राग रामकली श्लोक – भैरव सी है रामकली , बरजे म नि आरोहि औडव – सम्पूरन कही , सम्पूरन अवरोहि ।। -राग चन्द्रिकासार
राग रामकली का संक्षिप्त विवरण – इसमें ऋषभ धैवत कोमल , दोनों निषाद तथा दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते हैं । इसकी उत्पत्ति भैरव थाट से मानी गई है । वादी – संवादी क्रमशः प – सा है । गायन – समय दिन का प्रथम प्रहर है तथा राग की जाति षाडव – सम्पूर्ण है ।
आरोह– सा ग , म प , ध नि सां । अवरोह– सां नि ध प , म प , ध नि ध प , ग म रे सा । पकड़– प , म प ध नि ध प , ग म रे रे सा ।
विषय - सूची
समस्या
क्रमिक पुस्तक मालिका ( प्रथम हिन्दी संस्करण ) के चौथे पृष्ठ 312 पर पंडित विष्णु नारायण भातखंडे जी लिखते हैं ‘ रामकली का वादी स्वर कोई धैवत मानता है तो कोई पंचम । सम्वादी रिषभ सर्व – सम्मति से है । दोनों मध्यम व दोनों निषाद लगने वाले प्रकारों में वादी पंचम मानना अनुचित नहीं है । अब समस्या यह कि वादी धैवत माना जाये अथवा प । राग भैरव में , जो रामकली के बहुत समीप है , धैवत वादी व रिषभ सम्वादी है । अत : रामकली राग में ध,रे वादी – सम्वादी मानने से भैरव की छाया आने की आशंका हो सकती है । इसके अतिरिक्त रामकली राग में पंचम स्वर का बड़ा महत्व है । अतः ध वादी मानने से प की महत्ता कम होगी । राग के स्वरूप को ध्यान में रखते हुये ऐसा करना ठीक भी नहीं है , अतः प सा को वादी – सम्वादी मानना अधिक न्याय – संगत प्रतीत होता है ।
राग रामकली के अन्य प्रकार
( 1 ) रामकली के प्रथम प्रकार के आरोह में मध्यम और निषाद स्वर वर्ज्य करते हैं और अवरोह में सातो स्वर प्रयोग करते हैं । राग चन्द्रिकासार में इसी प्रकार की रामकली का वर्णन किया गया है ।
( 2 ) दूसरे प्रकार में रामकली को सम्पूर्ण जाति का राग माना गया है । भैरव और रामकली में मुख्य अन्तर यह है कि भैरव का विस्तार मुख्यतः मंद्र व मध्य सप्तकों में और रामकली का मध्य और तार सप्तकों में होता है ।
( 3 ) तीसरे प्रकार में दोनों गंधार माना जाता है । रामकली का यह प्रकार प्रचार में बिल्कुल नहीं है ।
( 4 ) चौथे प्रकार की रामकली का वर्णन पीछे दिया जा चुका है । प्रचार में यह प्रकार अधिकांश विद्वानों द्वारा मान्य है ।
राग रामकली – विशेषता
( 1 ) इसमें दोनों मध्यम तथा दोनों निषादों का प्रयोग होता है , तीव्र मध्यम का प्रयोग आरोह में पंचम के साथ होता है , जैसे- सा ग म प ध ध प , म प ध नि ध प , किन्तु कभी ग म प , नहीं प्रयुक्त होता । कोमल नि का वक्र प्रयोग अवरोह में धैवत के साथ होता है जैसे- प म प . ध नि ध प , ग म नि ध प , अथवा सां नि ध निध प .। तीव्र म और कोमल नि रामकली को भैरव से अलग रखते हैं ।
( 2 ) इस राग में केवल दो बार भैरव के समान रे और ध पर आंदोलन किया जाता है । दोनों में अंतर यह है कि भैरव का आंदोलन गंभीर और कई बार , किन्तु रामकली का आंदोलन अपेक्षाकृत चंचल , किन्तु कम होता है ।
( 3 ) यह प्रातःकालीन संधिप्रकाश राग है । नियम यह है कि प्रातःकालीन संधिप्रकाश रागों में रे कोमल , ग शुद्ध होने के साथ – साथ म भी शुद्ध होना चाहिये । इसमें दोनों मध्यम अवश्य लगते हैं , किन्तु तीव्र म की अपेक्षा शुद्ध म प्रधान है ।
( 4 ) कुछ विद्वान इसकी जाति सम्पूर्ण मानते हैं , किन्तु आरोह में रिषभ अति अल्प रखते हैं , बहुधा उसे छोड़ भी देते हैं और नि सा ग म प ऽ म प प्रयोग करते हैं । कभी – कभी नि सा ग म रे , रे ग म प ग म रे रे सा प्रयोग कर लेते हैं ।
न्यास के स्वर– सा और प
समप्रकृति राग– भैरव
विशेष स्वर – संगतियाँ
1. प म प ध नि ध प ,
2. ग म नि ध प ,
3. सां नि ध नि ध प ,
4. म प , ग म रे रे सा ,
5. ग म प , निध ऽ ध प , मं प ,
स्वरों का अध्ययन
सा – सामान्य
रे – आरोह में अल्प और अवरोह में अलंघन बहुत्व ,
ग – अलंघन बहुत्व
शुद्ध म- अलंघन बहुत्व
तीव्र म – अल्प , किन्तु विशिष्ट स्थान पर अनाभ्यास बहुत्व
प – दोनों प्रकार का बहुत्व
ध – अलंघन बहुत्व
नि – अलंघन बहुत्व ,
नि – अल्प किन्तु विशिष्ट स्थान पर अनाभ्यास बहुत्व
तिरोभाव – आविर्भाव
मूल राग – नि सा ग म प , म प ध नि ध प म प , ( रामकली )
तिरोभाव – ग म ग म प म ग ऽ म ग ऽ , ( कालिंगड़ा )
आविर्भाव – ग स गरे गरे सा , ग म निध निध प मं प ।
राग रामकली – आलाप
1. सा , ग म प , ध ध प , म प ध नि ध प , प ग ऽ म निध ऽध ऽ प , ग म प , ग म गरे रे सा ।
2. सा ध ऽ नि सा , रे रे सा ग म प , ग म रे रे सा , नि सा ग म ग म ध ऽ ध ऽ प , मं प ध नि ध प ग म प , ग म गरे ऽ गरे ऽ सा , ग म प ग म गरे ऽ रे सा . मग ऽ म प ।
3. सा ग म प , मंप निध ध ऽध प , प मं प ध नि ध प , गम नि ध प , सा ग म प नि ध प , नि ध प , मं प ध नि ध प , ध प ध मं प ग ऽ म गरे गरे सा , मग म प ग म निध ऽ ध प ।
4. प मं प ध ध प , प ग म निध निध प , ध नि सां नि ध नि ध प . ग म ग म सां नि ध प , मं प ध नि ध प , ध नि सां ऽ सां नि ध नि ध ध प ग म प , ग म नि ध ध नि सां रें रें सां , सां नि ध ध प मं प , ग म ध नि सां नि ध प मं प , ग म प , ग म रे रे सा ।
5. पप निध ऽ निध ऽ नि सां , ध नि सां , ध नि सां गंरें गंरें सां , गं मं रें सां , ध नि सां रें सां , नि सां ध प , म प ग म ध ऽ नि सां नि ध प , म प ध नि ध प , मं प ग म रे रे सा , गमप ग म निध निध प , ग म गरे गरे सा ।
राग रामकली – तानें
1. निसा गग रेसा निसा गम रेसा निसा गम पप मंप धनि धप मंप गम पप मग रेसा , निसा गम पध निसां सांनि धनि धप मंप धनि धप मप गम पप गम रेसा ।
2. मप धप मंप , मप धनि धप मंप , मंप धनि सांनि धनि धप मंप , मंप धनि सारे निसां धप मप , मप धनि सांगं रेंसां निसां रेंसां सांनि धनि धप मप गम रेरे सा ।
3. सांनि धनि धप मंप गम पप गम रेसा , सारे सांनि धप मंप धनि धप मंप गम पम गरे सा , सांगं मंगं रेंसां निसां सांनि धनि धप मंप गम पप मग रेसा ।
4. गम गप मप , गम गप मप , गम पध पध मप , गम गनि धप मप , पध पनि सारें निसां , सांरें निसां धनि धप , गम गनि धनि धप गम गप मप गम रेग सारे निसा ।
5. धनि सांरें सांनि धप मंप , गम धनि सांरें सांनि धप मंप , गम धनि सांसां रेंसां सांरें सांनि धनि धप मप , गम धनि सांगं मंग रेंसां सांरें सांनि धनि धप मंप गम , गम पम गरे सा ।
” सप्त स्वर ज्ञान “ से जुड़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद ।