संगीत उत्पत्ति का आधार – प्राकृतिक/मनोवैज्ञानिक /वैज्ञानिक/धार्मिक आधार (ॐ)

संगीत के जन्म के सम्बन्ध में जितने भी अभिमत प्राप्त हुए हैं, वे प्रायः प्राकृतिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक अभिमत से प्राप्त तथ्य है, जिनके पूर्णरूप प्रभाव एवं साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं । परन्तु उनको ही सांगीतिक उत्पत्ति का आधार मानकर ही विश्व भर में संगीत के सिद्धान्तों एवं उसके वर्गीकरण का अध्ययन स्वीकार्य है ।

संगीत की उत्पत्ति का आधार क्या है ?

  • संगीत के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने धार्मिक मान्यताओं के आधार पर अपने – अपने विचार व्यक्त किए हैं । कुछ विद्वानों मानना है कि संगीत की उत्पत्ति वेदों के निर्माता ब्रह्मा द्वारा हुई है । लेकिन अनेक विद्वानों द्वारा संगीत क उत्पत्ति के सम्बन्ध में भिन्न – भिन्न धारणाएँ उनके द्वारा रचित ग्रन्थों में मिलती है , इनमें से कुछ विद्वान् धार्मिक आधार पर तथा कुछ प्राकृतिक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से संगीत की उत्पत्ति मानते हैं । संगीत अनादि है , ऐसा कहा गया है कि मनुष्य के साथ – साथ ही संगीत का जन्म भी पृथ्वी पर हुआ । सत्य यही है कि संगीत सप्त स्वरों निकली लहरें हैं , जो जल की धारा की तरह सदैव प्रवाहित होती रहती है ।
  • पाश्चात्य विद्वान् फ्रायड के अनुसार , संगीत की उत्पत्ति एक शिशु के समान है , इसको मनोवैज्ञानिक आधार पर क सकता है कि जिस प्रकार बालक अपनी सभी क्रियाएँ ; जैसे – रोना , चिल्लाना , बोलना आदि अप आवश्यकतानुसार सीख लेता है , उसी प्रकार संगीत का प्रादुर्भाव , मानव में मनोवैज्ञानिक आधार पर स्वयं हुआ .
  • जेम्स लौग के अनुसार , पहले मनुष्य ने चलना , बोलना आदि क्रियाएँ सीखीं और तत्पश्चात् उसमें भाव जाग्रत फिर उन भावो की अभिव्यक्ति हेतु संगीत की उत्पत्ति हुई ।
  • दामोदर पण्डित के अनुसार , “ संगीत के सात स्वर सात विभिन्न पशु – पक्षियों की ध्वनि की ही देन हैं ” मोर षड्ज , चातक से ऋषभ , बकरे से गन्धार , कौए / कौआ से मध्यम , कोयल से पंचम , मेढक से धैवत तथा हाथी से हाथ निषाद स्वर की उत्पत्ति मानी गई है ।

संगीत की उत्पत्ति का आधार

संगीत की उत्पत्ति का आधार निम्नलिखित हैं –

प्राकृतिक आधार

प्राकृतिक आधार – संगीत का उद्भव स्थल प्राकृतिक ध्वनियों का अनुकरण है । प्रकृति और संगीत का सीधा सम्बन्ध जोड़ते हुए अनेक विद्वानों ने संगीत को ‘ प्रकृति की आत्मा ‘ कहा है । इस सम्बन्ध में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित है कोहकाफ नामक पर्वत पर एक पक्षी रहता है , जिसे फ्रांस में ‘ अतिशजन ‘ तथा यूनान में ‘ फैनिक्स ‘ कहते है । इस पक्षी को चोच में सात छिद्र होते हैं , जिनमें से हवा के प्रभाव से सात प्रकार की ध्वनियों निकलती है । ये सात ध्वनियाँ ही सात स्वर कहे गए , लेकिन इस तरह का कोई पक्षी है भी या नहीं इस विषय में किसी को कोई जानकारी नहीं है ।

अरब के सुप्रसिद्ध इतिहासकार ओलासीनिज्म ने अपनी पुस्तक ‘ विश्व का संगीत ‘ में संगीत का जन्म बुलबुल नामक चिड़िया से माना है । उस चिड़िया की ध्वनि से प्रभावित होकर आदि मानव उसकी चहक की नकल करके , वही स्वर निकालकर आनन्दित होते थे । ओलासीनिज्म ने माना है कि ईश्वर ने बुलबुल को संगीतवाहक के रूप में भेजा था । मतंगकृत बृहद्देशी में कोहल के नाम से निम्न श्लोक भी उपलब्ध हैं ।

” षड्ज वदति मयूर ऋषभ चातको वदेतु

अंजा वदति गान्धार क्रौंच वदति मध्यमा

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पुष्प साधारण काले कोकिल पंचमो वदेतु

प्रवृटकाले तु सन्तप्राप्ते धैवत द्रद्रशे

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वदेतु सर्वदा च तथा देवी निषाद वदेत – गजः ।।

पशु – पक्षियों की ध्वनि से संगीत के उद्गम का यह सिद्धान्त निःसंकोच ही सत्य माना जा सकता है कि आरम्भ में अलग – अलग ध्वनियों को सुनकर उन्हीं ध्वनियों को निकालने की प्रेरणा पाई हो , परन्तु तर्क की दृष्टि से देखा जाए , तो ऐसा भी माना जा सकता है कि मनुष्य द्वारा अपनी अनुभूति के अनुरूप ही कुछ विशेष ध्वनियों का संकलन अपने मन में किया गया है । इस प्रकार अनेक पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने इस विषय में अपने विचारों को प्रकट किया तथा किसी ने बुलबुल को , किसी ने अतिशजन को तथा किसी ने जलध्वनि को , किसी ने पशु – पक्षियों को आधार मानकर संगीत की कल्पना की । मनुष्य ने प्रकृति में समाहित ध्वनि एवं गति को समझा और उसे अपने मस्तिष्क में धारण करके उसी तरह की ध्वनि निकालने का प्रयास किया होगा और इसी ध्वनि एवं गति ने आगे चलकर मानव में संगीत के स्वर व लय का संचार किया ।

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धार्मिक आधार ॐ – ‘ ओउम् ‘

धार्मिक आधार- संगीत के जन्म के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपनी – अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विभिन्न विचार व्यक्त किए हैं । संगीत की उत्पत्ति सर्वप्रथम वेदों के निर्माता ब्रह्मा द्वारा हुई , ब्रह्मा ने यह कला शिव को दी और शिव द्वारा सरस्वती को प्राप्त हुई । सरस्वती से संगीत कला का ज्ञान नारद को प्राप्त हुआ । नारद ने स्वर्ग के गन्धर्व , किन्नर तथा अप्सराओं को संगीत की शिक्षा दी , वहाँ से ही भरत , हनुमान आदि ऋषि इस कला में पारंगत होकर भूलोक में संगीत के प्रचारार्थ अवतरित हुए । पण्डित अहोबल के अनुसार , ” ब्राह्मा ने भरत को संगीत की शिक्षा दी तथा पण्डित दामोदर ने भी संगीत का आरम्भ ब्रह्मा को ही माना है ।

” कुछ विद्वान् संगीत का उद्भव ‘ ओउम ‘ शब्द से मानते हैं , यह एकाक्षर ओम अपने अन्दर तीन शक्तियों को समाहित किए हुए हैं – अ , उ , म ये तीनों ही शक्ति का प्रतीक हैं । ‘ अ ‘ शब्द जन्म व उत्पत्ति का प्रतीक है । ‘ उ ‘ धारक पालक रक्षा का प्रतीक एवं ‘ म ‘ शब्द विलय शक्ति का प्रतीक है । अत : ओउम वेदो का बीज मन्त्र है , इसी बीज मन्त्र से सृष्टि की उत्पत्ति मानी गई है और इसी से नाद की उत्पत्ति हुई है ।

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इस प्रकार शब्द और स्वर दोनों की उत्पत्ति ओउम से ही मानी गई है । का कथन है कि ऋग्वेद , सामवेद व यजुर्वेद में अ , उ , म में तीन अक्षर मिलकर प्रणव बना , श्रुतिस्मृति के अनुसार यह प्रणव हा परमात्मा का अति सुन्दर नाम है ।

मनोवैज्ञानिक आधार

मनोवैज्ञानिक आधार संगीत के जन्म के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले विद्वानों में मुख्य रूप से यूरोप के विचारकों के मत अधिक दृष्टिगोचर होते हैं । भारतीय संगीत ऐसी कोई मनोवैज्ञानिक पद्धति नहीं है , जिसके आधार पर शिक्षण संस्थानों विशेष लाभ मिल पाए । संगीत को मनोविज्ञान का विशिष्ट आधार माना जाता है ।

जैम्स लौग के अनुसार , ” पहले मनुष्य ने चलना , बोलना आदि क्रियाएँ सीखों और तत्पश्चात् उसमे भाव जाग्रत हुए , फिर उन भावों की अभिव्यक्ति के लिए संगीत की उत्पत्ति हुई । ”

इस विषय में कर्टसच ने भावाभिव्यक्ति की सहायता से संगीत के जन्म को माना है । वस्तुतः संगीत का उद्भव मानव जीवन के पृथ्वी पर आगमन के साथ ही हो गया था । परिवर्तन सृष्टि का नियम है और इसी परिवर्तन के साथ – साथ संगीत में भी अनेक परिवर्तन आए । अतः मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मनुष्य ने अपने हृदय के उद्गारों को प्रकट करने की आवश्यकता महसूस की होगी । और फिर उसने ध्वनि का सहारा लिया होगा और ऐसा माना जा सकता है कि इसी भावाभिव्यक्ति की आवश्यकता ने संगीत के उद्भव की प्रथम प्रक्रिया का आरम्भ किया होगा ।

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संगीतत्पत्ति के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को सुप्रसिद्ध विद्वान् हलटोरिंश आइबो ने ‘ द हिस्ट्री ऑफ म्यूजिक ‘ में व्यक्त करते हुए कहा है कि ” सृष्टि के सृजन के साथ पुरुष और नारी मिलन गए । वे स्वर इतने मधुर व अभिसार पर जो स्वर मुखरित हुए , वही संगीत बन थे आकर्षणपूर्ण थे कि जिसको सुनकर कोई भी प्राणी हो सकता था , क्योंकि वे स्वर मधुर क्षणों के विशाल गर्भ में प्रसूत हुए थे . इन्हीं स्वरों का आगे चलकर संगीत के रूप में विकास हुआ । ”

वैज्ञानिक आधार

वैज्ञानिक आधार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संगीत की उत्पत्ति ध्वनि आन्दोलनों के परिणामस्वरूप होती है । दो वस्तुओं की आपसी रगड़ आस – पास की वायु को आन्दोलित करती है एवं जल तरंगों की तरह वायु वातावरण में भी तरंगे उत्पन्न होती हैं और यही कम्पन हमारे कर्णेन्द्रीय को स्पन्दित करती है , जिससे हमारी चेतना को ध्वनि का अनुभव होता है ।

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संगीत मात्र सामान्य ध्वनि ही नहीं , अपितु यह तो सूक्ष्म अन्तनियों के उद्घाटन का सबल साधन भी है । जैसा कि कहा भी जा चुका है कि संगीत का आधार नाद है , जिसे ईश्वर के समान अनन्त बताया गया है , इसे नाद ब्रह्मा भी कहा जाता है ।

निष्कर्ष Conclusion

निष्कर्षत : यह कहा जा सकता है कि संगीत के जन्म के सम्बन्ध में जितने भी अभिमत प्राप्त हुए हैं । वे प्रायः प्राकृतिक , धार्मिक एवं मनोवैज्ञानिक अभिमत से प्राप्त तथ्य है , जिनके पूर्णरूप से प्रभाव एवं साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं । यहाँ सांकेतिक प्रतीकात्मक ध्वनियाँ सांगीतिक स्वरों के प्रारम्भिक रूप हैं ।

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आदिमानव पशु – पक्षियों को बोलियों की नकल , दो वस्तुओं के टकराव से उत्पन्न ध्वनि इत्यादि आवाजों से प्रेरणा प्राप्त कर विभिन्न प्रकार की आवाज निकालने का प्रयास किया होगा और धीरे – धीरे इसी प्रकार के किए गए प्रथलों के परिणामों में संगीत के प्रारम्भिक रूप का विकास हुआ होगा ।

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