Gwalior Gharana – ग्वालियर घराना हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सबसे प्राचीन घराना है ।
ग्वालियर घराना हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सबसे प्राचीन घराना है । यह घराना ख्याल गायिकी का सर्वप्रसिद्ध घराना है ।
विषय - सूची
ग्वालियर घराना – ख्याल गायकी
- ग्वालियर घराने हेतु यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि ख्याल की उत्पत्ति लखनऊ में हुई , दिल्ली में इसे संरक्षण मिला और ग्वालियर में आकर यह गायिकी बुलन्दियों के शिखर पर पहुँच गई । वास्तव में यह लखनऊ घराने की ही देन है , इसे लखनऊ की जलवायु में उचित पोषण न प्राप्त होने के कारण अपना स्थायी निवास ग्वालियर को ही चुनना पड़ा ।
- इस घराने के संस्थापक मूलत : लखनऊ से ही सम्बन्धित थे , परन्तु उनके ग्वालियर में आकर बस जाने के कारण , जिस शैली का निर्माण इनके द्वारा हुआ वह ग्वालियर घराना कहलाया , जिसे सभी ख्याल घरानों की गंगोत्री कहा जाता है ।
- ग्वालियर घराने का आरम्भ नत्थन पीरबख्श 18 वीं ई . को माना जाता है , परन्तु लखनऊ के उस्ताद गुलाम रसूल ही इस घराने के मूल पुरुष के रूप में पहचाने जाते हैं , चूँकि इनकी ‘ बानी ‘ मुख्यतः कव्वाल बानी ही रही , जिसके कारण लोगों ने ‘ कव्वाल बच्चों का घराना ‘ के नाम से इनके घराने को सम्बोधित किया । गुलाम रसूल साहब ध्रुपद , धमार , ख्याल और कव्वाली के उत्कृष्ट विद्वानों में से एक माने जाते थे ।
- • इनके प्रपौत्र उस्ताद शक्कर खा और मक्खन खाँ प्रसिद्ध ख्याल गायक हुए । डॉ . सुशील कुमार चौबे के अनुसार , ” ग्वालियर घराने की इस गायिकी में , जिसे नत्थन पीरबख्श ने प्रचलित किया था , ध्रुपद के गाम्भीर्य की पूरी झलक मिली थी और तब तक ध्रुपद और ख्याल का बॅटवारा नहीं हुआ था । ”
विशेषताएँ – ग्वालियर घराना
ग्वालियर घराने की अपनी अलग ही विशेषताएँ हैं , जो निम्नलिखित हैं
- • इस घराने में आरम्भिक स्वर आ कार में खुला व बुलन्द लगाया जाता है । आवाज को दबाना या छुपाना इस घराने में निषिद्ध माना जाता है ।
- इस गायिकी की प्रमुख विशेषता जोरदार और खुली आवाज का प्रयोग है ।
- इसमें राग का विस्तार क्रमानुसार किया जाता है ।
- यह घराना मात्र गायन में ही नहीं अपितु ध्रुपद व धमार आदि सभी में उच्चकोटि प्रधान है ।
- इसमें बोल – आलाप और बोल – तानों में बन्दिश के शब्दों के अर्थानुसार ही लयकारी की जाती है ।
- इसकी गायिकी में मर्दानापन , बुलन्द आवाज , गले का वजन और स्वरों पर अधिकार मुख्य रूप से दिखाई देता है ।
- सम के बाद दूसरी मात्रा से गायिकी प्रारम्भ करना ग्वालियर घराने की विशिष्टता है ।
- इसकी गायिकी अधिकतर झुमरा , तिलवाड़ा , आड़ाचारताल , विलम्बित एक ताल आदि में निबद्ध होती है ।
प्रमुख कलाकार
• भगवत शरण शर्मा के अनुसार , ‘ नत्थन पीरबख्श के पुत्रों में हृदू खाँ , हस्सू खाँ और नत्थन खाँ थे । हृदू खाँ के पुत्रों में मुहम्मद खाँ और रहमत खाँ तथा इनके भतीजे निसार हुसैन खाँ प्रसिद्ध थे । हृदू खाँ के शिष्य राम – कृष्ण बुआ , दीक्षित पण्डित , जोशी बुआ , बाला गुरु और बालकृष्ण बुआ अधिक प्रसिद्ध हुए हैं ।
इनमें बालकृष्ण बुआ इंचलकरंजीकर की शिष्य परम्परा में विष्णु दिगम्बर पलुस्कर , मिरासी बुआ , अनन्त मनोहर जोशी , भाटे बुआ , इंगले बुआ , अन्ना बुआ , विष्णु दिगम्बर के शिष्यों में ओंकारनाथ ठाकुर , वी . आर . देवधर , विनायक राव पटवर्द्धन , शंकर राव व्यास , नारायण राव व्यास तथा इनके पुत्र डी . वी . पलुस्कर आदि के नाम प्रमुख हैं ।
• पण्डित वासुदेव जोशी के शिष्यों के बाल कृष्ण बुआ इंचलकरंजीकर रहे , जिनके कारण ग्वालियर घराना का प्रचार सम्पूर्ण महाराष्ट्र में हुआ ।
Conclusion / निष्कर्ष
डॉ . शरतचन्द्र जी के अनुसार , “ ख्याल गायन आरम्भ करते समय आरम्भिक स्वर ‘ आ ‘ कार में खुली व बुलन्द आवाज के साथ किया जाता है । इस घराने में आवाज को दबाना निषिद्ध है , आवाज को तीनों सप्तकों में घुमाया जाता है । इस घराने में ख्याल में अति – विलम्बित लय का प्रयोग कम किया जाता है , इसकी स्थायी व अन्तरा गाने की अपनी विशेष शैली है तथा स्थायी के बाद आलाप व स्वरों की बढ़त धीरे – धीरे करते हुए तार सप्तक में पहुँचकर अन्तरे के आलाप , तानों और बोल – तानों का प्रयोग गमक तथा जबड़े की तानों आदि के साथ किया जाता है ।
ग्वालियर घराने की रचनाएँ विभिन्न तालों में बंधी हुई होती हैं , जैसे – झूमरा , तिलवाड़ा और विलम्बित एक ताल आदि । इस प्रकार महान् धुरन्धर कलाकारों से युक्त यह ग्वालियर घराना गायिकी के सर्वप्रसिद्ध घराने के पहचाना जाता है । अतः यह घराना संगीत की निधि को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने में निरन्तर सफल प्रयास करता रहा है ।
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