संगीत के सुरों को ‘ सरगम ‘ कहा जाता है । सरगम शब्द प्रथम चार सुरों के नामों के प्रथम अक्षर के मेल से बनाया गया है । सरगम को एक प्रकार से संक्षिप्तीकरण भी….
चतुरंग यह हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के शास्त्रीय गान के मंच पर प्रदर्शित की वाली एक शैली है । इसके नाम से ही ज्ञात होता है कि इसमें चार अंगों सम्मिश्रण है । अतः यह चार अंगों के….
जब किसी तराने में मृदंग के बोलों का प्रयोग किया जाता है , तो उस विशिष्ट गायन शैली को त्रिवट के नाम से बुलाया जाता है । यह हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के शास्त्रीय गान….
क्या है तराना ? तराना शब्द पर ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने पर हिन्दुस्तानी संगीत की विशेषताओं का पता चलता है । तराना का सम्बन्ध स्वर और वर्ण दोनों से होता है….
ख्याल का आविष्कार यह गीत शैली कब से प्रारम्भ हुई , इसके विषय में दो मत पाए जाते हैं । एक तो यह कि इसका आविष्कार ई . 14 में अमीर खुसरो ने किया और दूसरा यह कि….
सादरा अर्द्धशास्त्रीय संगीत और लोकगीत के बीच की कड़ी है गायन की यह शैली दादरा से बहुत मिलती – जुलती है । सादरा को अधिकतर कथक गायक गाते हैं । कहरवा , रूपक….
– जिसमें होरी की धूमधाम के साथ गीत का गायन होता है , वह धमार गीत कहलाता है । यह ध्रुपद शैली से गाया जाने वाला एक गीत है । चौदह मात्राओं की धमार ताल के….
ध्रुपद गायन शैली शास्त्रीय संगीत की प्राचीन गायन शैली है । प्राचीन प्रबन्ध गायकी से ही ध्रुपद गायकी की उत्पत्ति मानी जाती है । स्वर , ताल , शब्द एव लय युक्त शैली ध्रुपद कहलाती है….
भारतीय संगीत में प्रबन्ध एक प्राचीन गायन शैली है । भरतकाल में ध्रुवगीत का अस्तित्व था और इससे पूर्व शुद्ध गाथा , पाणिका , नायक गीत शैलियों थीं । मतंग के समय में प्रबन्ध गीत – शैली….
गायन के 22 प्रकार- दोस्तों/ पाठकों गायन एक ऐसी क्रिया है जिसमें , स्वर की सहायता से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है । गायन को कण्ठ संगीत भी कहते हैं अर्थात् जो कण्ठ….
उत्तरी व दक्षिणी गीत शैली दोनों पद्धतियों में अपनी शैलियाँ तथा उनके प्रस्तुतीकरण का अपना विशेष ढंग है । दक्षिण में 17 वीं शताब्दी में पण्डित वेंकटमखी के समय तक….