राग दरबारी कान्हड़ा श्लोक – मृदु ग ध नि शुद्ध ऋषभ , वक्रहिं सब स्वर लाग । रि प वादी – सम्वादी ते , कहत कान्हड़ा राग ।। -राग चन्द्रिकासार
विषय - सूची
राग दरबारी कान्हड़ा संक्षिप्त विवरण
संक्षिप्त विवरण– इस राग की रचना आसावरी थाट से मानी गई है । ग , ध और नि स्वर सदैव कोमल लगते हैं । राग की जाति वक्र सम्पूर्ण है । गायन – समय मध्य रात्रि है । वादी स्वर ऋषभ और सम्वादी पंचम है ।
आरोह – सा रे म ग ऽ म रे सा , म प , नि ध नि सां ।
अवरोह – सां , ध ऽ नि प , म प म ग म रे सा ।
पकड़– सा रे म ग ऽ ग ऽ ( म ) सा रे ऽ सा ध नि रे सा ।
विशेषता ( राग दरबारी कान्हड़ा )
( 1 ) प्राचीन ग्रन्थकारों में भाव भट्ट के अतिरिक्त किसी भी शास्त्रकार ने दरबारी कान्हड़ा का उल्लेख नहीं किया है । भाव भट्ट शाहजहाँ का समकालीन था । शुद्ध कर्नाट ( शुद्ध कानडा ) से वह दरबारी कान्हडा समझता था । अन्य संस्कृत ग्रन्थों में कर्नाट राग का ही उल्लेख मिलता है । ऐसा मालूम पड़ता है कि कर्नाट बिगड़ता – बिगड़ता कांहड़ा हो गया ।
अब प्रश्न यह उठता है कि किस समय से दरबारी शब्द जोड़ा गया । इस शब्द से स्पष्ट है कि यह मध्यकालीन शब्द है । कहा जाता है कि तानसेन ने अकबर के सम्मुख कांहडा राग , जिसे उस समय कर्णाट राग कहते थे , एक नये तरीके से गाया । वह राग उसे बहुत पसन्द आया होगा । अतः अकबर के अनुरोध पर तानसेन ने उसे बार – बार गाया होगा और धीरे – धीरे उसे दरबारी कांहडा राग कहा जाने लगा ।
( 2 ) गंधार आरोह – अवरोह दोनों में और धैवत केवल अवरोह में वक्र प्रयोग किया जाता है । उदाहरण के लिए आलाप देखिये । लेकिन आश्चर्य यह है कि बहुत से विद्वानों ने अवरोह में ध वर्ज्य कर इसे सम्पूर्ण – षाडव जाति का राग माना है । अगर धैवत अवरोह में वक्र होने की वजह से वर्जित माना जाय तो गंधार ने कौन सा ऐसा कार्य किया है कि वह आरोह – अवरोह दोनों में वक्र होने पर भी उसे कहीं भी वर्जित नहीं माना जाता । अतः इसे वक्र – सम्पूर्ण राग माना जाना चाहिए ।
( 3 ) दरबारी का कोमल गंधार अन्य सभी रागों के कोमल गंधार से पृथक है । इसका गंधार एक ओर तो अति कोमल है तो दूसरी ओर आंदोलित होता रहता है । आंदोलन ऋषभ की सहायता से करते हैं जैसे- सा रे रे ग ऽ ग ऽ रेग ऽ रेसा रे सा । कभी – कभी म ग म रे सा , इस प्रकार भी बिना आंदोलन के ग प्रयोग किया जाता है । धैवत पर भी गन्धार के समान आंदोलन किया जाता है जैसे- निध ऽ निध ऽ ऽ नि प । कभी भी सा रे ग म प अथवा प म ग रे सा या, सां नि ध प , इस प्रकार ग और ध सीधा प्रयोग नहीं करते ।
( 4 ) कांहड़ा के 18 प्रकार माने जाते हैं , जैसे नायकी कांहडा , सूहा , सुघराई , अड़ाना , शहाना इत्यादि । इनका आधार राग दरबारी कांहड़ा माना जाता है । म ग म रे सा तथा नि ध नि प काहड़ांग माने जाते हैं ।
( 5 ) इस राग की चलन अधिकतर मंद्र और मध्य सप्तकों में होती है , किन्तु मंद्र सप्तक में यह विशेष रूप से खिलता है । अतः यह राग पुरूषों के लिए अधिक उपयुक्त है । इसे ‘ मर्दाना राग ‘ भी कहते हैं ।
( 6 ) इसमें सारंग अंग से तानें ली जाती हैं और बीच – बीच में कांहड़ा अंग ग म रे सा और ध नि प , लगा देते हैं जिससे दरबारी कांहड़ा स्पष्ट हो जाता है । उदाहरण के लिए इसमें दी गई तानें देखिये ।
( 7 ) यह आलाप प्रधान राग है । इसमें विलम्बित आलाप तथा विलम्बित ख्याल अधिक उपयुक्त लगते हैं ।
( 8 ) गंधार और धैवत वक्र होने के कारण इसमें ध नि प और ग म रे सा स्वरों की संगतियाँ अधिक दिखाई जाती हैं ।
न्यास के स्वर– सा , रे और प
समप्रकृति राग— अडाना
राग अड़ाना – मप – म प नि ध नि सां , नि सा रे सां ध नि प , निनिपमप ग म रे सा ।
राग दरबारी – म प नि ध ऽ नि ध ऽ नि प , निनिपमप म ग ऽ म ग म ऽ ऽ रेसानिसारे ऽ सा ।
तिरोभाव – आविर्भाव
मूलराग– सा रे ग ग म ग म रे सा , म रे प म प , ( दरबारी कांहड़ा )
तिरोभाव– ध प म प ग , रे म प ग ऽ रे सा , ( आसावारी )
आविर्भाव– म प निध सा नि सा नि सा , रे सा , ( दरबारी कांहड़ा )
Note:- इस राग में ग , ध और नि स्वर सदैव कोमल लगते हैं ।
आलाप
1. सा , नि सा , रे सा निसारेसा निध ऽध ऽ नि प . म प निध निध सानि ऽ सा , नि सा नि रे सा ।
2. निसारे ऽ रे , निसारे ऽ रेसा ऽ नि सा रे , निसारे ध नि प , म प निध ऽ ध ऽ नि सा , नि सा म सा निसारे ध ऽ नि प , म प सा ।
3. रेसानिसारे ऽ रे रे रेसा ऽ सानि ऽ नि रे ऽ रे , सारे सारे मग ऽऽ मग ऽ ( म ) रे सा , निसारे ध ऽ नि पम प निध ऽ ध नि सा , निसारे , रे सा , नि सा रे ऽ सा ।
4. म प , म प निध ऽ ध नि प , प , म प सां निध निप , म नि प , निनि पमप मग ऽ ग म ऽ रेसानिसारे ऽ सा , नि सा रे सा ।
5. म प निध ऽ ध ऽ सां नि सां , रे सां , मंग ऽ गं मं रें सां , मग ऽ म रे सा , रे नि सा ध ऽ नि प , म प सां ध ऽ नि प , म प म निप , निपमप सांऽ निपग ऽ ऽ म रे सा , नि नि सा रे सा ।
तानें
1. निसारेरे सासा , निसारेम गमरेसा निसारेम पनिमप गमरेसा निसारेम पनिसारे सांनिपम गमरेसा , निसारेम पनिसारें गंऽऽमं रेंसांनिसां निपमप गमरेसा ।
2. निसारेरे सासा निसारेरे सासा , मपनिनि पप मपनिनि पप मपनिनि पप , मपनिसां रेरेसांसां धऽनिप , सांसानिप मप गमरेसा ।
3. धनिसारे मरेसारे सारेमप निपमप निपमप मपनिसां रेंसांगम रेंसांगम रेंसांनिसां धनिमप गमरेसा ।
राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित हिंदी फ़िल्मी गीत
Hindi , Bollywood Film Song on Darbari Kanada
- आप की नज़रों ने समझा
- हम तुम से जुदा हो के मर जाएंगे रो रो के
- चांदी की दीवार ना तोड़ी
- सरफरोशी की तमन्ना
- मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये
- तोरा मन दर्पण कहलाये
- पग घूंगरू बांध मीरा नाची थी
- दिल जलता है तो जलने दे
- ओ दुनियाके रखवाले
- तू प्यार का सागर है
- तेरे दरपे आया हूँ कुछ करके जाऊंगा
- हंगामा है क्यों बरपा
- देखा है पहली बार
- इश्वर सत्य है
- संवारे मात जा
- मुझे तुमसे कुछ भी ना चाहिए
- बस्ती बस्ती पर्वत पर्वत
- देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे
- टूटे हुए ख्वाबो ने
- अगर मुझसे मोहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो
- याद में तेरी जाग जाग के हम
- मितवा लौट आयो रे
- तुमसे घर घर कहलाया
- कोई मतवाला आया मोरे द्वारे
- कभी दिल दिल से टकराता तो होगा
- उड़ जा भंवर माया कमाल का
- मेरी दुनिया बदल गयी
- हम तुमसे मोहब्बत करके सनम
- अब मेरी विनती सुनो भगवान्
- ये हवा ये रात ये चांदनी
- कितना हसीं है मौसम
- तुम्हे ज़िन्दगी के उजाले मुबारक
- घूंघट के पट खोल रे
- मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं
- मेरे महबूब शायद आज कुछ
- तेरी दुनिया में दिल लगता नहीं
- हम तुझ से मोहब्बत कर के
- ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल
- अब कहाँ जाएँ हम
- झनक झनक तोरी बजे पायलिया
- रहा गर्दिशों में हर दम
- गुज़रे है आज इश्क में
- दैया रे दैया लाज मोहे लागे
- जय राधा माधव जय कुञ्ज बिहारी
- शायेराना से है ज़िन्दगी की अदा
- प्यार की आग में तन बदन
- मेरे महबूब ना जा आज की रात ना जा
- हे राम तुम्हारी रामयण
- सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती
- नैनहीन को राह दिखा प्रभु
जैसे आपके मन में इस राग के प्रति जो भाव उत्पन्न हो रहे हैं , उससे बेहतर भाव आपको नीचे दिए गए राग पहाड़ी को ले कर आने वाले हैं –
दोनों लेख पढ़ने के बाद आप कमेंट कर के बताएं कि आपका पसंदीदा राग कौन है ?
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