बनारस घराना तबला Banaras Gharana Tabla

बनारस घराना तबला – बनारस घराना मूलरूप से लखनऊ घराने से सम्बन्धित है । मोदू खाँ के शिष्य पण्डित रामसहाय इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं । पण्डित रामसहाय के पिता पण्डित प्रकाश महाराज मूलतः नृत्य की संगति करने वाले तबला वादक थे , इन्होंने ही अपने पुत्र रामसहाय को उस्ताद मोदू खाँ से तबले की शिक्षा दिलवाई । पण्डित रामसहाय ने लखनऊ में 12 वर्ष रहकर मोदू खाँ से शिक्षा प्राप्त की तथा वापस आकर तबले की शिक्षा का प्रचार – प्रसार किया ।

 बनारस घराना ( तबला ) की वंश परम्परा

• दिल्ली घराने के शिष्य उस्ताद मोदू खाँ से पण्डित रामसहाय मिश्र ने लखनऊ में 12 वर्ष रहकर तबले की शिक्षा ग्रहण की , तदुपरान्त वे काशी में निवास करने लगे । रामसहाय मिश्र जी ही इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं । इनके पाँच शिष्य प्रमुख थे , जिनके नाम हैं जानकी सहाय , रामशरण जी , भैरो सहाय , भगतजी और परतप्पू जी । जानकी सहाय , राम सहाय के भाई थे । जानकी सहाय जी के गोकुल जी तथा विश्वनाथ जी दो शिष्य हुए ।

विश्वनाथ जी के शिष्य भगवान जी थे । इन्हीं भगवान जी के पुत्र तथा विश्वनाथ जी के शिष्य श्री वीरू मिश्र थे । रामशरण जी के पुत्र दुर्गा जी थे । भैरो सहाय जी के पुत्र बलदेव सहाय जी थे । बलदेव सहाय जी के पुत्र सूरदास तथा नन्हू के नाम से जाने जाते थे । श्री कण्ठे महाराज , इन्हीं बलदेव सहाय जी के शिष्य थे । पण्डित किशन महाराज , पण्डित श्यामलाल और स्व. अनोखेलाल जी इसी घराने से सम्बन्धित हैं ।

• भगत जी के शिष्यों में भैरो जी और भैरो जी के शिष्यों में मौलवीराम जी प्रसिद्ध तबला वादक हैं । परतप्पू जी के पुत्र जगन्नाथ जी थे , इनके पुत्र का नाम श्री बाचा मिश्र था । इन्हीं बाचा मिश्र जी के पुत्र समता प्रसाद ( गुदई महाराज ) हैं । |

 बनारस घराना तबला

 बनारस घराना तबला की वादन शैली की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

  • • इस घराने में लव का सर्वाधिक प्रयोग होता है , इसमें अनामिका अंगुली को टेडी करके तथा लव पर प्रहार करके ध्वनि निकाली जाती है ।
  • पेशकार की जगह उठान का अधिक महत्त्व है । ,
  • ठेके के विविध प्रकार बजाने का भी प्रचलन है । , बनारस घराने के कलाकार चाँटी पर अति द्रुत गति में बजने वाले तकतक , बड़धित्ता , क्ड़ान , धिडान , धधान धड़ा धिरधिर किटतक , तिनाकिटतक , गिरगिन्नगधेत , धादिगनधा , के तिराकिट तक कताकता कतृताम किटतक दिनगिन तथा दो अँगुलियों से बजने वाले धिरधिर आदि बोल समूहों का अधिक उपयोग करते हैं ।
  • कायदों की अपेक्षा परने , चक्रदार , रेला , मोहरे , मुखड़े , लय बाँट लड़ी , लग्गियाँ आदि पर अधिक महत्त्व दिया जाता है ।
  • फरद नाम की विशेष प्रकार की गतें इस घराने की प्रमुख विशेषता है ।
  • ” इस घराने की मर्दानी गतें , जिनमें पूरे पंजे का प्रयोग करते हुए जोरदार बोल बजाए जाते हैं ।
  • इस घराने में तबला तथा पखावज के साथ – साथ नक्कारा , हुडुक आदि के बदन , शैलियों का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है ।
  • इस घराने में धिंगाधिन धेततेट , धेधेनक केकेनक , धेतधेतकतान किट धाड़नधा , दिगन , धिडांग आदि बोलों का प्रयोग अधिक होता है ।
  • बाज में तीनताल के ठेके की पढ़त करते समय धा धिं धिंधा के स्थान पर घिना पढ़ा जाता है । 

उपसंहार / निष्कर्ष

बनारस बाज में प्राय : खुले बोलों का काम अधिक महत्त्व रखता है , जिनकी निकासी में हथेली का प्रयोग अधिक किया जाता है । लखनऊ तथा बनारस के लोगों पर नवाबी रिवाजों का असर होने के कारण वे बहुत सौजन्यशील तथा नम्र हैं। अतः यहाँ के तबला वादन में भी इन बातों का काफी प्रभाव दिखाई देता है । ठेके के प्रकार तथा फरद नाम की एक विशेष गत बनारस घराने की प्रमुख विशेषता है ।

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