पखावज के घराने का वर्णन in Hindi, Pakhawaj ke Gharane

पखावज के घराने – पखावज के घरानों का वर्णन पखावज अवनद्ध वाद्ययन्त्रों का एक प्रकार है । पखावज उत्तरी वादन शैली का एक थापयन्त्र है , जिसका प्रयोग गायन एवं वादन शैली में होता है ।

  • पखावज वादन की अपनी परम्पराएँ एवं घराने रहे हैं जो निम्न प्रकार से हैं –
    • पंजाब घराना
    • नाना साहब पानसे घराना
    • जयपुर घराना
    • मथुरा घराना
    • अयोध्या अवधी घराना
    • कुदऊ सिंह ( दतिया ) घराना

पंजाब घराना

• पंजाब घराना उस्ताद फकीरबख्श इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं , इस घराने में उस्ताद कादिर बख्श व उस्ताद मल्लन खाँ अधिक प्रसिद्ध हुए । वर्तमान में उस्ताद अल्लारक्खा खाँ तथा इनके जाकिर हुसैन के नाम अग्रणी हैं । अब पंजाब घराना केवल तबले का घराना बनकर रह गया है ।

• ताज खाँ के पुत्र नासिर खाँ इनकी वंश एवं शिष्य में पण्डित कान्ता प्रसाद , नासिर हुसैन आदि अच्छे कलाकार थे । पंजाब घराने के अन्य पखावजी नासिर खाँ के अतिरिक्त , मक्खन लाल आदि हुए ।

नाना साहब पानसे घराना

नाना साहब पानसे घराना नाना साहब पानसे महाराष्ट्रीय कीर्तन परम्परा के पखावज वादक थे । एक बार उन्होंने काशी में जोधसिंह का पखावज वादन सुना तथा वहीं रुक गए व वर्षों तक उन्होंने जोधसिंह से पखावज की शिक्षा ग्रहण की ।

● फिर उन्होंने इलाहाबाद के माधव स्वामी से शिक्षा प्राप्त की तथा इन्होंने दतिया जाकर कुदऊ सिंह का पखावज वादन सुना तथा प्रसन्नता प्रकट की , फिर इन्होंने इन्दौर में राज्याश्रय प्राप्त किया तथा इन्दौर को ही अपना केन्द्र बनाया , इनकी परम्परा में अनेक विद्वान् हुए हैं , जिनमें सखाराम पन्त आग्ले सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए ।

● इनके शिष्य – प्रशिष्यों में गोविन्द राव बुरहानपुरकर , शंकर राव , आलकूतकर , बलवन्त राव पानसे तथा नारायण राव कोली आदि विद्वान् हुए । वर्तमान में कालीदास पन्त , संजय पन्त , अर्जुन सेजवाल , रमाकान्त पाठक , गोस्वामी बन्धु , वैध बन्धु तथा राजरव श्रीराम के नाम उल्लेखनीय हैं ।

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जयपुर घराना

जयपुर घराना • जयपुर अतरौली घराना हिन्दुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है । मुहम्मद अली खाँ इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं । इनके बेटे मशहूर गायक आशिक अली खाँ थे , इनके संस्थापक उस्ताद अल्लादिया खान थे ।

• जयपुर परम्परा आगे – चलकर नाथद्वारा पखावज परम्परा के नाम से प्रचार में आई । शंकर लाल के पुत्र घनश्याम दास ने अपने चाचा खेम लाल की अधूरी पुस्तक मृदंग सागर को पूरा किया । इस पुस्तक में विभिन्न तालों की जानकारी तथा चक्करदार , परने , रेले आदि हैं । 

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मथुरा घराना

मथुरा घराना – इस घराने का विकास श्री छेदाराम की ‘ पोथी ‘ के अनुसार लगभग 500 वर्ष पूर्व कोठिया नामक गाँव में हुआ था । ब्रज की भूमि में स्वामी हरिदास जी का जन्म स्थान है । ये ध्रुपद , धमार गायकी का केन्द्र होने के कारण मृदंग वादन की पद्धति है ।

मंदिरों के कीर्तन के साथ खोल वाद्य एवं पखावज वादन का प्रचार प्रसार अधिक मात्रा में पाया जाता है । इस घराने में श्री जोधसिंह के शिष्यों में श्री गंगाराम , मोतीराम , मक्खन , छेदा हैं । शंकर राव शिन्दे अघागांवकर ने इस घराने का विशेष प्रतिनिधित्व किया ।

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अयोध्या अवधी घराना

• अवधी घराने के प्रतिनिधि वादक स्वामी पागलदास ने इस घराने को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया है । बाबा रामकुमार दास के शिष्य बाबा ठाकुरदास , श्री राममोहिनी शरण , स्वामी रामदास ने अनेक शिष्य तैयार किए , जिनमें स्वामी भगवानदास ने चार दशक पूर्व अवधी घराने की नींव रखी ।

• इस घराने में पखावज के प्रत्येक पक्ष ; जैसे साहित्य , गणित , लयकारी , रचनाओं की विविधता , पढ़ंत संगति तथा स्वतन्त्र वादन आदि का सुन्दर समायोजन किया गया है ।

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कुदऊ सिंह ( दतिया ) घराना

• श्री कुदऊ सिंह अपनी शिक्षा समाप्त करके झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई के दरबार में कुछ दिन रहे । फिर 1857 ई . के गदर के बाद दतिया के महाराज भवानी सिंह ने उन्हें अपने यहाँ राज्याश्रय दिया । ये अपने समय के प्रख्यात पखावज वादक व सिद्ध पुरुष थे । श्री शीतला जी इनकी आराध्या थीं ।

• हाथी वश में करना , मृदंग उछालकर धा लगाना इनकी प्रमुख विशेषता थी । ऐसा कहा जाता है कि श्री कुदऊ सिंह ने एक प्रतिस्पर्द्धा में जोध सिंह पखावजी को हराकर एक हजार तत्कालीन मुद्रा का पुरस्कार जीता था । इनके शिष्यों के नाम इस प्रकार हैं- लाला झल्ली , पण्डित अयोध्या प्रसाद , ( बड़े ) पण्डित मदन मोहन उपाध्याय , बाबा रामकुमार दास , स्वामी पागलदास तथा छत्रपति सिंह, कुदऊ सिंह घराने के मुख्य प्रतिनिधि वादक थे ।

• घराना परम्परा आज भी सक्रिय है । धरोहर के रूप में अतीत की साधना का प्रतिफल ही वास्तव में घराना है , जिसे अक्षुण्ण रखना चाहिए ।

• संगीत घरानों में ही पनपा है और प्रत्येक घराने की अपनी वैयक्तिक शैली है ।

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• परम्परा में निरन्तरता का गुण निहित है , जो घराना परम्परा में विद्यमान है यानि घराने की गायन – वादन की परम्परा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और पीढ़ी – दर – पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती है । जिस तरह मानव जीवन में चहुंमुखी विकास के लिए घर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है , ठीक उसी प्रकार से संगीत में ऊंचा स्थान पाने के लिए किसी एक घराने की तालीम आवश्यक है । 

कुदऊ सिंह के अन्य महत्त्वपूर्ण पखावज के घराने

अन्य महत्त्वपूर्ण कुदऊ सिंह घराने -■ रामपुर घराना इस घराने में कुदऊ सिंह के शिष्य गया सिंह व गया सिंह के पुत्र अयोध्या प्रसाद तथा श्री रामजी लाल शर्मा प्रमुख हैं ।

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■ बंगाल घराना लाला केवल कृष्ण ने बंगाल में पखावज का प्रचार – प्रसार किया , इनके शिष्यों में दुर्लभदास तथा वर्तमान में राजीव लोचन हैं तथा इनके शिष्यों की संख्या नगण्य है ।

बाँदा घराना इस घराने में पण्डित जयोध्या प्रसाद उनके पुत्र शम्भू सिंह तथा वर्तमान में पण्डित रामदास के नाम उल्लेखनीय हैं ।

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गया घराना इस घराने में वासुदेव जी , छोटन पाठक और बलदेव जी उल्लेखनीय हैं । पन्नालाल तथा रामजी उपाध्याय प्रमुख हैं ।

दरभंगा घराना दरभंगा घराने के प्रतिनिधि वादक रामाशीष पाठक माने जाते हैं । मदनमोहन जी के शिष्य देवकीनन्दन पाठक ने कई शिष्य तैयार किए थे , जिनमें विशुन देव पाठक , वासुदेव उपाध्याय , शत्रुजय प्रसाद तथा केशव जी के नाम विशेष चर्चित हैं । 

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