नृत्य के घराने – Nritya Gharana

• राजदरबारों में विकसित कत्थक नृत्य परम्परा से घराना पद्धति का जन्म हुआ । नर्तकों ने अपनी – अपनी नृत्य शैली के आधार पर घरानों का नाम दिया । कत्थक के तीन मुख्य नृत्य के घराने हुएलखनऊ , जयपुर और बनारस

लखनऊ घराने की नृत्य शैली

  • ठाकुर प्रसाद व वाजिद अलीशाह दोनों कवियों ने मिलकर कत्थक नृत्य में कई गत निकास ठुमरी , गजल , भजन और छोटी – छोटी नृत्य नाटिकाओं की रचना की और कत्थक नृत्य को खूब सजाया – सँवारा , जिससे कि कत्थक नृत्य आज उच्चकोटि की नृत्यकला कहलाने योग्य बन गया ।
  • लखनऊ घराने की नृत्य शैली सुन्दर , भक्ति एवं लय प्रधान बनकर नटवरी नृत्य के रूप में विकसित हुई । लखनऊ घराने में कत्थक नृत्य के प्रारम्भ में सर्वप्रथम गुरु वन्दना एवं शिव वन्दना का अधिक प्रचलन है ।
  • गुरु वन्दना के बाद थाट प्रस्तुत किया जाता है , जो छोटा एवं खूबसूरत होता है , आमद व सलामी भी कत्थक नृत्य में लखनऊ की देन है । सलामी के बाद तोड़े व परन के कुछ खूबसूरत बोल होते हैं , जिन्हें नटवरी बोल कहते हैं । चक्करदार में लखनऊ घराने के बोल , तत , तत , थई होते हैं ।
  • लखनऊ में आठ मात्रा तीन ताल में ततकार करते हैं । लखनऊ घराना लास्य प्रधान होने के कारण इसमें कृष्ण एवं राधा से सम्बन्धित छन्द अधिक प्रयोग करते हैं । भाव प्रदर्शन यहाँ का मुख्य गुण है , इसमें शान्त एवं शृंगार रस का प्रयोग किया जाता है ।

लखनऊ घराने की वंश परम्परा

लखनऊ घराने की परम्परा में नटराज , गोपी – कृष्ण , दमयन्ती जोशी , रोशन कुमार तथा सितारा देवी ख्याति प्राप्त कलाकारों में से हैं । आधुनिक कलाकारों में उमा शर्मा , शोभना नारायण , रश्मि वाजपेयी , जयकिशन महाराज , उर्मिला शर्मा , बिरजू महाराज की पुत्री ममता महाराज लखनऊ घराने के प्रतिनिधि कलाकार हैं ।

जयपुर घराने की नृत्य शैली

  • जयपुर घराने की नृत्य शैली ताण्डव प्रधान है । यहाँ की नृत्य शैली में वीर रस की प्रधानता है । यहाँ के नर्तकों में लयात्मकता , गम्भीरता एवं भक्ति का पुट दिखाई पड़ता है । जयपुर का कत्थक नृत्य पखावज वादन पर आधारित है । यहाँ बड़े – बड़े परन , छन्द , ततकार एवं भजन पर बल दिया जाता है ।
  • जयपुर घराने के नर्तकों में शिव – पार्वती से सम्बन्धित कथा – वस्तु अधिक पाई जाती है ।
  • कत्थक नृत्य प्रारम्भ में जयपुर घराने के परम्परागत तौर पर गणेश वन्दना एवं शिवस्तुति ही अधिक करते हैं । इस घराने का थाट ताण्डव अंग का है , इसमें आमद के बोल त्राम आदि के प्रयोग के कारण कर्कश लगते हैं । गत निकास में इस घराने की विशेषता है ।

बनारस घराने की नृत्य शैली

  • बनारस घराने के नृत्य में बोलों की मौलिकता , हाव – भाव , तैयारी , स्पष्टता और सौन्दर्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है । भावाभिव्यक्ति इस घराने का एक प्रमुख गुण है । ततकार में एड़ी का प्रयोग अधिक किया जाता है ।
  • बनारस घराने के नृत्य में जयपुर एवं लखनऊ घराने से गति , मुड़ा एवं अंग की पृथक्कता दिखाई देती है ।

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