कश्मीर का लोकसंगीत

कश्मीर का लोकसंगीत

कश्मीर का लोकसंगीत – कश्मीर को ‘ भारत का स्वर्ग ‘ कहा जाता है , जो उत्तर भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण क्षेत्र है । प्राकृतिक परिवेश ने कश्मीर के लोकजीवन को स्फूर्ति ही नहीं दी है , अपितु सौन्दर्यानुभूति भी प्रदान की है । यहाँ के ग्राम्य जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग यहाँ का लोकसंगीत है । प्राकृतिक चित्रण के साथ – साथ यहाँ का सांस्कृतिक चित्रण भी बहुत मनोरम है ।

यहाँ के कृषक धान के हरे – खेतों की निराई करते समय यहाँ के सामूहिक स्वरों भगाए गए गीत आकाश को स्पर्श कर मोहक वातावरण उत्पन्न करते हैं । ये गीत उनकी आशा और उल्लास के प्रतीक है । इन लोकगीतों में उनका प्राकृतिक प्रेम व हृदय की मानवीय भावनाएँ झलकती है ।

कश्मीरी जनजीवन के ये गीत उतने ही पुराने है , जितनी यहाँ की संस्कृति । इन लोकगीतों में सरसता , सरलता व हृदय के मधुर उद्गारों के स्पष्ट दर्शन होते हैं । कश्मीरी लोकगीतों के कई प्रकार प्रचलित है , जिनमें रोफ , छकरी , निमाई आदि संस्कारों से सम्बन्धित है ।

रोफ गीत

रोफ गीत .- कश्मीर की महिलाओं का सम्मिलित स्वर में गान व नृत्य से पूर्ण गीत है ।

रोफ प्रायः रमजान व ईद के दिनों में गाया जाता है , जिसे गाने के लिए युवतियाँ दो दलों में विभाजित होती हैं , जिसमें एक दल की युवतियाँ नृत्य करती हुई एक पंक्ति गाती हैं , इसके बाद दूसरे दल की युवतियाँ दूसरी पंक्ति में गाती हैं । दोनों दल की युवतियाँ एक – दूसरे की भुजाओं को जकड़कर सामूहिक नृत्य करती हैं ।

• खुशी के पर्व पर आनन्दमग्न होकर युवतियाँ यह गीत गाती हैं व नृत्य करती हैं । इसमें किसी वाद्य का प्रयोग नहीं होता है । युवतियों के पद संचालन ही इसमें ताल का काम करते हैं ।

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छकरी गीत

छकरी गीत • यह गीत बड़े जोशीले होते हैं तथा धान की कुटाई के अवसर पर कभी – कभी यह गीत गाए जाते हैं । कभी – कभी बिना किसी वाद्य की संगत के भी यह गीत गाया जाता है ।

• इस गीत में जब कोई व्यक्ति अन्तरा गाता है , तो उस समय वाद्य बन्द रहते हैं । छोटे – छोटे बालक हाथों से तालियाँ बजाते हुए लय के साथ यह गीत गाते हैं ।

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सुफियाना

सुफियाना • यह कश्मीरी लोकगीतों का ही एक प्रचलित गीत है । यह पुरुष प्रधान गीत है । प्रायः विरह और मिलन के अवसर पर यह गाया जाता है । सम्भवतः सूफी सन्त लोग इस गीत को गाते हैं । कश्मीर की प्राकृतिक छटा के पनपे लोकजीवन में | गीत – संगीत समाहित है । यहाँ के गीतों में प्राकृतिक सौन्दर्य , ईश्वर उपासना आदि की सुन्दर एवं अलौकिक भावनाएँ स्पष्ट झलकती हैं ।

कश्मीर और लद्दाख में बौद्ध भिक्षुओं के धार्मिक नृत्य अधिक प्रचलित थे । इन | नृत्यों के अवसर पर वर्षभर तक मठों में बन्द रहने वाले लामा लोग भी बाहर निकलते थे ।

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” कश्मीर के प्रमुख लोकगीतों में छकरी गीत और सहरवी अधिक प्रचलित है ।

लोकसंगीत और शास्त्रीय संगीत का पारस्परिक सम्बन्ध – Shastriya & Loksangeet

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“कश्मीर का लोकसंगीत” के इस अध्याय में बस इतना ही , बने रहें सप्त स्वर ज्ञान के साथ ।

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