लोकसंगीत की विधा कजली अथवा कजरी विभिन्न प्रांतों में जीवन के विभिन्न प्रसंगों, उत्सवों, त्यौहारों आदि पर गाये जाने वाले लोक गीत है । यह विभिन्न प्रकार के स्वर , ताल , पद द्वारा….
कश्मीर को ‘ भारत का स्वर्ग ‘ कहा जाता है , जो उत्तर भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण क्षेत्र है । प्राकृतिक परिवेश ने कश्मीर के लोकजीवन को स्फूर्ति ही नहीं दी….
‘ हरे – भरे खेत , हिम शिखरों से सुसज्जित ऊंचे घने वृक्ष , स्वच्छ कल – कल बहती नदियाँ , हिमाचल प्रदेश का अद्वितीय श्रृंगार है । इसके अनुरूप यहाँ के बहुरंगी लोकगीत है….
महाराष्ट्र का लोकसंगीत यहाँ के लोकसंगीत में विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले विभिन्न लोकसंगीत प्रचलित हैं । धान कूटते समय , खेत खलियान में काम करते समय , कपड़े धोते समय तथा श्रावण माह में झूलते….
लोक संगीत में लोकवाद्य का प्रमुख स्थान रहा है , यह इसका प्रमुख अंग है । इस अध्याय में हम लोक गीत संगीत में प्रयुक्त होने वाले लोकवाद्य यन्त्र के बारे में विस्तार से जानेंगे ….
भारतीय लोकसंगीत की उत्पत्ति , विकास तथा वर्गीकरण भारतीय लोकसंगीत का विकास मानव के सांस्कृतिक विकास के साथ तथा इसकी उत्पत्ति प्राकृतिक प्रक्रिया के साथ हुई । सांस्कृतिक….
पारंपरिक लोक संगीत से तात्पर्य है कि जो संगीत जनमानस के मन का रंजन करे, लोकसंगीत मन के अनछुए भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम होता है । वह अभिव्यक्ति , खुशी , व्यथा , विस्मय , आल्हाद , भक्ति और वात्सल्य किसी….
लोकसंगीत आदिकाल से ही जनजीवन का अभिन्न अंग रहा है । प्राकृतिक सौन्दर्य ने आदि मानव के भीतर जिज्ञासा उत्पन्न की फलस्वरूप ज्ञानेन्द्रियां जाग्रत हुईं और आदिमानव पशु – पक्षी , कीड़े – मकोड़े आदि के स्वर से ….
बंगाल के ग्रामीणों का प्राण है संगीत , घर , बाहर , खेत – खलिहानों इत्यादि के लिए वहां अलग – अलग तरह के गीत गाए जाते हैं । लोक-गीत प्रायः सप्तक के 2-3 स्वरों में ही गाए जाते हैं । कलकत्ता जैसे बड़े शहर में भी लोग अपने ग्रामीण लोगों से….