वीणा वाद्य यंत्र का परिचय – Veena Vadya Yantra ka Parichay

वीणा वाद्य यंत्र – वीणा भारत का ऐतिहासिक प्राचीनतम वाद्ययंत्र है जो ( वाद्य यंत्रों के प्रकार वर्गीकरण Musical instrument’s Classification ) में तत वाद्यों की श्रेणी में आता है । एक से सौ तार तक वाली वीणाओं की चर्चा भारतीय शास्त्रों में मिलती है । दक्षिण भारत में इसका विशेष प्रचार है ।

वीणा में कितने तार होते हैं?

वीणा में तारों की संख्या 7 होती है ।

वीणा बजाते समय उंगलियों में क्या पहना जाता है?

लोहे की मिजराब ( कोण ) पहना जाता है ।

वीणा का परिचय

  • वीणा के दो तूंबे या पेट पोले होते हैं जो कद्दु के बने होते हैं ।
  • वीणा की लम्बाई लगभग 3 फीट 7 इंच होती है ।
  • पहला तुम्बा ऊपर से 10 इंच की दूरी पर होता है और दूसरा लगभग 2 फीट 11 इंच की दूरी पर ।
  • इनका व्यास 14 इंच का होता है । डाँड ( फिंगर बोर्ड ) की लंबाई 21 इंच और चौड़ाई लगभग 3 इंच होती है ।
  • इसी के ऊपर पर्दे ( चल या अचल सारिकाएँ ) लगाए जाते हैं । इनकी संख्या 16 से 22 तक रहती है ।
  • डाँड से पर्दे की ऊंचाई 1/8 इंच तक और कम से कम 7/8 तक होती है ।
  • तारों की संख्या 7 होती है जिनमें से 4 तार ( दो स्टील के तथा दो पीतल के ) घुड़च के ऊपर से जाते हैं , दो बाई ओर होते हैं और एक सीधी ओर ।
  • बाज का मुख्य तार गांधार , मध्यम या धैवत में आवश्यकतानुसार मिलाया जाता है ।

वीणा वाद्य यंत्र के प्रकार

उत्तर भारतीय वीणा के ऊपर वाले तुंबे को बाएँ कंधे पर रखकर वीणा वादन किया जाता है । नीचे का तुम्बा सीधे घुटने पर रहता है । बाएं हाथ की उंगलियों को पदों पर दबाकर वादन किया जाता तथा कनिष्ठिका उंगली को प्राय : बाई ओर के मुक्त तारों को छेड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । सितार की भाँति सीधे हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगलियों में लोहे की मिजराब ( कोण ) पहनकर स्वराघात किए / बजाये जाते हैं ।

दक्षिण भारतीय वीणा की अपेक्षा उत्तर भारतीय वीणा के मिलाने की पद्धति भिन्न प्रकार की होती है । इसे ‘ रुद्रवीणा ‘ भी कहते हैं ।

जो वीणा जमीन पर रखकर बजाई जाती है और जिसमें बाएं हाथ की उंगलियों के स्थान पर बट्टे ( रॉड ) का प्रयोग किया जाता है उसे ‘ बट्टा बीन ‘ या विचित्र वीणा ‘ कहते हैं और यह भी उत्तर भारत में ही प्रचलित है । इसमें लगभग एक दर्जन तरब के तार होते हैं जो ऊपर के स्वरों के साथ गुंजित होते रहते हैं । विचित्र वीणा को ‘ स्वर वीणा ‘ भी कहते हैं । वीणा को बीन भी कहते हैं और वीणा – वादक को बीनकार या वैणिक

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सेनीय घराने के प्रवर्तक विलास खाँ द्वारा रुद्रवीणा का प्रचार भी काफी हुआ लेकिन अब उसकी उतनी लोकप्रियता नहीं रह गई है ।

वीणाओं के अन्य प्रकारों में उनके आकार – प्रकार एवं तंत्रियों के भेद से एक तंत्रीवीणा , कच्छपीवीणा , आलापिनीवीणा , कलावतीवीणा , कात्यायनी वीणा , किन्नरीवीणा , घोषवतीवीणा , चित्रावीणा , त्रितंत्रीवीणा , शततंत्रीवीणा , दारवीवीणा , ध्रुववीणा , नकुलीवीणा , नारदवीणा , नि : शंकवीणा , पिनाकीवीणा , परिवादिनीवीणा , बृहतीवीणा , भरतवीणा , ब्रह्मवीणा , महतीवीणा , रावणहस्तवीणा , वल्लकीवीणा , विपंचीवीणा , शारदीयवीणा , शाीवीणा , श्रुतिवीणा , सरोदीचीणा , सारंगवीणा , तुम्बरुवीणा , मायूरीवीणा , किरातवीणा , नन्दिकेश्वरवीणा इत्यादि वीणा भी होती हैं ।

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दाक्षिणात्य वीणा वाद्य यंत्र

  • इसमें एक ही तुंबा रहता है , परन्तु दाहिने सिरे पर लकड़ी का घट ( तुंबा ) दण्ड के साथ गूज की दृष्टि से जोड़ दिया जाता है ।
  • इसके तूंबे शीशम या कटहल की लकड़ी के बने होते हैं । कहीं – कहीं बायीं ओर कद्दू का तूंबा भी प्रयोग में लाया जाता है ।
  • इसमें 24 पीतल के पर्दे ( अचल सारिकाएँ ) मोम से जुड़े हुए होते हैं ।
  • मूल तन्त्रियाँ ( तार ) 4 होती हैं और 3 चिकारियों के तार होते हैं जो वीणा – दण्ड के पार्श्व में रहते हैं ।
  • मूल तन्त्रियों पर मुक्तावस्था में मध्य षड्ज , मन्द्र पंचम , मन्द्र षड्ज और अतिमंद्र पंचम बोलते हैं ।
  • चिकारियों पर तारस्थानीय षड्ज , पंचम और अतितारस्थानीय षड्ज बोलते हैं ।
  • मूल तन्त्रियों में पहली दो लोहे की और बाकी दो पीतल की होती हैं ।

दाक्षिणात्य वीणा इसे ‘ तंजौर वीणा ‘ भी कहते हैं जो दक्षिण भारत में प्रचलित है ।

गोट्टुवाद्यम या महानाटकवीणा

  • गोट्टुवाद्यम या महानाटकवीणा कर्नाटिक पद्धति का नवीन वाद्य है,
  • जिसमें उपस्वरों या अनुध्वनि के लिए सात तन्त्रियाँ दण्ड के अन्दर स्थापित होती हैं ।
  • इसका आकार वीणा के अनुसार ही होता है ।
  • वादन सीधे हाथ की उंगलियों से किया जाता है और बाएँ हाथ से लकड़ी के टुकड़े ( रॉड ) द्वारा तन्त्री को दबाकर स्वरों का उत्पादन किया जाता है ।
  • काष्ठदण्ड ( रॉड ) की लम्बाई 3 इन्च और व्यास 1 इंच होता है जो आबनूस की लकड़ी से बनाया जाता है ।
  • इसके द्वारा विविध गमक अच्छी तरह प्रदर्शित की जा सकती हैं लेकिन
  • वीणा के कुछ विशेष प्रयोग इसमें साध्य नहीं होते ।
  • इसमें 4 से 41/2 सप्तक तक वादन किया जा सकता है ।

दक्षिण की सरस्वती वीणा का रूप ही उत्तर भारत का सितार है ।

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वाद्य यंत्र वीणा बजाने की स्थिति Method

वीणा बजाने के लिए मुख्यत : तीन स्थितियाँ पाई जाती हैं ।

  • पहली में पालथी लगाकर एक पैर को दूसरे पर तिरछा रखते हुए जंघाओं का थोड़ा – सा सहारा लेकर ,
  • दूसरी में बायीं जाँच को जमीन पर रखकर सीधे घुटने को मोड़कर तथा
  • तीसरी में पहली पद्धति की तरह एक के ऊपर दूसरा पैर रखकर वीणा को गोद में लेकर बजाया जाता है ।

प्रत्येक स्थिति में बाएं हाथ से सारिकाओं पर वादन किया जाता है और दाएँ हाथ से मिज़राब , नखी या कोण के द्वारा तारों पर आघात किया जाता है ।

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निम्नलिखित का प्रदर्शन वीणा के द्वारा सर्वश्रेस्ट होता हैमींड, सूत , गमक , घसीट , श्रुतियों और तानों का जितना अच्छा प्रदर्शन वीणा के द्वारा हो सकता है उतना अन्य किसी वाद्य के द्वारा सम्भव नहीं होता । 

इस लेख में बस इतना ही । सप्त स्वर ज्ञान से जुड़ने के लिए धन्यवाद ।

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