पंजाब घराना तबला : Punjab Gharana Tabla

पंजाब घराना तबला- पंजाब घराने के प्रवर्तक भवानीदास ब्रज निवासी थे तथा ये दिल्ली दरबार में पखावज के कलाकार भी थे । वहाँ से ये पंजाब गए तथा इनके अनेक शिष्य हुए । इस घराने के बारे में कहा जाता है कि इसका अपना एक अलग अस्तित्व है तथा इस घराने पर अन्य किसी घराने का प्रभाव नहीं है ।

पंजाब घराना : तबला

भवानी दास ने पखावज के बाज के आधार पर पंजाब के दुक्कड़ ( तबला समान ) लोकवाद्य पर नवीन वादन शैली का आविष्कार किया , इन्होंने दुक्कड़ को शास्त्रीय संगीत में स्थान दिलाने का प्रयास किया , बाद में धीरे – धीरे दुक्कड़ का बाज तबले पर विकसित होकर बजाया जाने लगा । पंजाब घराने की वादन शैली पर पखावज वादन के समान लयों का स्थान , बोलों के विकास , पूरे पंजे का प्रयोग , लयकारी एवं गतिमय बन्दिश रचनाओं का प्रभाव रहा तथा इन्हीं व अन्य विशेषताओं के कारण पंजाब की वादन शैली को घराने की मान्यता मिली । 

पंजाब घराना ( तबला ) की वंश परम्परा

पंजाब घराने की वंश परम्परा • पंजाब के सबसे पुराने तबला वादक फकीर बख्श खाँ को इस घराने का प्रतिष्ठापक माना जाता है । फकीर बख्श का सम्बन्ध लाहौर से होने के कारण कुछ विद्वान् इस घराने को लाहौर घराना भी कहते हैं । कुछ विद्वानों के अनुसार फकीर बख्श ने पखावज वादक लाला भवानीदास से पखावज वादन की शिक्षा ग्रहण की थी । उस्ताद मल्लन खाँ और कादिर बख्श इस घराने के चर्चित वादक हुए ।

फकीर बख्श के पुत्र कादिर बख्श हुए , परन्तु कादिर बख्श के कोई पुत्र नहीं था । फकीरबख्श खाँ के सुप्रसिद्ध शिष्यों में करम इलाही खाँ , बाबा मलंग , मालन खाँ , फिरोज खाँ और पण्डित बलदेव सहाय का नाम प्रमुख है तथा कादिर बख्श के सुप्रसिद्ध शिष्यों में पंजाब के लाल मुहम्मद खा अल्लादिया खाँ , शौकत हुसैन खाँ , अल्लारक्खा खाँ । अल्लारक्खा पुत्र जाकिर हुसैन खाँ ने इस घराने का सिर गर्व से ऊँचा किया है । 

पंजाब घराने की वादन शैली की विशेषताएँ

पंजाब घराने की वादन शैली की विशेषताएँ इस घराने की वादन शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • चारों अँगुलियों के साथ तबले पर थाप का प्रहार होता है ।
  • पखावज से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण पंजाब बाज जोरदार तथा खुला है ।
  • कायदों का प्रचार कम और जटिलता के लिए होता है । यहाँ लम्छड़ कायदा का प्रचलन अधिक है ।
  • गतों और रेलों का अधिक महत्त्व है ।
  • • बन्दिशों में घिन , नाधा , डघा , धिडन्त , क्रतन्न , घाड़ागेन , घातीनाड़ा , घातीधाड़ा तथा द्रुत लय में घिरकित तेरकेत आदि बोलों का प्रयोग अधिक होता है । ·
  • बाएँ पर मीण्ड का काम तथा दाएँ पर लचीलापन इस घराने की अपने विशेषता है ।
  • लय और ताल पर पूर्ण अधिकार होता है ।
  • कठिन लयकारियों में दक्षता होती है ।
  • हाथ से ताली देने की परम्परा प्रचलित है ।
  • खुले हाथ से बन्द बोलों में प्रवीणता ।
  • हाथ की शुद्धता पर बल दिया जाता है ।
  • संगीत वादन में प्रवीणता स्पष्ट झलकती है ।
  • मृदंग / पखावज शैली के बोलों का तबले पर सुन्दर प्रयोग किया जाता है ।
  • बन्दिशें मनोरंजन के लिए शृंगारयुक्त होती हैं तथापि इसकी बन्दिशों में ओज , गति एवं तीव्रता दिखाई देती

उपसंहार / निष्कर्ष

इस प्रकार पंजाब घराना तबले का बहुचर्चित घराना है , क्योंकि यही एकमात्र ऐसा घराना है , जिसका दिल्ली घराने से कोई सम्बन्ध नहीं है , इसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है । अत : पखावज के समान तबले पर अँगुलियों के स्थान पर पूरे पंजों का प्रयोग , बोलों की निकास पद्धति , लयकारी का गणित एवं बन्दिशों की रचना ये सब विशेषताएं तबले – पखावज के निकट का सम्बन्ध व्यक्त करती हैं । पंजाब घराने पर पखावज वादन शैली का प्रभाव पूर्णरूप से है , इसी कारण इसका बाज़ जोरदार एवं खुला बाज कहलाया ।

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फर्रूखाबाद घराना तबला

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