इमदादखानी बाज क्या है ? Imdadkhani Baaj in Hindi

इमदादखानी बाज क्या है ? -ध्रुपद व बीन वादन के नियमों का पालन इस बाज में कट्टरता से किया जाता था । लेकिन कुछ समय के बाद सेनियों ने तन्त्र के अनुकूल गत शैली का निर्माण किया और सितार को गायन से पृथक् कर केवल तन्त्र के रूप में प्रयोग करने की प्रथा चलाई ।

इमदादखानी बाज / इटावा घराने का बाज

इमदादखानी बाज क्या है ?

• कालान्तर में कुछ सितार वादकों द्वारा ध्रुपद शैली के साथ – साथ ख्याल शैली के नियमों का मिश्रण सितार वादन में होने लगा । सितार वादन को तन्त्रकारी से मुक्त कर पुनः कण्ठ संगीत की जीवन्त धाराओं के अधिक – से – अधिक निकट लाने के प्रयत्न होने लगे । फलस्वरूप इसमें जिस वादन शैली का जन्म हुआ वह इटावा घराने का बाज अथवा इमदादखानी बाज के नाम से प्रसिद्ध हुई ।

कण्ठ संगीत को माधुर्य एवं कोमलता प्रदान करने के अतिरिक्त इटावा के कलाकारों ने सितार वादन को समस्त अंगों सहित समग्र रूप में प्रदर्शित किए जाने पर बल दिया । इनकी वादन शैली ने न केवल सितार वादन लोकप्रिय बनाया , अपितु उसे शास्त्रीय संगीत की गरिमा के अनुरूप सुसम्बद्ध रूप प्रदान किया । इटावा परम्परा के प्रसिद्ध सितार वादकों में उस्ताद इमदाद खाँ , इनायत खाँ , वहीद खाँ आदि के नाम प्राप्त होते हैं ।

इमदादखानी बाज की शैलीगत विशेषताएँ क्या है ?

  • • इस बाज में सुरबहार और सितार वादन की प्रणाली में विशेष परिवर्तन किया । ध्रुवपद के सादे ढाँचे पर आधारित सेनी बाज , रबाब , पखावज के विभिन्न नियमों का और सौन्दर्य उपकरणों का एक नवीन बाज की सृष्टि की गई ।
  • अलाप के 12 अंगों को सितार वादन में प्रयुक्त कर वादन सीमाओं की वृद्धि की गई ।
  • इमदाद खाँ ने इस बाज में ध्रुपद शैली के साथ – साथ ख्याल शैली के नियमों का मिश्रण किया । तान , सपाट और विभिन्न प्रकार की तिहाइयों का प्रयोग अपने सितार वादन में किया ।
  • एक ही पर्दे पर सातों स्वरों की मींड सरलतापूर्वक बजाना इनकी मुख्य विशेषता थी । गतकारी में विभिन्न प्रकार की लयकारी तथा विभिन्न प्रकार के तानों को सम्मिलित किया । एक ही वादक द्वारा दोनों प्रकार की रचनाओं को क्रमिक रूप से प्रस्तुत करने का चलन नहीं था ।
  • उस्ताद इमदाद खाँ ने क्रमिक रूप से मसीतखानी व रजाखानी गतों को प्रस्तुत करने की पद्धति निश्चित की , सुरबहार के आधार पर सितार में चिकारी के तारों का संयोजन किया और सितार पर झाला बजाने की प्रथा चलाई .
  • यह बाज विशेषकर बंगाल में अधिक लोकप्रिय हुआ और तत्कालीन लगभग सभी वादकों ने इसका अनुसरण किया और आज भी इस घराने के पुत्र व शिष्य इसी पद्धति के अनुसार अपना सितार वादन प्रस्तुत करते हैं ।

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