फर्रूखाबाद घराना- भारत में तबला वादकों के 6 घराने हुआ करते थे , जिनमें दिल्ली , पंजाब , मेरठ , बनारस , लखनऊ तथा फर्रुखाबाद उनमें से एक था ।
विषय - सूची
फर्रूखाबाद घराना : तबला
विलायत अली खाँ ने तबले की शिक्षा लखनऊ के बख्शू साहब से प्राप्त की । मूलरूप से विलायत अली खॉ फर्रुखाबाद के थे । इन्होंने बख्शू साहब को इतना अधिक प्रभावित किया कि बख्शू साहब ने अपनी बेटी का विवाह इनसे कर दिया ।
विलायत खाँ साहब तबले की शिक्षा पूर्ण करके तथा विवाहोपरान्त अपने शहर वापस आ गए । तदुपरान्त इन्होंने लखनऊ घराने की वादन शैली में मौलिक अन्तर करके नवीन ढंग की रचनाएँ एवं शैली का विकास किया तथा यह नवीन शैली फर्रुखाबाद बाज कहलाई ।
विलायत खाँ साहब तबले की शिक्षा पूर्ण करके तथा विवाहोपरान्त अपने शहर वापस आ गए । तदुपरान्त इन्होंने लखनऊ घराने की वादन शैली में मौलिक अन्तर करके नवीन ढंग की रचनाएँ एवं शैली का विकास किया तथा यह नवीन शैली फर्रुखाबाद बाज कहलाई ।
फर्रूखाबाद घराना ( तबला ) की वंश परम्परा
● हाजी विलायत अली खाँ इस बाज के प्रवर्तक माने जाते हैं , इनके सुप्रसिद्ध शिष्यों में , सलारी खाँ , चूड़िया इमाम बख्श , मुबारक अली खाँ और बरेली के छन्नू खाँ हुए हैं । इनमें से चूड़िया इमाम बख्श के पुत्र हैदर खाँ और पोते बन्दे हसन खाँ उत्तम तबला वादक थे ।
हुसैन अली खाँ के शिष्यों में निसार अली खाँ और ललियाने के मुनीर खाँ प्रसिद्ध विद्वान् तबला वादक हुए हैं । मुनीर खाँ के भाँजे अमीर हुसैन खाँ और पौत्र , गुलाम हुसैन खाँ हुए । अमीर हुसैन के पुत्र फकीर हुसैन खाँ हैं । मुनीर खाँ के सुप्रसिद्ध शिष्यों में अहमद जान थिरकवा , हबीबुद्दीन खाँ , नजीर खाँ , अब्दुल करीम खाँ और शमसुद्दीन इत्यादि प्रख्यात तबला वादक हुए हैं ।
फर्रूखाबाद घराने की विशेषताएँ
इस वंश परम्परा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- इस बाज में मुक्त प्रहारयुक्त बोलों के साथ – साथ दाहिने तबले पर दिल्ली बाज की भाँति निगृहीत और अर्द्धनिगृहीत बोलों का वादन भी किया जाता है ।
- इस बाज में घिर घिर , दिगनग , दिनतक , दींगदींग , दिगदिनागिन , ताँगड़ , दीगड़ , क्ड़ान , ध्यान , घिन गिन , तर्किट इत्यादि बोलों का व्यवहार अधिक दिखाई देता है ।
- इस घराने में रेले को नवीन रूप देकर इसे रौ अथवा रविश के नाम से जानते हैं ।
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उपसंहार / निष्कर्ष
इस प्रकार फर्रुखाबाद बाज पर लखनऊ का भी कुछ प्रभाव दृष्टिगोचर होता है , परन्तु विद्वानों द्वारा विकसित फर्रुखाबाद बाज पूर्वी बाज की विशेषताओं से युक्त होने पर भी बोलों के निकास और रचना भेद से लखनऊ बाज से अलग पहचाना जाता है , इसलिए अहमद जान थिरकवा ने इस बाज को शुद्ध बाज का नाम दिया है ।
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