विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी ने स्वरलिपि पद्धति( Swarlipi Paddhati) / Notation System को प्रचलित किया । भारतीय शास्त्रीय संगीत की जो पद्धति है उसे आज भी हम उनके समय में जो बंदिशें थी या जिन बंदिशों का इन्होने निर्माण किया, उनका संग्रह किया, उनसब में हम इन्ही स्वरलिपि पद्धति को पाते हैं । Vishnu Digambar Paluskar Swarlipi Paddhati में स्वरों का यातो अचल, चल या शुद्ध, कोमल, तीव्र में विभाजन हुआ है ।
सबसे पहले जानते हैं इनके द्वारा किया गया स्वरों का वर्गीकरण ।
विषय - सूची
स्वरों का वर्गीकरण (विष्णु दिगंबर पलुस्कर स्वरलिपि पद्धति )
पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर स्वरलिपि पद्धति में पहला सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है कि स्वर या तो शुद्ध , कोमल या तीव्र होंगे ।
- स्वर
- शुद्ध ( सा,रे,ग,म,प,ध,नि )
- कोमल ( रे,ग,ध,नि )
- तीव्र ( म )
स्वर यातो अचल , चल या शुद्ध होंगे ।
- स्वर
- अचल ( सा,प )
- चल / विकृत ( रे,ग,म,ध,नि )
- शुद्ध ( सा,रे,ग,म,प,ध,नि,सा )
अचल स्वर – अपने स्थान पे स्थायी रहेंगे ।
चल स्वर या विकृत स्वर – अपने स्थान पर रहेंगे या अपने स्वरूप को थोड़ा सा चेंज करते हैं ।
शुद्ध स्वर – अपने स्थान पर सही, मूल स्वरुप में हैं जैसे ( सा,रे,ग,म,प,ध,नि ) तो हम कहते वह शुद्ध स्वर है ।
स्वरों की परिभाषाएँ विष्णु दिगंबर पलुस्कर के द्वारा
अचल स्वर
जब हम शुद्ध स्वर की बात करते हैं तो शुद्ध स्वर में अचल होते हैं वह शड़ज और पंचम मतलब सा और प हमेशा अपने स्थान पर रहते हैं । अपने स्थान से कभी भी स्थान परिवर्तन करते नहीं देखा गया इसीलिए यह दो ऐसे मजबूत स्तंभ है जो हम कहेंगे कि अचल हैं। सा और प अपने स्थान पे स्थायी हैं ।
चल स्वर या विकृत स्वर
जब हम स्वरों की बात करें तो अचल स्वरों के अलावा जो बाकी रे, ग, म, ध, नि ( रिषभ, गांधार, मध्यम, धैवत और निषाद ) यह वो पांच स्वर हैं जो अपने स्थान पर रहेंगे या अपने स्वरूप को थोड़ा सा चेंज करते हैं ।
शुद्ध स्वर
जब कोई भी स्वर अपने स्थान पर लगता है अपने स्थान पर सही है तो हम कहते वह शुद्ध स्वर है । शुद्ध स्वर के लिए पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी ने कोई भी चिन्ह नहीं दिया। यानी जब हम रे लिखेंगे, ग लिखेंगे , म लिखेंगे,प लिखेंगे और उसके आगे पीछे कोई भी साइन नहीं है या ना तो उसके ऊपर है ना उसके नीचे है तो हम कहते कि वह शुद्ध स्वर है।
कोमल स्वर
यदि स्वरों के नीचे एक हलन्त का निशान लगा दिया जाए तो उसे इस परंपरा के अनुसार उसको कोमल कहा जाता है जो कि विकृत स्वर है ।
तीव्र स्वर
यदि स्वरों के नीचे एक उल्टा हलन्त का निशान लगा दिया जाए तो उसे इस परंपरा के अनुसार उसको कोमल कहा जाता है जो कि विकृत स्वर है ।
विष्णु दिगंबर पलुस्कर स्वरलिपि के चिन्ह
इसके अलावा जब हम उस स्वर के ऊपर एक डॉट या बिंदी लगा देते हैं तो उस स्वर को हम मन्द्र स्वर कहते हैं । यानी सर के ऊपर बिंदी है तो इसका मतलब कि मन्द्र स्वर सा, नि ध, प, म, के ऊपर बिंदी लगाते हैं।
इसके अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण बात कि तीव्र स्वर के लिए क्या साइन होगा ? तीव्र स्वर के ऊपर एक स्टैंडिंग लाइन कहा जाए तो उसके ऊपर खड़ी रेखा दिखा दी जाती है जैसे कि मध्यम तीव्र है तो उसके ऊपर एक खड़ी रेखा उसको दिखा दिया जाता है। जहां तक खड़ी रेखा की बात है तो जब स्वरों के ऊपर सीधी खड़ी रेखा लगा दी जाए तो उसे हम तार सप्तक का स्वर कहते हैं।
सारेगामापाधनिसा के बाद सा रे ग के ऊपर हम स्टैंडिंग लाइन या खड़ी लाइन हम लगा देते हैं तो उसको हम कहते हैं वो तार सप्तक का स्वर है ।
पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी की परंपरा के अनुसार जब हम स्वरों के ऊपर बिंदी देखें तो वह स्वर मंद्र सप्तक का स्वर है । रेखा के नीचे उल्टा हलन्त का निशान लगा देखें तो वह शुद्ध स्वर है । जब हम स्वरों के ऊपर खड़ी रेखा देखते हैं तो हम उसको कहते हैं कि यह तार सप्तक का स्वर है ।
विष्णु दिगंबर पलुस्कर स्वरलिपि के अन्य चिन्ह
कण स्वर / Grace Note
कण स्वर – अगर किसीभी स्वर के ऊपर कोई और स्वर लिखा जाता है तो उसे हम कण स्वर कहते हैं । कण स्वर का मतलब उस स्वर का छोटा सा कण लगता है मतलब उस स्वर को छू कर आना । जैसे हम हमीर राग की बात करते हैं ग म ध ध, साध। तो यहाँ सा का कण लग रहा है । इसे अंग्रेजी में हम ग्रेस नोट / grace note भी कहते हैं ।
ताल
अगर हम ताल की बात करे तो वहां जो सम है मतलब ताल की पहली मात्रा है उसके लिए 1 का चिन्ह लिखा जाएगा । और अगर खाली आती है यानि निशब्द क्रिया जहाँ आती है (जैसे तीन ताल) उसके लिए + का चिन्ह है । खाली का मतलब है वहां पर कोई भी शब्द नहीं है ।
Vishnu Digambar Paluskar Biography / जीवनी
एक अन्य गुणी महानुभाव , इनका योगदान भी स्वरलिपि पद्धति के सृजन में बराबर का रहा है । ये हैं विष्णु नारायण भातखण्डे जी । नीचे लिंक पर क्लिक करें।
पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे स्वरलिपि पद्धति
तथा
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