के माध्यम से राग का परिचय कराया तथा राग कंठस्थ कराया जाता है । लक्षण गीत में भी ख्याल के जैसे ही दो भाग हैं स्थाई और अंतरा तथा गायन शैली ख्याल के जैसी ही होती है ।
” तराना ” गायन शैली Tarana Gayan Shaili
तराना – नोम – तोम, तनन, नादिर, दिर, दानी, तदानी आदि वर्ण इस प्रकार के गीत में होते हैं । तराना ख्याल के सभी तालों में तथा सभी रागों में गाया जाता है । मध्य लय से तराने की गति धीरे-धीरे बढ़ते बढ़ते अपने अत्यधिक गति पर आकर समाप्त कर दी जाती है । तराने का मुख्य कार्य तैयारी, लयकारी और उच्चारण का अभ्यास करना है । तेज गति का तराना गाने से वाणी में स्वच्छता आती है । तराना को छोटा ख्याल के बाद गाया जाता है । तराना की गायन शैली ख्याल के समान ही होती है ।
” भजन और गीत ” Bhajan or Geet Gayan Shaili
भजन और गीत – इस प्रकार के गीत में आदिशक्ति ईश्वर की वंदना होती है वह भजन कहलाते हैं तथा जो कविताएं लय और ताल में बांधी जाती है वह गीत कहलाती है । इसमें राग का बंधन नहीं होता है ।
” चतुरंग ” गायन शैली Chaturang Gayan Shaili
चतुरंग – इसमें 4 वस्तुओं का मिश्रण हैं। चतुरंग में 1. ख्याल के शब्द 2 . तराना 3 . तबले के बोल तथा 4 . सरगम मिले हुए रहते हैं । यह ख्याल की भांति गाया जाता है ।
” त्रिवट ” गायन शैली Trivat Gayan Shaili
त्रिवट – यह तीन चीजों का मिश्रण होता है 1. तबला के बोल 2. गीत के शब्द तथा 3. सरगम ।
” स्वरमालिका ” Swarmalika Gayan Shaili
स्वरमालिका – राग में प्रयोग किए जाने वाले स्वरों की ताल बाद रचना स्वरमालिका कहलाती है । यह सभी राग में पाई जाती है तथा लगभग प्रत्येक ताल में हो सकती है । इसे सरगम अथवा सुरावर्त भी कहते हैं । इसका मुख्य उद्देश्य आरंभिक विद्यार्थियों को स्वर तथा रागों का ज्ञान बोध कराना है ।
” होली ” Holi Gayan Shaili
होली – यह ठुमरी के जैसे गाई जाती है तथा दीपचंदी ताल पर मुख्य रुप से काफी राग में गाई जाती है इसमें भगवान श्रीकृष्ण तथा राधा के द्वारा होली का उल्लेख मिलता है ।
यह भी जानें
श्रुति स्वर व्यवस्था / स्वर विभाजन क्या है ? श्रुति किसे कहते हैं ? 22 श्रुतियों के नाम हैं ?
निचे दिए लेखों से आप गायन शैली की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं –
- गायन
- प्रबंध गायन शैली
- ध्रुपद गायन शैली
- धमार गायन शैली
- सादरा गायन शैली
- ख्याल गायन शैली
- तराना
- त्रिवट
- चतुरंग
- सरगम
- लक्षण गीत
- रागसागर या रागमाला
- ठुमरी
- दादरा
- टप्पा
- होरी या होली
- चैती
- कजरी या कजली
- सुगम संगीत
- गीत
- भजन
- ग़ज़ल
उम्मीद करता हूँ आपको यह अध्याय पसंद आया होगा । आगे इस वेबसाइट पर मै संगीत से जुड़ी सारी जानकारी आपसब तक पहुँचाता रहूँगा । “ सप्त स्वर ज्ञान ” से जुड़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद ।