बृहद्देशी मतंग मुनि – ” बृहद्देशी ” मतंग मुनि कृत ग्रन्थ संगीत का एक अद्वितीय ग्रंथ है जिसकी रचना प्राचीन काल में हुई है।भरत मुनि कृत ‘नाट्यशास्त्र’ के भांति ही यह ग्रंथ भी संगीत के विकास में बहुत उपयोगी रहा है। इस ग्रंथ के समय के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। कुछ विद्वान इसे सातवें, कुछ आठवी तथा कुछ 9वीं शताब्दी का मानते हैं। डॉ राघवन के विचार अनुसार इस रचना को 825 से 875 के मध्य का समझना चाहिए।
विषय - सूची
10 अध्याय (“बृहद्देशी” मतंग मुनि)
इस ग्रंथ के प्रकाशित संस्करण में अध्यायों की संख्या नहीं दी गई है। केवल अंतिम अध्याय के बारे में यह लिखा गया है कि यह छठा अध्याय है। लेकिन प्रकरणों के अनुसार इसके अध्यायों को 10 प्रकार से विभाजित कर सकते हैं।
- देसी लक्षणम्
- नादोत्पत्ति
- श्रुति निर्णय
- स्वर्ण निर्णय
- 33 अलंकार
- गीतियां
- जाति
- राग लक्षणम्
- भाषा लक्षणम्
- प्रबंध अध्याय ।
कई विद्वानों ने मतंग को वाद्यों में निपुण बताकर उन्हें अत्यंत आदर और सत्कार की दृष्टि से देखा । वैसे भी इन्हें चित्रवीणा का महान कलाकार माना है। जिसके लिए राणा कुंभा ने इन्हें चैत्रिक कहा है।
मतंग के अनुसार जातियों से ही ग्राम रागों की उत्पत्ति हुई है तथा स्वर और श्रुतियों से जातियों का जन्म हुआ है।
‘ राग – जाति ‘ की परिभाषा
राग – जाति की परिभाषा देते समय मतंग लिखते हैं कि ” स्वरों का ऐसा आकर्षक मेल जो चित्त को प्रसन्नता दे राग कहलाता है “। जातियों के विषय में उन्होंने वही 10 लक्षण भरत के अनुसार माने हैं।
जाति के 10 लक्षण
- ग्रह
- अंश
- तार
- मन्द्र
- षाड़व
- औड़व
- अल्पत्व
- बहुत्व
- न्यास
- उपन्यास
जाति के 10 लक्षण बताए गए हैं। जो कि आज भी रागों में प्रयुक्त होते हैं।
इस ग्रंथ में मतंग ने देशी की उत्पत्ति और लक्षण नादोत्पत्ति के अंतर्गत नाद महिमा, उत्पत्ति, प्रकार और पांच भेदों की चर्चा की है। श्रुति निर्णय के अंतर्गत श्रुत्युत्पत्ति, चार प्रकार की श्रुतियाँ, 66 और 22 श्रुतियों में अंतर, श्रुति का प्रमाण और परिणाम, श्रुति और स्वर में संबंध के विषय में चर्चा की गई है।
ग्राम का वर्णन करते हुए मतंग ने ग्राम की उत्पत्ति तथा प्रयोजन को बताया है। ग्राम का प्रयोजन, स्वर श्रुति, मूर्छना, तान, जाति रागों की व्यवस्था के लिए कहा है।
स्वर निर्णय के अंतर्गत वादी, संवादी, अनुवादी और विवादी स्वरों की व्याख्या, स्वरों के वर्ण, कुल और देवता, सप्त स्वरों और 12 स्वरों की मूर्छना विधि, मूर्छना और तार में अंतर, भरत की सप्त स्वर मूर्छना के साथ-साथ द्वादश स्वर मूर्छनावाद का उल्लेख भी किया है।
मतंग ने 33 प्रकार के अलंकारों का उल्लेख अपने इस ग्रंथ ” वृहद्देशी ” में किया है। सात शुद्ध और 11 विकृत जातियों को स्वीकार किया है। जातियों के लक्षण, ग्रह आदि का भी विस्तृत वर्णन दिया है।
रागों का विवरण – ” बृहद्देशी ” मतंग मुनि
brihaddeshi matanga muni बृहद्देशी मतंग मुनि के विषय में जो एक सबसे महत्वपूर्ण बात है वह यह है कि आज तक के उपलब्ध ग्रंथों में सबसे पहले वृहद्देशी में रागों का विस्तृत विवरण मिलता है। जिसमें 30 ग्राम रागों के नाम पुलिंगवाची और भाषा – विभाषा,अंतर भाषाओं के नाम सर्वत्र स्त्रीलिंगवाची हैं।
राग की परिभाषा को मतंग ने भिन्न-भिन्न रूप से प्रस्तुत किया है। मतंग ने रागों को सप्त गीतियों के अंतर्गत माना है। शुद्धा, भिन्ना, गौड़ी, राग तथा साधरणी गीति के अंतर्गत 32 रागों के नामों का वर्णन किया है।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि इस ग्रंथ में ” वृहद ” रूप से देशी रागों की व्याख्या की गई है। मतंग ने इन्हीं प्रचलित देशी रागों के सिद्धांतों को स्पष्ट करने के लिए इस ग्रंथ को लिखा है। मतंग के समय में न केवल जातियों का स्थान रागों ने ले लिया था वरन अनेक प्राचीन रागों के स्थान पर कुछ नवीन राग भी प्रचलित हो गए थे। मतंग ने सर्वप्रथम संगीत के साहित्य में ‘ राग ‘ शब्द का प्रयोग किया है।
मतंग के समय में न केवल जातियों का स्थान रागों ने ले लिया था वरन अनेक प्राचीन रागों के स्थान पर कुछ नवीन राग भी प्रचलित हो गए थे। मतंग ने सर्वप्रथम संगीत के साहित्य में ‘ राग ‘ शब्द का प्रयोग किया है।
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