इस अध्याय में आज आप जानेंगे ताल से सम्बंधित वादकों के गुण और दोष के बारे में, चाहे वो किसी भी ताल देने वाले वाद्य यन्त्र को बजाते हैं, जैसे – तबला, ढोलक, नाल, मृदंग, ड्रम्स, इत्यादि । चलिए पहले जानते हैं ताल वादक के गुण के बारे में –
ताल वाद्य – वादकों के गुण – दोष । Rhythm Players Merits and Demerits .
ताल वाद्य वादक के गुण
- ताल , समय और स्वर का ज्ञान होना चाहिए ।
- हाथों में सौष्ठव , लाघव , बाहुल्य तथा दृढ़ता होनी चाहिए ।
- गीत में दक्ष और वाद्य – वादन , कला , लय , ग्रह एवं मोक्ष का ज्ञान रखनेवाला होना चाहिए ।
- हाथ हलका ( लघु ) हो , विभिन्न पाणियों का बोध हो , वादन की विधि एवं सिद्धि स्थान का गीता हो और ध्रुवाओं के गान में दक्ष हो ।
- कलाओं का अभ्यास करता हो , मीठे हाथ वाला हो , जिसमें एकाग्रता की शक्ति हो , आनन्दप्रद मार्जनाओं के निर्माण से प्रजा को अनुरक्त करनेवाला हो , वलवान शरीरवाला हो और बौद्धिक स्थिरतावाला हो ।
- जिसे वाद्यों के उचित लेपन प्रमाण का ज्ञान हो और जिसने चारों मार्गों पर परिश्रमपूर्वक वादन का विधिवत् प्रशिक्षण प्राप्त किया हो , सभी सिद्धियों को जिसने अर्जित किया हो , जिसके शरीर में कोई कमी या दोष न हो , जिसने सभी करणों के वादन का अभ्यास किया हो , जो शान्त स्वभाववाला और गीत का ज्ञाता हो , जिसे ग्रहों का अनेक प्रकार से ( या प्रचुर मात्रा में ) ज्ञान हो ( जिससे वह मात्राओं का प्रमाण गणित के आधार पर दुगुन , तिगुन आदि बढ़ कर तुरन्त करले ) , जो संगीत के प्रयोग प्रस्तुत करने एवं उनका ज्ञान रखने वाला हो , तो अपने इन विशिष्ट गुणों के कारण उसे श्रेष्ठ मृदंग वादक समझना चाहिए ।
- जो वादन की भ्रमण क्रिया में चतुर , ऊपर – नीचे होनेवाले हस्त – प्रयोग में दक्ष और काल का ज्ञान या ध्यान रखनेवाला हो , जिसे प्रयोग के दोषों या कम जोरियों का ज्ञान होने से उन्हें छिपाने की दक्षता प्राप्त हो और करणों के वादन का ठीक से अभ्यास हो तो इन गुणों के कारण उसे श्रेष्ठ वादक समझना चाहिए ।
- जो बैठक में दर्दुर का वादन स्थिरता और वादन में निपुणता लिए हुए करता हो , जो अपनी कला में दक्ष या स्फूर्तिसम्पन्न हो , जिसके हाथ में हलकापन हो , जिसे वादन का शास्त्रीय ज्ञान हो तथा जिसे दूसरे वाद्यों के वादन का भी ज्ञान हो तो ऐसे वाद की सभी ओर से प्रशंसा होती है ।
ताल वाद्य वादक – दोष / अवगुण
ताल वाद्य – वादकों के दोष
विद्वानों का मत है कि उपर्युक्त गुणों से रहित जिस वादक को ताल के विषय में ज्ञान न हो तथा जो अवसर , काल और शास्त्र को न समझता हो , उसे केवल ‘ चमड़ा कूटनेवाला वादक ‘ समझना चाहिए ।
ठीक ऊपर दिए लेख को पढ़कर आप जान सकते हैं – किसी भी वाद्य यन्त्र बजाने वाले ( गिटार, सितार, पियानो, इत्यादि ) वादक के गुण और दोष के बारें में । इस लेख में बस इतना ही । लेख पसंद आये तो शेयर करें और सब्सक्राइब करें ।
सप्त स्वर ज्ञान से जुड़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद ।