अजराड़ा घराना तबला : Ajrada Gharana Tabla

अजराड़ा घराना तबला in Hindi • दिल्ली घराने के तबला वादक उस्ताद सिताब खाँ के प्रसिद्ध शिष्य कल्लू खाँ और मीरू खाँ ने अजराड़ा घराने की नींव डाली । ये दोनों भाई मेरठ जिले के अजराड़ा नामक गाँव के निवासी थे ।

अजराड़ा घराना तबला

सिद्धार खाँ के पौत्र सिताब खाँ साहब में तबले की पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर अपने गाँव वापस लौट आए । तदुपरान्त इन्होंने अपने हुनर , अथक परिश्रम से नवीन वादन शैली का प्रादुर्भाव किया , जिसमें आड़ लय के बोलों की अधिकता , डग्गे के धुमकदार बोलों का प्राधान्य , तर्जनी , मध्यमा के साथ – साथ अनामिका का प्रयोग , वर्ण चाँटी के स्थान से हटकर स्याही के अग्र भाग पर अनामिका से , कायदे पेशकार रेला के उत्तरार्द्ध भाग में पूर्वार्द्ध भाग से हटकर दूसरे खाली दर्शक बोलों का निर्वाह आदि विशेषताओं के कारण स्पष्ट अलग व मौलिक दिखाई देने लगी ।

• इनकी वादन शैली इतनी प्रभावपूर्ण साबित हुई कि इनके कई शिष्य हुए व उन्होंने प्रसिद्धि पाई । इस प्रकार इस शैली को घराने की मान्यता प्राप्त हुई ।

अजराड़ा घराना ( तबला ) की वंश परम्परा

अजराड़ा घराना • इस घराने की वंश परम्परा इस प्रकार है- कल्लू खाँ और मीरू खाँ इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं । इन्होंने दिल्ली के प्रसिद्ध तबला वादक सिताब खाँ से शिक्षा ग्रहण की चूंकि ये मेरठ जिले के एक गांव अजराड़ा में रहते थे । अतः इस गांव के नाम पर ही इस शैली या बाज का नाम अजराड़ा पड़ा । इनके वंश में मोहम्मदी बख्श प्रसिद्ध तबला वादक थे ।

इनके पुत्र मियाँ चाँद खाँ तथा पौत्र उस्ताद काले खाँ तबला वादन में प्रवीण थे । काले खाँ के पुत्र हस्सू खाँ तथा इनके पुत्र शम्भू खाँ प्रसिद्ध तबला वादक थे ।

• उस्ताद अब्दुल करीम खाँ तथा उस्ताद हवीबुद्दीन खाँ इनके ही भतीजे एवं पुत्र थे । उस्ताद अब्दुल करीम खाँ के शिष्य आगरा के पण्डित श्रीधर जी तथा उस्ताद हवीबुद्दीन खाँ साहब के शिष्य बड़ौदा के सुधीर कुमार सक्सेना जी हैं ।

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अजराड़ा घराने की विशेषताएँ

अजराड़ा बाज में दिल्ली बाज की सभी विशेषताएँ विद्यमान हैं । अजराड़ा बाज में भी बोलों के निकास में अंगुलियों का प्रयोग दिल्ली बाज के समान ही है ।

  • अजराड़ा घराने के कायदों की रचना तिस्त्र जाति में अधिक पाई जाती है ।
  • अजराड़ा बाज में पेशकार , कायदे व रेले अधिक बजाए जाते हैं ।
  • इस घराने में डग्गे के बोलों का प्रयोग सुन्दर मीण्डयुक्त बोलों के साथ लड़न्त तरीके से किया जाता है ।
  • अजराड़ा बाज में कायदों के प्रत्येक भाग को अधिक लम्बा करने के लिए एक अन्य विशिष्ट अतिरिक्त बोलसमूह भी जोड़ दिया जाता है , इससे कायदे के वादन में सुन्दरता तो आती है , परन्तु उसमें विस्तार का प्रयोग सीमित हो जाता है ।
  • अजराड़ा बाज के कायदों के बोलों की संयोजना कठिन और प्रायः आड़ी लय में की जाती है ।

Note:- तबला वादकों की विशेषता युक्त परम्परा अथवा वादन शैली को ” बाज ” कहा जाता है ।

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उपसंहार / निष्कर्ष

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस बाज की खूबसूरती इसके कायदे की विविधता एवं खूबसूरती से परिलक्षित होती है । कुछ विद्वानों के अनुसार गायन की विशेष विधाओं तथा कत्थक नृत्य की संगति के लिए यह पूर्णरूप से उपयुक्त नहीं है , इसलिए वर्तमान काल के कुछ विशिष्ट कलाकारों ने इसमें पूर्व शैली का मिश्रण करके इसके स्वरूप में बदलाव किए हैं , जिससे इस बाज में कुछ सुधार व संवर्द्धन दिखाई पड़ते हैं । 

गायन के घराने और उनकी विशेषताएं Gharanas of Singing

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