हिन्दुस्तानी कर्नाटकी संगीत पद्धति में समानता, तुलना- Sangeet Paddhati

हिन्दुस्तानी व कर्नाटकी संगीत पद्धति में समानता

हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति व कर्नाटकी संगीत पद्धति में समानता

  • दोनों पद्धतियाँ 1300 ई . के बाद अलग – अलग होने लगी , इसका कारण विदेशी प्रभाव है , विभिन्नता होते हुए भी समता अधिक है ।
  • दोनों पद्धतियों में एक सप्तक में सा से लेकर ऊपर के सा तक शुद्ध और विकृत मिलाकर कुल बारह स्वर माने जाते हैं ।
  • दोनों पद्धतियों में सप्तक के शुद्ध और विकृत स्वरों से उत्पन्न किए । जाते हैं ।
  • दोनों पद्धतियों में घाट , राग का सिद्धान्त स्वीकार किया गया । दोनों पद्धतियों में रागों की कुल नौ जातियाँ औड्व, षाड्व एवं सम्पूर्ण इत्यादि मानी जाती हैं ।
  • दोनों पद्धतियों में आलाप गायन ‘ आकार ‘ द्वारा तथा नेतेरीना , तोम , नोम इत्यादि शब्दों को भी प्रयोग करके गाया जाता है ।
  • दोनों पद्धतियों में कुछ गीत प्रकारों की उत्पत्ति प्राचीन प्रबन्ध गायन से हुई है ।
  • दोनो पद्धतियों में शास्त्रीय संगीत एवं सुगम संगीत प्रचलित है ।

हिन्दुस्तानी एवं कर्नाटक रागों की तुलना

हिन्दुस्तानी एवं कर्नाटक रागों की तुलना –

दोनों पद्धतियों के स्वरों में अन्तर होने के कारण रागों में भी अन्तर पाया जाता है । कहीं – कहीं पर रागों के नामों में समानता है , परन्तु उनके स्वरूप में अन्तर पाया जाता है तथा थाट भिन्न हो जाने पर भी उनमें अन्तर दृष्टिगोचर होता है ।

कुछ राग नामों में भिन्नता होती है पर उनके स्वर , चलन व स्वरूप में समानता पाई जाती है । उदाहरणार्थ — हिण्डोल , श्री , सोहनी इत्यादि राग दोनों पद्धतियों में हैं , परन्तु इनके स्वरूप में भिन्नता पाई जाती है तथा

उत्तरी पद्धति का भैरवी राग कर्नाटक पद्धति में तोड़ी कहलाता है तथा उत्तरी पद्धति में जो तोड़ी राग है , वह कर्नाटक में हनुमत शुभपुंतवराली कहलाता है ।

जिस प्रकार उत्तरी पद्धति में रागों की तीन जातियाँ सम्पूर्ण , षाड़व , औड्व हैं , उसी प्रकार कर्नाटक पद्धति में रागों की पाँच जातियाँ पाई जाती हैं , जो इस प्रकार है । सम्पूर्ण , षाड़व , औड्व , वक्र और संकीर्ण

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कर्नाटक पद्धति में वादी – संवादी स्वरों का महत्त्व नहीं होता , जो उत्तरी पद्धति की खास विशेषता है ।

कर्नाटक पद्धति में रागों के स्वर गमक युक्त होते हैं और इन्हीं गमकों के प्रयोग द्वारा अनेक रागों का स्वरूप स्पष्ट होता है ।

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