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उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में समानता एवं विभिन्नता
उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में समानता एवं विभिन्नता – हिन्दुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत का विकास मूलरूप से भिन्न – भिन्न सिद्धान्तों पर हुआ है क्योंकि कर्नाटक संगीत मुख्यतः निबद्ध रूप में गाया जाता है और हिन्दुस्तानी संगीत में केवल गीत की बन्दिश ही निबद्ध रूप से गाई जाती है ।
दक्षिण भारतीय संगीतज्ञ सदा से ही प्रयत्नशील रहे कि उनकी कला में प्रयुक्त परम्परागत तत्त्व नष्ट न हो जबकि उत्तर भारतीय संगीत धारा विभिन्न संगीत शैलियों से मिल – जुलकर नित्य नवीन रूप धारण करती रही है । ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक उत्थान – पतन के बीच दोनों पद्धति में कई समानता व विभिन्नताएँ पाई जाती हैं ।
अतः कहा जा सकता है कि भारतीय संगीत की मूल धारा एक है , जो कालान्तर में उत्तर तथा दक्षिण संगीत पद्धति इन दो भिन्न धाराओं में प्रवाहित हो रही है ।
उत्तरी एवं दक्षिणी पद्धति में समानता रखने वाले राग
क्र.सं | उत्तर पद्धति | दक्षिणी पद्धति |
1 | कल्याण | मेघ कल्याणी |
2 | बिलावल | शंकराभरण |
3 | भूपाली | मोहनम |
4 | भैरवी | हनुमत तोड़ी |
5 | तोड़ी | शुभपन्तुवराली |
6 | आसावरी | मुखारी |
7 | भीमपलासी | आभेरी |
8 | बागेश्री | श्री रंजनी |
9 | जैजैवन्ती | द्विजयवन्ती |
10 | खमाज | हरिकाम्भोजी |
11 | काफी | खरहर प्रिया |
12 | मारवा | गमन प्रिया |
13 | दुर्गा | शुद्ध सावेरी |
14 | सोहनी | हन्सानन्दी |
15 | भैरव | मायामालव गौड़ |
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उत्तरी एवं दक्षिण संगीत के स्वरों की तुलना
उत्तरी एवं दक्षिण संगीत के स्वरों की तुलना दोनों पद्धतियों में सप्तक में 12 स्वर माने जाते है । 22 श्रुतियों और उनके संवाद सम्बन्ध को समान रूप से स्वीकार करती हैं , स्वरों के शुद्ध विकृत रूप एवं नामों में भिन्नता पाई जाती है , कर्नाटकी संगीत में स्वरों का कोमल रूप नहीं पाया जाता , क्योंकि स्वरों की शुद्ध अवस्था यहाँ सबसे नीची होती हैं । कुछ स्वरों के दो – दो रूप पाए जाते हैं ; जैसे – गन्धार को चतुःश्रुति ऋषभ व साधारण गन्धार को पटश्रुति ऋषभ भी कहा जाता है । हिन्दुस्तानी संगीत में ऐसा नहीं होता ।
उत्तरी संगीत में कोमल स्वर का स्थान शुद्ध स्वरो से नीचा होता है । शुद्ध स्वरों की अवस्था मध्य की होती है , क्योंकि शुद्ध स्वर कोमल स्वर से ऊँचा तथा तीव्र स्वर से नीचा होता है । सप्तक के 12 स्वरों को देखने पर पता चलता है कि कर्नाटकी पद्धति का शुद्ध रे घ हमारी उत्तरी संगीत पद्धति के कोमल रे घ के समान है तथा हमारे शुद्ध रे ध उनके शुद्ध ग नी के समान है ।…
उत्तरी एवं दक्षिणी स्वर
क्र.सं. | उत्तरी स्वर | कर्नाटकी स्वर |
1 | स | स |
2 | कोमल रे | शुद्ध रे |
3 | शुद्ध रे | शुद्ध ग ( चतुःश्रुति रे ) |
4 | कोमल ग | साधारण ग ( षट श्रुति रे ) |
5 | शुद्ध ग | अन्तर ग |
6 | शुद्ध म | शुद्ध म |
7 | तीव्र म | प्रति म |
8 | प | प |
9 | कोमल ध | शुद्ध ध |
10 | शुद्ध ध | शुद्धि नि ( चतुःश्रुति ध ) |
11 | कोमल नि | कौशिक नी |
12 | शुद्ध नी | काकली नी |
कर्नाटक संगीत स्वरलिपि पद्धति- karnataka Sangeet Swarlipi Paddhati
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