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भारतरत्न एम एस सुब्बुलक्ष्मी जीवनी / Biography
भारतरत्न से विभूषित कलाकार
भारतरत्न एम एस सुब्बुलक्ष्मी जीवनी / Biography – • संगीत मानवीय लयबद्ध एव तालबद्ध अभिव्यक्ति है, जिसे भारतीय • संगीतकारों ने अपनी मधुरता एवं लयबद्धता के द्वारा सुशोभित किया है । स्वातन्त्र्योत्तर युग में शास्त्रीय संगीत को प्रचार – प्रसार की दृष्टि से संगीत का स्वर्ण युग या क्रान्तिकारी युग कहा जाता है , जिसका श्रेय विभिन्न संगीत संस्थाओं , सम्मेलनों एवं सरकार द्वारा सम्मानित कलाकारों को जाता है । परिचय संगीत सदैव ही मनुष्य का सहभागी रहा है । संगीत का सामान्य उद्देश्य मनोरंजन करना ही है , किन्तु संगीत का एक पक्ष मार्गी तथा गान्धर्व संगीत है , जो प्राचीन ग्रन्थों में अदृष्ट फल देने वाला कहा गया है ।
संगीत में से ललित कलाओं को अग्रगण्य माना गया है । संगीत में निहित लालित्य का अर्थ एवं उद्देश्य मनुष्य के मन एवं मस्तिष्क को आकर्षित करना है , जहाँ एक ओर संगीत का लालित्य , संगीत के बाह्य एवं आन्तरिक सौन्दर्य की दृष्टि से सौन्दर्य शास्त्रीय अध्ययन की अपेक्षा रखता है , वहीं दूसरी ओर बदलते सामाजिक – सांस्कृतिक परिवेश में संगीत की नई सम्भावनाएँ सामने आई हैं । संगीत कला को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए गए , जिससे हम भारतीय संस्कृति की विरासत , को जनसामान्य तक पहुँचा सकें । संगीत एवं ललित कलाओं की उन्नति के लिए सरकार द्वारा योजनाबद्ध तरीके से कार्यक्रम बनाए गए हैं , जिसके लिए भारत सरकार तथा कुछ संस्थाएँ , कला एवं संगीत के क्षेत्र में कुछ विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा की गई सेवाओं के लिए उन्हें पुरस्कृत किया जाता है ।
एम एस सुब्बुलक्ष्मी – M. S. Subbulakshmi
मदुरै षण्मुखवडिवु सुब्बुलक्ष्मी – Madurai Shanmukhavadivu Subbulakshmi
वर्ष 1998 में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया ।
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी – संगीत का भारतरत्न प्राप्त प्रथम महिला कलाकार
- एम . एस . सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितम्बर , 1916 को मीनाक्षी देवी की पुण्यस्थली ‘ मदुरै ‘ में हुआ था । इनके बचपन का नाम कुंजाम्मा था । इनके पिता सुब्रामण्यालार एक वकील थे तथा इनकी माता षण्मुखमवडिनु , एक विख्यात बौणा वादिका थीं । इनकी नानी अक्काम्मल वायलिन वादक थीं । इनका प्रसिद्ध नाम एम . एस . था । बचपन से कुंजाम्मा अपने छोटे भाई – बहन के साथ संगीत के वातावरण में पली – बढ़ी । इनका घर मीनाक्षी मन्दिर के पास ही था ।
- बचपन में इन्हें संगीत की शिक्षा इनकी माँ से मिली । बाद में इन्हें कर्नाटक संगीत की शिक्षा प्रसिद्ध कलाकार एम . श्री निवास आयंगर व बाला सुब्रह्मण्यम की नानी धन्नामल से सीखने का अवसर मिला ।
- इन्होंने हिन्दुस्तानी संगीत को शिक्षा पण्डित नारायण राव व्यास से ग्रहण की तथा प्रसिद्ध गायिका सिद्धेश्वरी देवी से ठुमरी और दिलीपचन्द्र बेदी से संगीत की शिक्षा ग्रहण की ।
- 11 दिसम्बर , 2004 को सुप्रसिद्ध महान् संगीतज्ञा श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी का निधन चेन्नई में हुआ । संगीत में इनके महान् योगदान के लिए सदैव इन्हें स्मरण किया जाता रहेगा ।
संगीत में योगदान
- कर्नाटक संगीत की जिस कलाकार ने उत्तर भारत में सर्वाधिक लोकप्रियता अर्जित की है , उनका नाम है , एम . एस . सुब्बुलक्ष्मी । उन्हें दक्षिणवासी एम . एस . कहकर पुकारते हैं और तमिलवासी उन्हें ‘ कोकिल गानम ‘ जैसे नाम से सम्बोधित करते हैं ।
- सुब्बुलक्ष्मी का पहला जन कार्यक्रम आठ वर्ष की आयु में कुम्बाकोनम में ‘ महामहम उत्सव ‘ के दौरान हुआ था । इसी कार्यक्रम के बाद उनका सार्वजनिक दौर शुरू हुआ । सुब्बुलक्ष्मी के पहले भक्ति संगीत की एल्बम तब आई जब उनकी आयु केवल दस वर्ष थी ।
- सुब्बुलक्ष्मी ने मद्रास संगीत अकादमी से संगीत की शिक्षा प्राप्त की । इनकी मातृभाषा कन्नड़ थी , लेकिन उनका गायन कन्नड़ , तमिल , तेलुगू , हिन्दी , संस्कृत व बंगाली भाषा में भी हुआ ।
- इन्होंने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया था , जिनमें अपने पति सदाशिवम द्वारा निर्मित फिल्म ‘ मीरा ‘ में अभिनय किया तथा इसके गीत भी गाए । इसके अतिरिक्त अन्य फिल्मों में ‘ सेवा सदनम ‘ , ‘ सावित्री ‘ आदि फिल्मों में काम किया है ।
- वर्ष 1963 में इन्होंने एडिनबरो विश्व संगीत समारोह में पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व किया था एवं वर्ष 1967 में लगातार चालीस दिन अमेरिका में रहकर वहाँ पर कार्यक्रम किए ।
- ये पहली भारतीय हैं , जिन्होंने संयुक्त राष्ट्रसंघ की सभा में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया , जिसमें एक संस्कृत गीत का गायन तथा राजाजी कृत अंग्रेजी गीत का गायन किया ।
- इनकी ख्याति का एक उदाहरण यह है कि मद्रास संगीत विद्वत सभा की स्थापना के 42 वर्षों में प्रथम बार किसी महिला को अर्थात् एम . एस . सुब्बुलक्ष्मी को अध्यक्ष बनाया गया था ।
- इन्होंने कई हितकारी व जन कल्याणकारी संस्थाओं के लिए भी काम किया , जिसमें गाँधी स्मारक निधि के चन्दे के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किया । इसी प्रकार से रामकृष्ण मिशन व अस्पताल निर्माण निधि कोष में भी इन्होंने अपने कार्यक्रम से ₹ 50 लाख तक की राशि जन – कल्याण के लिए दी ।
- इन्होंने तंजावुर में स्थित त्रिमूर्ति साधना भूमि को राष्ट्रीय निधि के रूप में बदलने का संकल्प लिया था , जिसे उन्होंने पूरा किया ।
- इनके द्वारा भगवान वेंकटेश की स्तुति में रचित श्री वेंकटेश सुप्रभात गायन का रिकॉर्ड दक्षिण भारत के प्रत्येक घर में प्रतिदिन बजता है । • किशोरी
- अनेक मशहूर संगीतकारों एवं राजनेताओं ने सुब्बुलक्ष्मी की कला की तारीफ की है , जिनमें लता मंगेशकर ने इनको ‘ तपस्विनी ‘ कहा है । उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने इनको ‘ सुस्वरलक्ष्मी ‘ पुकारा तथा अमोनकर ने इनको ‘ आठवाँ सुर ‘ कहा जो संगीत के सात सुरो से ऊँचा है ।
- महात्मा गाँधी के अनुसार , यदि सुब्बुलक्ष्मी ‘ हरि तुम हरो जन की पीर ‘ इस मीरा भजन को गाने के बजाए बोल भी दें , तब भी उनको यह भजन किसी और के गाने से अधिक सुरीला लगेगा ।
सम्मान
- एम . एस . सुब्बुलक्ष्मी को उनकी संगीत गायिकी की उपलब्धियों के लिए सरकार तथा विभिन्न संस्थाओं ने इन्हें प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा है , जिसमे कुछ प्रमुख पुरस्कार निम्न हैं-
- -वर्ष 1954 में पद्म भूषण सम्मान
- वर्ष 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार –
- – वर्ष 1974 में रेमन मैग्सेसे सम्मान
- वर्ष 1975 में पद्म विभूषण सम्मान
- वर्ष 1988 में कालिदास सम्मान
- वर्ष 1990 में इन्दिरा गाँधी सद्भावना पुरस्कार
- ये पहली महिला गायिका हैं , जिन्हें कर्नाटक संगीत के सर्वोत्तम पुरस्कार , संगीत कला निधि सम्मान से नवाजा गया ।
- वर्ष 1998 में भारत सरकार न इन्हें देश के सर्वोच्च पुरस्कार ‘ भारतरत्न ‘ से विभूषित किया । ( पहली संगीतज्ञ )
- सुब्बुलक्ष्मी को कई विश्वविद्यालयों द्वारा भी सम्मानित किया गया , जिसमें से वेकटेश्वर विश्वविद्यालय , दिल्ली विश्वविद्यालय एवं रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें डी.लिट् की उपाधि से सम्मानित किया गया ।
एम एस सुब्बुलक्ष्मी Biography तथा लता मंगेशकर की जीवनी -Lata Biography के अलावे आगे हम कुछ और भारत रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाले कलाकारों के बारे में जानेंगे । उनमे कुछ नाम इस प्रकार हैं –
- विश्वविख्यात सितार वादक भारतरत्न पण्डित रविशंकर
- उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ भारतरत्न शहनाई के शहंशाह
- भारतरत्न लता दीनानाथ मंगेशकर
- भारतरत्न पण्डित भीमसेन जोशी
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