अन्नपूर्णा देवी जीवनी Biography, संगीत में योगदान, सम्मान Annapurna Devi

अन्नपूर्णा देवी जीवनी Biography

अन्नपूर्णा देवी जीवनी Biography of Annapurna Devi

  • अन्नपूर्णा देवी का जन्म 23 अप्रैल , 1927 को मध्य प्रदेश में मैहर कस्बे में हुआ था । इनके पिता उस्ताद अलाउद्दीन खान थे ।
  • इनको मूलतः सुरबहार वादिका के रूप में काफी ख्याति प्राप्त हुई ।
  • बाल्यकाल से अन्नपूर्णा को उनके पिता अलाउद्दीन खान ने गायन व सितार की शिक्षा देनी शुरू की , जो कोई इस बालिका के सितार वादन को सुनता वह चकित रह जाता । इनकी शिक्षा वर्ष 1940 तक चलती रही ।
  • अलाउद्दीन खान ने अन्नपूर्णा से कहा था कि संगीत ( भगवान ) गुरु को अर्पित करने की चीज है । ध्रुपद अंग का आलाप सुरबहार पर ही सम्भव है । और इसी से संगीतज्ञों , विद्वानों , संगीत प्रेमियों से आदर मिलेगा । इसके पश्चात् अन्नपूर्णा ने सितार छोड़ दिया और ‘ सुरबहार ‘ की शिक्षा ग्रहण करनी आरम्भ कर दी ।
  • अन्नपूर्णा देवी की मृत्यु 13 अक्टूबर , 2018 को मुम्बई में हुई ।

संगीत में योगदान

  • शिक्षा पूर्ण करने के बाद अन्नपूर्णा देवी ‘ इप्टा संस्था की ओर से भारत भ्रमण पर गायन – वादन के लिए निकल पड़ीं , जहाँ उन्होंने पण्डित रविशंकर के साथ मिलकर जवाहरलाल नेहरू की ‘ डिस्कवरी ऑफ इण्डिया ‘ जो मंच पर अभिनीत किया जा रहा था , उसमें संगीत दिया था ।
  • पण्डित रविशंकर के साथ इनकी जुगलबन्दी ( सुरबहार , सितार ) के अनेक कार्यक्रम वर्ष 1946 से 1955 तक विभिन्न स्थानों पर हुए ।
  • अन्नपूर्णा देवी के अनुसार , घराने की आवश्यकता है तथा घराने की अपनी विशेषता व उपादेयता है । इनके अनुसार साज का टोन ठीक करने तथा हाथ तैयार करने व गला साधने का ज्ञान गुरु से ही मिल सकता है ।
  • अन्नपूर्णा देवी मानती थीं कि संगीत की परम्परा बनी रहे और उसका समुचित प्रचार इसके लिए यह हितकर है कि स्कूलों व कॉलेजों में संगीत का विषय रखा जाए ।

सम्मान

  • अन्नपूर्णा देवी को अनेक सांगीतिक योगदान के लिए विभिन्न संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया , जिनमें कुछ प्रमुख सम्मान हैं ।
    • वर्ष 1977 में पद्मभूषण सम्मान
    • वर्ष 1988 में सुर सिंगार संसद की ओर से शारंगदेव फैलोशिप
    • वर्ष 1991 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सम्मान आदि ।
    • वर्ष 1999 में विश्वभारती की ओर से ‘ देशीकोत्तम ‘ ( डी . लिट् ) सम्मान आदि .
  • अन्नपूर्णा देवी अपने अन्तिम समय तक संगीत साधना में लगी रहीं तथा भट्टाचार्य , प्रदीप बरोत आदि हैं । उनके कुछ प्रमुख शिष्यों में हरिप्रसाद चौरसिया , निखिल बनर्जी , अमित भट्टाचार्य , प्रदीप बरोत आदि हैं । 

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