वादक के गुण दोष – Musician Merits and Demerits

वादक के गुण दोष

यन्त्र वादक के गुण दोष – instrumentalist Merits and Demerits-
प्राप्त सांगीतिक ग्रंथो से प्राप्त जानकारी तथा प्राचीन ग्रन्थकारों ने वाद्य – यंत्र बजाने वालों (वादकों) के गुण दोषों का जो वर्णन किया है उसका भावार्थ इस प्रकार है :-

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वाग्गेयकार के गुण दोष – Vaggeykar’s merit Demerits

वाग्गेयकार के गुण दोष

वाग्गेयकार को साहित्य और संगीत, दोनों का उत्तम ज्ञान होना अति आवश्यक है , तभी वह पद्य – रचना और स्वर – रचना कर सकता है । ‘ संगोत रत्नाकर ‘ में वाग्गेयकार के गुणों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार दिया है :-….

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सारणा चतुष्टयी – श्रुति पर प्रयोग, भरत मुनि के द्वारा (Sarna Chatushtayi- Bharat)

सारणा चतुष्टयी

अपनी पुस्तक ‘ नाट्य शास्त्र ‘ में भरत मुनि ने श्रुति पर किये गये एक प्रयोग का वर्णन किया है । इस प्रयोग का नाम है ‘ सारणा चतुष्टयी ‘ यह प्रयोग मोटे तौर से चार भागों में विभक्त है । प्रत्येक भाग को सारणा और सम्पूर्ण प्रयोग को सारणा चतुष्टयी की संज्ञा दी ।….

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पारंपरिक लोक संगीत का अध्ययन- Traditional Lok Sangeet

पारंपरिक लोक संगीत

पारंपरिक लोक संगीत से तात्पर्य है कि जो संगीत जनमानस के मन का रंजन करे, लोकसंगीत मन के अनछुए भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम होता है । वह अभिव्यक्ति , खुशी , व्यथा , विस्मय , आल्हाद , भक्ति और वात्सल्य किसी….

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वाद्य वृंद / वृंद वादन का महत्व – Vadya Vrinda (आर्केस्ट्रा/ Orchestra)

वाद्य वृंद

Akashvani Vadya Vrinda वाद्य यंत्रों के प्रकार, वर्गीकरण (तंतु वाद्य, सुषिर वाद्य, घन वाद्य, अवनद्ध वाद्य) Musical Instruments Types & Classification वाद्य वृंद के वाद्य / Instruments …

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संगीत शिक्षण पद्धति – संस्थागत शिक्षण प्रणाली और गुरु शिष्य परंपरा क्या है ?

संगीत शिक्षण पद्धति

संस्थागत संगीत शिक्षण प्रणाली, शास्त्रीय संगीत जिसको कि केवल लोकरंजन अथवा भक्ति के साधन के रूप में देखा जाता था , उसका जब महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षण के रूप में प्रवेश हुआ , तब संगीत की स्थिति में कई परिवर्तन आए….

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संगीत की उत्पत्ति का रहस्य, विकाश, संरक्षण

संगीत की उत्पत्ति

वेद चार है- ऋग्वेद , यजुर्वेद , अथर्ववेद और सामवेद । आर्यों को संगीत से इतना प्रेम था , कि उन्होंने सामवेद को केवल गान करने के लिए ही बनाया था । संगीत का जन्म अ , उ , म इन तीन अक्षरों से निर्मित ओउम् / ॐ शब्द के गर्भ से हुआ, भगवद्गीता और संगीत….

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लोकसंगीत और शास्त्रीय संगीत का पारस्परिक सम्बन्ध – Shastriya & Loksangeet

लोकसंगीत और शास्त्रीय संगीत

लोकसंगीत आदिकाल से ही जनजीवन का अभिन्न अंग रहा है । प्राकृतिक सौन्दर्य ने आदि मानव के भीतर जिज्ञासा उत्पन्न की फलस्वरूप ज्ञानेन्द्रियां जाग्रत हुईं और आदिमानव पशु – पक्षी , कीड़े – मकोड़े आदि के स्वर से ….

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मार्गी संगीत और देशी संगीत की विशेषतायें व अन्तर, Margi and Deshi

मार्गी संगीत और देशी संगीत

मार्गी संगीत को गांधर्व संगीत भी कहते हैं । इस संगीत को मोक्ष प्राप्त करने का साधन माना जाता था । देशी संगीत को हम गान भी कहते हैं । इस संगीत का मुख्य उद्देश्य जनता का मनोरंजन करना है । मार्गी संगीत की विशेषतायें….

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गायन के घराने और उनकी विशेषताएं Gharanas of Singing

गायन के घराने

घराना का तात्पर्य है कुछ विशेषताओं का पीढ़ी दर पीढ़ी चला आना अर्थात् गुरू- शिष्य परम्परा को घराना कहते हैं । गायन के 7 घराने

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तानपूरा का परिचय, अंग, बजाने, मिलाने की विधि Tanpura in Hindi

तानपूरा का परिचय

भारतीय संगीत में तानपूरा का परिचय – Tanpura ka Parichay तानपूरा का अंग – परिचय तानपूरा का अंग – परिचय और QnA तानपुरा मिलाने की विधि तानपुरा …

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बंगाल का लोक गीत और लोक नृत्य Folk Song and Folk Dance of Bengal বাংলা

बंगाल का लोक गीत

बंगाल के ग्रामीणों का प्राण है संगीत , घर , बाहर , खेत – खलिहानों इत्यादि के लिए वहां अलग – अलग तरह के गीत गाए जाते हैं । लोक-गीत प्रायः सप्तक के 2-3 स्वरों में ही गाए जाते हैं । कलकत्ता जैसे बड़े शहर में भी लोग अपने ग्रामीण लोगों से….

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