विषय - सूची
अध्याय- 9 ( चतुरंग ) | गायन के 22 प्रकार
- गायन
- प्रबंध गायन शैली
- ध्रुपद गायन शैली
- धमार गायन शैली
- सादरा गायन शैली
- ख्याल गायन शैली
- तराना
- त्रिवट
- चतुरंग
- सरगम
- लक्षण गीत
- रागसागर या रागमाला
- ठुमरी
- दादरा
- टप्पा
- होरी या होली
- चैती
- कजरी या कजली
- सुगम संगीत
- गीत
- भजन
- ग़ज़ल
आशा करता हूँ आपने पिछले अध्यायों को भी पढ़ा होगा इस अध्याय में हम जानेंगे चतुरंग क्या है ? आइये जानते हैं –
चतुरंग क्या है ?
चतुरंग यह हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के शास्त्रीय गान के मंच पर प्रदर्शित की वाली एक शैली है । इसके नाम से ही ज्ञात होता है कि इसमें चार अंगों सम्मिश्रण है । अतः यह चार अंगों के सहयोग से निर्मित गायन शैली चतुरंग को मुख्य रूप से ख्याल अंग के साथ गाया जाता है , परन्तु इसमें ख्याल की अपेक्षा तानों का प्रयोग कम या अल्प किया जाता है ।
चतुरंग की उत्पत्ति
चतुरंग की उत्पत्ति सम्भवतः तीन प्रकार की चतुरंग की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विद्वानों में मतभेद हैं , किन्तु ऐसा माना जाता है कि सरगम पुस्तक के लेख में बताया गया है कि शैलियाँ एक ही बन्दिश में बाँधकर शिष्यों को बताने के लिए ही संगीत पण्डिता ने चतुरंग का आविष्कार किया ।
चतुरंग के आविष्कारिक काल मतंग काल से उत्पन्न माना जाता है अर्थात मतंग काल इसका प्रचलन को आरम्भ हुआ । अतः चतुरंग शैली मतंगमुनि के काल से चली आ रही है ” क्रमिक पुस्तक ” मालिका के तीसरे भाग में राग देश में चतुरंग गीत प्रकार दिया गया है , जिसकी रचना बन्दिश के तीन घटकों में हुई ।
चतुरंग के चार अंग क्या हैं ?
चतुरंग में चार अंग होते हैं , जिसके परिणामस्वरूप यह चतुरंग के नाम से जाना जाता है । इसमें सर्वप्रथम पद , तराने के बोल , सरगम और अन्त में तबला या मृदंग के पाट अथवा किसी अन्य भाषा के शब्द रहते हैं । इनका वर्णन इस प्रकार है ।
- प्रथम अंग इसमें गीत अथवा कविता के शब्द होते हैं ।।
- दूसरा अंग यह तराना कहलाता है , इसमें तराने के बोलों का गायन किया जाता है ।
- तीसरा अंग यह सरगम कहलाता है , इसमें विशिष्ट राग की सरगम गाई जाती है ।
- चौथा अंग यह मृदंग व पखावज का होता है , इसमें मृदंग व पखावज के बोलों की छोटी – सी परन का गायन किया जाता है ।
चतुरंग की विशेषता
- यह द्रुत लय प्रधान गायन – शैली है । इसमें छोटे – छोटे आलाप , बोल आलाप तथा बहलावे होते हैं ।
- इसमें भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष का अधिक महत्त्व होता है । यह अधिकतर चंचल प्रकृति के रागों में ही गाई जाती है ।
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