वाद्ययन्त्रों की उत्पत्ति- Vadya Yantra ki Utpatti

वाद्ययन्त्रों की उत्पत्ति – हिन्दुस्तानी संगीत में प्राचीनकाल से ही वाद्यों का विशेष स्थान रहा है । गायन एवं वादन के समय विभिन्न वाद्ययन्त्रों की सहायता से लयबद्ध संगीत एवं आकर्षण उत्पन्न किया जाता है इन वाद्ययन्त्रों की उत्पत्ति , वाद्ययन्त्रों का विकास , वादन तकनीकी एवं प्रसिद्ध कलाकारों की संगीत में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है ।

वाद्ययन्त्रों की उत्पत्ति

  • भारतीय संगीत में वाद्यों की उत्पत्ति भी गायन की तरह ही प्राचीन मानी जाती है , जिसका ठीक – ठीक समय निर्धारण सम्भव नहीं है । अतएव भारतीय संगीत वाद्यों का प्रयोग गायन के साथ – साथ ही हुआ , ऐसा माना जाता है । गायन के साथ वादन की क्रिया भी प्राचीनकाल से ही समृद्ध रही है । प्राचीन ग्रन्थों में तथा अन्य स्रोतों से जो भी सूचना प्राप्त करने का प्रयास किया गया है । उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि संगीत में वाद्यों का प्रयोग भी प्राचीन है ।
  • संगीत स्वाभाविक है , जिसमें मानव अपने मनोभावों को , इच्छाओं आदि को अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता होगा , चाहे वह फिर इशारे से हो या अपने चेहरे के भावों से ।
  • • कालान्तर में वह कण्ठ से आवाज निकालकर या अपने आस – पास की वस्तुओं को पीटकर अपने भावों को व्यक्त करने लगा हो । अर्थात् प्रारम्भ से ही जो विचार में आता होगा , वह उसे व्यक्त करने के लिए ध्वनियों का प्रयोग करता होगा । फिर चाहे वह ध्वनि कण्ठ की हो या किसी अन्य वस्तु के आघात द्वारा उत्पन्न हो । इन ध्वनियों को प्रयोग में लाने के फलस्वरूप ही कण्ठ स्वर अथवा अन्य वस्तुओं के स्वर का महत्त्व अस्तित्व में आया होगा । जीवन यात्रा के निरन्तर विकास से कण्ठ स्वर के साथ – साथ वाद्यों की ध्वनि भी प्रयुक्त हुई होगी । आज जो विविध प्रकार के वाद्ययन्त्र हैं उनकी उत्पत्ति विभिन्न प्रकार की ध्वनियों के कारण हुई और सभ्यता के साथ ये वाद्ययन्त्र विकसित हुए । वाद्ययन्त्रों के आकार – प्रकार तथा बनावट के आधार या उनसे निकलने वाली ध्वनियों के आधार पर वाद्यों को विविध वर्गों में रखते हैं ।
  • • वाद्य शब्द की रचना वद् धातु से हुई है अर्थात् वाणी । साधारणतः वाणी के अतिरिक्त , सन्देश देने अथवा ध्यान आकृष्ट करने के लिए वाद्यों का प्रयोग आरम्भ से किया गया होगा । इस सम्बन्ध में ढोल , शंख , नगाड़े आदि का प्रयोग कण्ठ या वाणी के स्थान पर होने लगा ।
  • • भारत में प्राचीनकाल से ही संगीत में उपयोग हेतु विविध वाद्यों का प्रयोग मिलता है । प्राचीनकाल में भगवान शिव का डमरू , सरस्वती की वीणा , कृष्ण की मुरली , नारद की वीणा आदि का प्रचुर मात्रा में वर्णन मिलता है ।
  • • वाद्यों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई प्राचीन धार्मिक कथाएँ व लोक गाथाएँ भी प्रचलित हैं । एक लोक गाथा के अनुसार पृथ्वी पर उपस्थित दस कल्पवृक्षों में से एक चतुर्भाग द्वारा ही मनुष्य को चार प्रकार के वाद्य दिए गए । हमारे प्राचीन वाद्ययन्त्रों का निर्माण व नाम किसी – न – किसी देवता से अवश्य जुड़ा हुआ मिलता है । एक धार्मिक कथानुसार दक्ष – यज्ञ विध्वंस के कारण उत्पन्न शिव के क्रोध की शान्ति के लिए स्वाति , नारद आदि ऋषियों द्वारा वाद्यों का निर्माण किया गया । एक अन्य धार्मिक कथानुसार शिव के नृत्य ( त्रिपुरासुर विजय पर ) के साथ संगत के लिए जिस अवनद्धः वाद्य का निर्माण ब्रह्मा द्वारा किया गया उसे ‘ मृदंग ‘ कहा गया । इसी तरह अन्य वाद्य भी देवी – देवताओं से सम्बन्धित माने गए हैं । प्राचीनकाल के सभी वाद्ययन्त्र देवी – देवताओं तथा ऋषि – मुनियों की देन हैं । एक मान्यतानुसार तत् वाद्य देवताओं से , सुषिर वाद्य गन्धर्वों से , अवनद्ध वाद्य राक्षसों से तथा घन वाद्य किन्नरों से सम्बन्धित माने गए हैं ।
  • • प्राचीन संस्कृत साहित्य में वाद्य का विविध प्रकार से वर्णन मिलता है तथा संगीत यन्त्रों के पर्याय के रूप में वाद्य , वादित्र व आतोद्य का उल्लेख मिलता है । भारतीय संगीत के मूल तत्त्व में वाद्य – वादन कला पूर्ण रूप से परिलक्षित होती है । अर्थात् हमारे वाद्यों में कण्ठ संगीत की तरह शास्त्रीय संगीत के सभी गूढ़ तत्त्वों का समावेश है , चूँकि कण्ठ एक ऐसा यन्त्र है , जो ईश्वर निर्मित है और वाद्य मानवीय रचना का प्रतिफल है ।
  • अन्ततः यह कहा जा सकता है कि वाद्यों की उत्पत्ति प्राचीनकाल में ही हो चुकी होगी । जहाँ से नैसर्गिक यन्त्र या कण्ठ का प्रयोग संगीत में हुआ , वहीं से वाद्यों की उत्पत्ति मानी जा सकती है ।   पाश्चात्य विद्वान् फ्रायड के अनुसार , मनुष्य की जब आवश्यकता महसूस हुए होगी तब स्वयं ही उसने इनकी उत्पत्ति की होगी । कालान्तर में इन वाद्यों क आधार मानकर आवश्यकतानुसार नए वाद्यों का विकास हुआ । 

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