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वाद्ययन्त्रों का विकास – Development of Musical Instrument
- वाद्ययन्त्रों का विकास – प्राचीनकाल से ही वाद्यों का प्रयोग , संगीत की गायन व नृत्य विधा की परिपूर्ण करने में सक्षम है । गायन व नृत्य की सफलता में वाद्यों का अत्यावश्यक सहकर्मिता रहती है । विद्वान् संगीतज्ञों ने वाद्यों की उपयोगिता को ध्यान में रखकर प्राचीन तत् वाद्यों , सुषिर वाद्यों एवं घन वाद्यों की संरचना को आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया ताकि गायन व नृत्य को और अधि परिमार्जित व परिष्कृत रूप में प्रस्तुत किया जा सके ।
- संगीत का प्रचार – प्रसार अधिक होने पर वाद्यों की संख्या व क्षमता निरन्तर बढ़ती गई है । प्राचीन वाद्य रुद्र वीणा , जो शिव द्वारा निर्मित मानी गई है क विकास हुआ । तत् वाद्यों के कई प्रकार ; जैसे विचित्र वीणा , अन्य वीणा से निर्मित सुरबहार , सितार , सरोद , मोहनवीणा आदि प्रचलन में हैं । इसी प्रकार सुषिर वाद्यों में बासुरी , शहनाई , नादेश्वरम् आदि वाद्य , अवनद्ध वाद्यों में मृदंग , पखावज , तबला , नगाड़ा इत्यादि वाद्य तथा घन वाद्यों में देखने – सुनने को मिलता है ।
- वाद्ययन्त्रों का विकास के साथ ही इनकी वादन शैली , तौर – तरीके बनावट में भी विकास हुआ जो वाद्य बनावट व बजाने में क्लिष्ट रहे , उनका अभाव हो रहा है । उनके स्थान पर परिवर्तित नए वाद्य को प्रचलन में लाया गया । उदाहरणार्थ रुद्रवीणा का निर्माण कम व सितार का निर्माण अधिक संख्या में हो रहा है तथा सितार वादकों की संख्या भी अधिक है । यही स्थिति पुराने सुषिर , अवनद्ध घन वाद्यों की भी है ।
- वाद्ययन्त्रों की उत्पत्ति के बाद आइये जानते हैं वाद्ययन्त्रों का विकास वैदिक काल , मध्यकाल तथा आधुनिक काल में
वैदिक काल में वाद्ययन्त्रों का विकास – Vaidik kaal
- वैदिक काल में वीणा के अनेक नाम थे ; जैसे – महती , पिनाकी कात्यायनी , रावणी , कच्छपी , कुंजिका आदि ।
- उस समय तक वीणा की बनावट , आकार प्रकार , तन्त्रिकाओं की संख्या आदि के हिसाब से इसके अनेक प्रकार विकसित हो चुके थे ; जैसे शततन्त्री वी . काण्ड वीणा , पिन्छोला , कर्कटिका , अलावु , बिक्री
- यजुर्वेदकालीन यज्ञों में भी ऋग्वेद की तरह ही सामगान आवश्यक था । इस काल में हाथ से ताली देने का प्रचलन था । अथर्ववेद काल में नाराशंसी ‘ गाथा अतिरिक्त ‘ रैम्प ‘ जैसे लौकिक ( देशी ) गीत प्रचार में आ चुके थे । “ हरिवंश पुराण में सात स्वरों , ग्राम रागों , तीन सप्तकों ( मन्द्र , मध्य , तार ) मूछन , नृत्य , वीणा , दुर्दुर व पुष्कर वाद्यों का वर्णन है । ब्रह्म महापुराण में नर्तकों के लिए ‘ कथक ‘ शब्द का प्रयोग मिलता है । ”
- संगीत के लिए रामायण व महाभारत काल बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है । रामायण | काल को संगीत का स्वर्ण काल कहा जा सकता है , क्योंकि इस काल में संगीत की सर्वव्यापकता थी । इस काल में रावण तथा मंदोदरी उत्कृष्ट संगीतज्ञों में से थे । इस काल में दोनों प्रकार की गायन शैलियाँ साय ( गान्धर्व ) व देश ( लौकिक ) प्रचलित थीं । रामायण में भेरी , घट , डिमडिम , आडम्बर , दुन्दुि तथा वीणा आदि का वर्णन मिलता है ।
- भेदी मृदंग वीणानां कोणसंघद्धित : पुनः किमद्य शब्दों विरतः सदादीनगति : पुरा :
- मृदंग का विकास महाभारत काल से माना जाता है । महाभारत काल में महान बंशी वादक श्रीकृष्ण हुए हैं । इसी काल में अर्जुन , एक महान् वीणा वादक थे । वाद्ययन्त्रों के रूप में वेणु , मृदंग , शंख , झरकार , तुरी , भेरी , पुष्कर , घण्ट नूपुर , पराह , दुन्दुभि , विभिन्न संख्यक तन्त्री युक्त वीणा इत्यादि वाद्यों का वर्णन मिलता है ।
- भरत , पाणिनी , पतंजलि , कौटिल्य , भास तथा शुद्रक ने उस समय के वाद्यों तथा उनकी वादन कला पर अपने ग्रन्थों में वर्णन किया है । प्राचीनकाल में वाद्यों के सामूहिक वादन को ‘ तुर्य ‘ कहा गया है । भरतकृत नाट्यशास्त्र में चारों प्रकार के वाद्यों का पूर्ण उल्लेख मिलता है ।
- कालीदास के मेघदूतम् , अभिज्ञानशाकुन्तलम आदिकाल ग्रन्थों में भी संगीत तथा वाद्ययन्त्रों के बहुविध प्रयोगों का वर्णन प्राप्त होता है । बौद्ध व जैन काल में विभिन्न प्रकार की वीणाएँ प्रचलित थीं ; जैसे – वल्लकी , भावरी ( भ्रामरी ) , षडभ्रामरी , कच्चहनी ( कच्छपी ) तथा आदि अवनद्ध वाद्यों का प्रचार था । डिंडिप • प्राचीन ग्रन्थों में वीणा के कई नामों का उल्लेख मिलता है तथा वाद्ययन्त्रों में वीणा के कई प्रकार प्रचलित थे ; जैसे – गौड़ ताल्लुक वीणा , काण्ड वीणा , विपंची वीणा , चित्रा वीणा , महती वीणा , किन्नरी महती वीणा त्रितन्त्री वीणा , सहतन्त्री वीणा आदि ।
मध्यकाल में वाद्ययन्त्रों का विकास – Madhya Kaal
- मध्यकाल में वाद्ययन्त्रों का विकास • मध्यकाल में वाद्ययन्त्रों का बहुत विकास हुआ । कई वीणाओं का आविष्कार हुआ तथा कुछ पुरानी वीणाओं में संशोधन हुआ । पं शारंगदेव के ‘ संगीत रत्नाकर ‘ में बहुत – सी वीणाओं तथा अन्य वाद्यों का वर्णन है । संगीत रत्नाकर के काल में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक वाद्यों का विकास होता रहा और इस अवधि में रुद्रवीणा रबाब तथा स्वर मण्डल प्रमुख रूप से प्रचलित रहे । साथ ही त्रितन्त्री वीणा , पिनाकी वीणा , रावणास्त्र वीणा तथा सारंगी का भी प्रचलन रहा ।
आधुनिक काल में वाद्ययन्त्रों का विकास – Adhunik Kaal
- आधुनिक काल में वाद्ययन्त्रों का विकास आधुनिक काल में संगीत और वाद्यों का विकास अलग प्रकार से हुआ है । तत् वाद्यों के विकसित रूप , जो वीणा से ही उत्पन्न माने गए प्रचलित हैं । इसी प्रकार सुषिर तथा घन वाद्यों का भी विकास होता चला आ रहा है । • इस काल में संगीत घरानों का जन्म हो चुका था तथा वाद्यों ( सितार वीणा , सरोद , बाँसुरी , शहनाई , वायलिन , सन्तूर , सारंगी तबला पखावज , गिटार , विचित्र वीणा , हारमोनियम आदि ) की स्वतन्त्र वाद्य प्रणाली का आरम्भ हुआ एवं इनका विकास भी हुआ ।
वादन तकनीक तथा सुप्रसिद्ध कलाकार
- हिन्दुस्तानी संगीत में प्रचलित वादन – तकनीक का सम्बन्ध रहा है उनमें से भारतीय वाद्यों के अतिरिक्त , जो आधुनिक काल में विदेशी सम्पर्क द्वारा भारत आए ( जैसे – वायलिन , हारमोनियम , पियानो , क्लेरोनेट , आदि ) शेष वाद्य या तो प्राचीनकाल से अभी तक अपने मूल रूप में चले आ रहे हैं ; जैसे- बाँसुरी , वीणा कुछ प्रकार आदि या कुछ परिवर्तन के साथ प्रचलित हैं ; जैसे- तबला , सितार आदि । विभिन्न वाद्ययन्त्र तकनीकों एवं इनके सुप्रसिद्ध कलाकारों का वर्णन निम्नलिखित है
वादन तकनीक एवं उसके कलाकार – QnA
भारत के सुप्रसिद्ध वादक (कलाकार) कौन हैं ?
जिया मोहिउद्दीन डागर , अय्यागारि स्थायसुन्दरम , दोरईस्वामी आयंगर , असद अली खान , पं . विश्व मोहन भट्ट ।
पण्डित रवि शंकर , शाहिद परवेज खान , बुधादित्य मुखर्जी , अनुष्का शंकर
अलाउद्दीन खान , अली अकबर खान , अमजद अली खान , बुद्धदेव दास गुप्ता
शकूर खान , पण्डित राम नारायण , रमेश मिश्र , सुल्तान खान
सुश्री . गोपालकृष्णन , श्रीमती एम राजम , एन . आर . मुरलीधरन , एम . चन्द्रशेखरन , वी . जी . जोग , लालगुडी जयरामन
हरि प्रसाद चौरसिया , पन्नालाल घोष
अरविन्द धत्ते , आदित्य ओक , तुलसीदास बोरकर , गोविन्दराव टेंबे
बिस्मिल्ला खान , कृष्णा राय चौधरी , अली अहमद हुसैन
के . वी . प्रसाद , एस . वी . राजा राव , उमलचापुरम शिवरामन
जाकिर हुसैन , अल्लाह रक्खा , साबिर खान , पं . किशन महाराज गुदई जी महाराज
ब्रज भूषण काबरा
तोताराम शर्मा
टी . एच . विनायकराय , ई . एम . सुब्रमण्यम
पण्डित शिव कुमार शर्मा , रुस्तम सोपोरी
अन्नपूर्णा देवी