राग छायानट का परिचय -Raag Chhayanat

राग छायानट श्लोक – द्वै मध्यम तीखे सबे परि सम्वाद नि नाहि । चढ़ते उतरि ग वक्रहि छायानट बताहि ।। -राग चन्द्रिकासार

राग छायानट पर आधारित हिंदी फ़िल्मी गीत लेख के अंत में दिए गए हैं ।

राग छायानट का परिचय

संक्षिप्त विवरण – इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई है । इसमें दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते हैं । आरोह – अवरोह दोनों में सातों स्वर लगाते हैं , अतः इस राग की जाति सम्पूर्ण है । छायानट का वादी स्वर- ऋषभ तथा सम्वादी स्वरपंचम है । गायन – समय रात्रि का प्रथम प्रहर माना जाता है । आरोह– सा , रे ग म प , नि ध सां । अवरोह – सां नि ध प , म प ध प , ग म रे सा । पकड़– प रे ऽ रे ग ऽ ग म ऽ म प ऽ ग म रे , सा रे सा ।

विशेषता

( 1 ) यद्यपि इस राग का उल्लेख ‘ राग लक्षण ‘ , ‘ संगीत सारामृत ‘ , ‘ संगीत पारिजात ‘ आदि प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है , किन्तु वे आधुनिक छायानट से बिलकुल भिन्न हैं । अहोबल कृत ‘ संगीत पारिजात का छायानट आधुनिक छायानट से थोड़ा मिलता – जुलता है ।

( 2 ) इस राग की उत्पत्ति छाया और नट रागों के मिश्रण से हुई है , किन्तु अब छायानट का आधुनिक रूप इतना अधिक प्रचलित हो गया है कि बहुत कम आधुनिक गायक यह सोचते हैं कि यह दो रागों का मिश्रण है । इसमें सा रे , रे ग म प तथा सा रे सा , नट और प रे , रे ग म प , ग म रे सा , छाया राग के अंग हैं । इन दो रागों के मिश्रण के साथ इसमें कई रागों का आभास दिखाई पड़ता है जैसे- ध नि ध प या सां सां ध प , म ग म रे तथा रे ग म नि ध प ( अल्हैया बिलावल ) , धपर्मप , ग म प ग म रे सा ( कामोद और हमीर ) आदि ।

( 3 ) अवरोह में कभी – कभी राग की सुन्दरता बढ़ाने के लिये विवादी स्वर के नाते कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है , जैसे सां ध नि प , अथवा रे ग म नि ध प । अब कोमल नि का प्रयोग बहुत अधिक होने लगा है ।

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( 4 ) तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग दो पंचमों के बीच होता है । ग म प इस प्रकार तीव्र मध्यम का प्रयोग कभी नहीं होता । उदाहरण के लिये आलाप देखिये ।

( 5 ) छायानट में तीव्र मध्यम को थाट – वाचक स्वर माना गया है । इसी के सहारे छायानट कल्याण थाट के अंतर्गत आता है । कुछ विद्वान , इस राग में तीव्र मध्यम का प्रयोग बिलकुल नहीं करते और इसे बिलावल थाट का राग मानते हैं ।

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( 6 ) इसमें रे ग म प का सावकाश प्रयोग कानों को बड़ा अच्छा मालूम पड़ता है जैसे – सा रे ऽ रे ग ऽ ग म ऽ म प , ( प ) रे , सा रे सा । ऐसा लेते ही लोग छायानट पहचान लेते हैं ।

( 7 ) इस राग में प रे की मीडयुक्त संगति बहुत कर्णप्रिय मालूम होती है और इसका प्रयोग बराबर किया जाता है , किंतु यह ध्यान रहे कि परे का प्रयोग केवल मध्य और तार सप्तकों में हो सकता है जैसे- प रे अथवा प रें , किन्तु मंद्र पन्चम से मध्य ऋषभ को कभी नहीं जाते । ऐसा करने से जयजवन्ती राग की छाया आ जावेगी । 

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( 8 ) आजकल कोमल निषाद का प्रयोग इतना अधिक बढ़ गया रहा है कि अब विवादी का स्थान छोड़कर अनुवादी का स्थान ग्रहण कर लिया है । मतभेद कुछ विद्वानों ने इसमें प रे को वादी – सम्वादी माना है , ऐसा मानने से यह राग उत्तरांग प्रधान हो जायेगा , किंतु वास्तव में यह ऐसा नहीं हैं । इसमें ऋषभ का स्थान इतना महत्वपूर्ण है कि इसे वादी स्वर माना जाता है । इसलिये कुछ विद्वान इसमें रे – प को क्रमश : वादी – सम्वादी मानते हैं ।

समप्रकृति राग– कामोद और हमीर

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तिरोभाव – आविर्भाव प रे , रे ग ऽ ग म ऽ म प , ( छायानट ) तिरोभाव- ग म रे , ग म नि ध प , ( हमीर ) आविर्भाव- प रे , रे ग म प ग म रे , सा रे सा । ( छायानट ) मूल राग – प दूसरा उदाहरण मूल राग- सा रे , रे ग , ग म नि ध प । ( छायानट ) तिरोभाव- म प ध प म ऽऽ रेसा रे ऽ सा । ( केदार ) अविर्भाव- सा रे , रे ग , ग म रे सा रे सा । ( छायानट )

विशेष स्वर – संगतियाँ

1. सा रे ऽ रे ग ऽ ग म रे , सा रे सा ।

2.परे सा रे सा , ध प सा ।

3. रे ग म नि ध प रे ।

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4. प प सां , सां रें सां ध प रे ।

स्वरों का अध्ययन

स्वरों का अध्ययन

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सा – सामान्य

रे- दोनों प्रकार का बहुत्व

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ग- अलंघन मूलक बहुत्व

म- अलंघन मूलक बहुत्व म- अल्प , किंतु विशिष्ट स्थान पर अनाभ्यास बहुत्व ।

प- दोनों प्रकार का बहुत्व

ध- आरोह में कभी – कभी लंघन अल्पत्व , किंतु अवरोह में अलंघन बहुत्व ।

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नि – अनाभ्यास अल्पत्व

आलाप

1. सा , सा रे , रे ग , ग म , म प , प प रे , रे ग म प , ग म रे , सा रे सा , ध प ऽ सा ।

2. ( सा ) ध ऽ नि ध प सा रे ऽ सा रे ग म प ग म रे , रे नि ध प रे , सा रे , रे ग , ग म , म ( प ) रे , ग म रे , सा रे सा ।

3. रे ग म प , ( प ) ध प रे , रे नि ध प , रेग ऽ गम ऽ म नि ध प , रेग मप म नि ध प , प प रे , रेगमप गमरे , सा प रे , रे ग म प ऽ ग म रे , सा रे सा , ध प सा ऽ रे सा ।

4 . से प , ध प धपमंप , रे ग म प , रेग ऽ र गमऽ गमधऽप , सांड ध नि प , धपमैप सां ऽ ध नि प , ध प म प , प ग ऽ म रे , सासा रेरे गग मम प ग म रे , सा रे सा ।

5. प प सां , रेसांधप सांऽ रे सां , गं में रें सां , रें गं मं पं गं मं रें सां , मं रें सां , ध प , रेगमप सांनि रें सां ऽ ध नि प , प ध प सां ऽ ध नि प , रेगमधप ध प रे , रे ग ऽ ग म ऽ म प रे , सासा रेरे गग मम प रे , सा रे ( सा ) ध प सा ऽ ऽ नि रे सा ।

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तानें

1. सासा रेगमप मगमप मगमरे सारेसा , सासा रेगमप धधपप रेगमप मगमरे सारेसा , सासा रेगमप धधपप सांसांधप रेगमप गमरेसा सारेसासा , पपसांसां रेरेसांसां ममरेंसां धधपप रेगमप गमरेसा ।

2. धधपप गमरेसा , सांसां धधपप गमरेसा , रेगमप धधपप गमरेसा , रेगम गमप गम धधपप रेगमप गमरेसा , सांसाधप रेगमप धधपप गमरेसा ।

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3. रेरेसासा पपरेरे धधपप रेरेसांसां ममरेंसां धधपप गमरेसा , पपसांसां ममरेंसांधधपप गमरेसा , रेगमप धनि सांसाररें सांसांधप गमरेसा ।

4. रेगमप गमरेसा धधपप पपसासा रेरेसासा सांरेंसारे सारेसांसां धपमंप सारेसांसां धपमंप सारेसांसां धपमंप रेगमप गमरेसा ।

5. ममरेसा धधपप , धधपप गमरेसा , सांसांधप रेगमप गमरेसा , रेरेसासा रेरेसांसां धनिपप धधपप धपमंप रेगमप गमरेसा , ममरेंसां सारेसांसां धधपप , धधपप रेगमप गमरेसा सारेसासा । 

राग छायानट और राग कामोद की तुलना, समता

राग छायानट और कामोद की तुलना समता

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1. दोनों रागों की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई है ।

2. दोनों रागों में दोनों मध्यम प्रयुक्त होते हैं । शुद्ध म की तुलना में तीव्र म का प्रयोग कम होता है ।

3. तीव्र म का अल्प प्रयोग दोनों के आरोह में पंचम के साथ इस प्रकार किया जाता हैं , जैसे- म प ध प ।

4. कुछ विद्वान दोनों रागों में केवल शुद्ध म प्रयोग करते हैं और दोनों को बिलावल थाट जन्य राग मानते हैं ।

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5. दोनों का गायन – समय रात्रि का प्रथम प्रहर है ।

6. दोनों की जाति वक्र सम्पूर्ण मानी गई है ।

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7. दोनों के अवरोह में कभी – कभी धैवत के साथ कोमल नि का प्रयोग विवादी स्वर की तरह होता है , जैसे- सांऽध नि प ।

8. कुछ विद्वान , दोनों रागों में प रे वादी – सम्वादी मानते हैं ।

9. दोनों में ग म रे , म प ध प , सांध प , प प सां तथा ध नि प , स्वर – समुदाय प्रयोग किये जाते हैं ।

10. दोनों के अवरोह में अधिकतर निषाद का लंघन किया जाता है , जैसे- सां , ध प ।

11. दोनों के आरोह में निषाद और अवरोह में गन्धार वक्र प्रयोग किया जाता है ।

विभिन्नता

( 1 ) कामोद में परे और छायानट में रे, प वादी – सम्वादी हैं । 

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( 2 ) कामोद में रे प की और छायानट में प रे की मींडयुक्त संगति बहुतायत से होती है ।

( 3 ) यद्यपि दोनों में कोमल निषाद का प्रयोग विवादी की तरह से होता है , किन्तु छायानट में कोमल निषाद का प्रयोग इतना अधिक बढ़ गया है कि केवल नि ध प रे , स्वर – समुदाय से ही श्रोतागण छायानट समझ जाते हैं ।

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( 4 ) कामोद के आरोह में गंधार प्रयोग करते समय प्रायः उसे वक्र रखते हैं और ग से प्रारम्भ होकर मुख्य तीन स्वर – समुदाय बना सकते हैं , गमप , गमधप तथा गमरेसा । छायानट के आरोह में गंधार सपाट प्रयोग होता है और उसमें इस प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता ।

राग छायानट पर आधारित हिंदी फ़िल्मी गीत- Raag Chhayanat Hindi Songs

  • मुझसे नाराज़ हो तो – Film – पापा कहते हैं ।
  • तेरे नैना तलाश करे जिसे – Film – तलाश ।
  • हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए – Film – काला पानी ।
  • चंदा रे, जा रे जा रे – Film – ज़िद्दी ।
  • चैन नहीं आये , कहाँ दिल जाये – Film – समुन्दर ।
  • बाद मुद्दत की ये घड़ी आयी – Film – जहाँ आरा ।
  • झन झन झन झन पायल बाजे

राग वर्गीकरण का इतिहास काल – Raga/Raag Classification

राग पूरिया का परिचय, विशेषता, Raag Puriya

राग पूरियाधनाश्री – Raag Puriya Dhanashri

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