उत्तरी दक्षिणी गीत शैली- तुलना , बन्दिशों का स्वरूप Geet Shaili

उत्तरी व दक्षिणी गीत शैलियों की तुलना

उत्तरी व दक्षिणी गीत शैली दोनों पद्धतियों में अपनी शैलियाँ तथा उनके प्रस्तुतीकरण का अपना विशेष ढंग है । दक्षिण में 17 वीं शताब्दी में पण्डित वेंकटमखी के समय तक प्रबन्धों का अस्तित्व था , इसके बाद प्रबन्ध एकाएक लुप्त हो गए ।

कर्नाटक संगीत में कृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है , क्योंकि इसमें गायक तथा वादक को अपनी प्रतिभा दिखाने का सुअवसर प्राप्त होता है ।

कृति के मुख्य अंग हैं पल्लवी , अनुपल्लवी तथा चणम उत्तर के बड़े ख्याल के समान दक्षिण में मध्यलय कलाकृति तथा छोटे ख्याल के समान द्रुत कलाकृति प्रचलित है ।

दक्षिणी संगीत की गायकी के दो मुख्य अंग हैं- कल्पना स्वर और निरबल निरबल उत्तरी संगीत की बोलतानों के समान है और कल्पना स्वर कर्नाटक संगीत की अपनी विशेषता है ।

उत्तरी संगीत में बन्दिश में कम शब्दों का प्रयोग होता है , परन्तु कर्नाटक में रचनाओं में शब्दों का भण्डार होता है ।

उत्तरी संगीत में ख्याल शैली सर्वप्रसिद्ध है , इसके अतिरिक्त ध्रुपद धमार , ख्याल , ठुमरी , टप्पा , तराना अनेक शैलियाँ प्रचलित हैं । रागों के प्रदर्शन के समय रस भाव के साथ – साथ आवश्यक सभी लक्षणों पर ध्यान दिया जाता है ।

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दोनों पद्धतियों में स्वरों के उच्चारण की भिन्नता होने के कारण समानता होने पर भी प्रस्तुती भेद होने लगा । दक्षिण में हर एक स्वर के साथ उसके ऊपर के स्वर को छूकर अर्थात् कण स्वर लगाकर उच्चारण करने की रीति बन गई है ।

गायन शैली क्या है ? Gayan Shaili के प्रकार ? Thumri, Khayal, Dhrupad, Tarana

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उत्तरी एवं दक्षिणी बन्दिशों का स्वरूप

उत्तरी पद्धति शुभपन्तुवराली कर्नाटकी पद्धतिउत्तरी पद्धति शुभपन्तुवरालीकर्नाटकी पद्धति
अलंकारअलंकारम्मध्यलय ख्यालमध्यलय कलाकृति
लक्षणगीतलक्षणगीतम्तरानातिल्लाना
सरगमस्वरजातिठुमरीपदम्
आलापआलापनम्भजनभजन
द्रुत ख्यालद्रुत कलाकृतिटप्पाजावलि
उत्तरी एवं दक्षिणी बन्दिशों का स्वरूप

इस प्रकार दक्षिणी संगीत के कीर्तनम् , जावलि , कृति , तिल्लाना , लय , ताल तथा रस भाव की दृष्टि से उत्तरी संगीत पद्धति से मिलते – जुलते हैं ।
उत्तरी संगीत में स्वर प्रधान है तथा दक्षिणी पद्धति में शब्द एवं स्वर का समान महत्त्व है तन्तु वाद्यों के वादन के सम्बन्ध में एक बात महत्त्वपूर्ण है कि दक्षिणी पद्धति में वाद्यों पर भी गीत ही बजाए जाते हैं स्वतन्त्र वादन शैली नहीं ।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण और उत्तर के संगीत की आधुनिक रचनाओं में प्रायः समानता मिलती है , इसके निर्माण में मध्य युग के प्रबन्ध काफी हद तक आदर्श रहे हैं ।

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