राग ललित परिचय- श्लोक :- द्वै मध्यम कोमल रिखब , पंचम सुर बरजोई । सम सम्वादि यादि ते , ललित राग शुभ होई ।। राग चन्द्रिकासार ।
राग ललित का परिचय ( संक्षिप्त विवरण )
- पूर्वी थाट जन्य राग ललित में धैवत और रिषभ कोमल तथा दोनों मध्यमों का प्रयोग होता है ।
- आरोह – अवरोह दोनों में पंचम पूर्ण रूप से वर्ज्य होने से राग की जाति षाडव – षाडव मानी जाती है ।
- वादी स्वर शुद्ध मध्यम तथा सम्वादी षडज है ।
- गायन समय – दिन का प्रथम प्रहर है ।
- आरोह – नि रे ग म , मं म ग , मं ध नि सां ।
- अवरोह – रें नि ध , म ध म म ग , रे सा ।
- पकड़ – नि रे ग म , मं म ग , मं ध मं म ग , ग ऽ मं ग रे सा ।
मतभेद- राग ललित का परिचय
( 1 ) कुछ गायक ललित में शुद्ध धैवत प्रयोग करते हैं . किन्तु अधिकांश गायक इसमें कोमल धैवत ही प्रयोग करते हैं । कोमल धैवत वाले ललित का प्रचार अधिक होने का मुख्य कारण उसकी – कर्णप्रियता है ।
( 2 ) भातखंडे जी ने इसमें शुद्ध धैवत माना है और इसे मारवा थाट के अन्तर्गत रक्खा है । सच तो यह है कि ललित दस थाटों में से किसी भी थाट में ठीक प्रकार से नहीं रक्खा जा सकता । इसे जबरदस्ती मारवा थाट में रक्खा गया है । राग ललित मारवा से स्वर और स्वरूप दोनों में , बिल्कुल नहीं मिलता , दोनों के स्वर बिल्कुल भिन्न हैं । ललित में शुद्ध मध्यम , जो राग का वादी है , बहुत प्रबल है और मारवा में शुद्ध मध्यम सर्वथा वर्ज्य है । लेखक के मतानुसार ललित को एक अलग थाट मानना चाहिये । इस थाट में ललित , मेघ रंजनी तथा अन्य नये राग जो भविष्य में उत्पन्न हो सकते हों , जिनमें ललित के समान दोनों मध्यम प्रयोग हों, आ जायेंगे । जब तक दस थाट माने जाते हैं कोमल ध वाले ललित को पूर्वी थाट में रखना उचित है ।
( 3 ) दोनों मध्यमों का प्रयोग इस राग की निजी विशेषता है । राग का यह एक नियम है कि किसी स्वर का दोनों रूप एक साथ न प्रयोग किया जाय , दूसरी ओर राग का दूसरा नियम यह है कि राग में रंजकता अवश्य होनी चाहिये । कहा भी गया है ‘ रंजित इति रागः ‘ । दूसरा नियम प्रथम की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होने के कारण ललित में द्वितीय नियम को प्राथमिकता दी गई है । अतः रंजकता की दृष्टि से दोनों मध्यमों का एक साथ प्रयोग सम्भव है । ललित एक ऐसा राग है जिसे प्रथम नियम का अपवाद मान लिया गया ।
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विशेषता
( 1 ) ध , मं म ग , इस स्वर – समुदाय को अधिकतर मींड में लिया जाता है , जो कानों को बहुत प्रिय लगता है । केवल इस स्वर – समुदाय से ललित राग स्पष्ट हो जाता है । इस लिये इन स्वरों को ललितांग कहा गया है ।
( 2 ) मध्य सप्तक में निषाद अल्प प्रयोग होता है , किन्तु मन्द्र सप्तक में अधिक होता है ।
( 3 ) शुद्ध धैवत वाले ललित को उत्तरांग में सोहनी , मारवा व पूरिया से बचाने की आवश्यकता होती है । ध मं ध राग ललित व सोहनी दोनों में प्रबल है । इसलिये शुद्ध ध की ललित गाते समय आरोह में निषाद अल्प रखते हैं ।
( 4 ) इसकी चलन सा से प्रारम्भ न होकर मंद्र नि से हुआ करती है जैसे- नि रे ग म ।
न्यास के स्वर – ग और म
समप्रकृति राग – मेघरंजनी
विशेष स्वर – संगतियाँ
1. नि रे ग म, मं म ग 2. मंध मं म ऽ ग 3. नि रे नि ध मं ध मं म ऽ ग 4. मं म ऽ ग , मं ग रे सा .
राग अड़ाना – रात्रि प्रहर Raag Adana song : आप की नज़रों ने समझा
“राग ललित का परिचय” के इस अध्याय में बस इतना ही । सप्त स्वर ज्ञान से जुड़ने के लिए के धन्यवाद ।