दक्षिण भारतीय लोकसंगीत

दक्षिण भारतीय लोकसंगीत – भारतीय लोकसंगीत का विस्तृत अध्ययन / विवरण लोकसंगीत देश को क्षेत्रीय संस्कृति को अभिव्यक्त करता है , जिसे उस लोकसंगीत के उस क्षेत्र विशेष के नाम से जाना जाता है ।

भारत के महत्त्वपूर्ण लोकसंगीत बिहुगेट ( असम ) , लावणी ( महाराष्ट्र ) , बौल ( बंगाल ) , नातुपुरा ( तमिलनाडु ) , जैलियांग ( नागालैण्ड ) , कोली ( महाराष्ट्र ) , भटियाली ( बंगाल ) , माण्ड ( राजस्थान ) तथा हुलपोड़ ( गोवा ) आदि महत्त्वपूर्ण है ।

इसके अतिरिक्त अन्य प्रमुख लोकसंगीतों का अध्ययन क्षेत्रों में विभक्त कर किया जाता है । इस प्रकार भारतीय लोकसंगीत का क्षेत्रीय विवरण निम्न है ।

दक्षिण भारतीय लोकसंगीतSouth Indian Folk Music

दक्षिण भारतीय लोकसंगीत – दक्षिण भारत के लोक संगीत निम्नलिखित है –

लावणी

लावणी • गायन व वादन की दृष्टि से चेन्नई ( मद्रास ) राज्य में भिन्न प्रकार का लोकसंगीत है । लावणी एक प्रकार का लोकसंगीत है , जो रुचि को लीन करने वाला भी है व कभी – कभी हमारी रुचि को उत्तेजित भी करता है । यह लोकसंगीत महाराष्ट्र में प्रचलित है ।

• यह दो व्यक्तियों के माध्यम से किसी विषय पर तर्कयुक्त वार्तालापपूर्ण एक संगीतमय नाटक है । इसका एक प्रिय विषय है , कामदेव को भस्म करते हुए भगवान शिव धुन में सरल लोकसंगीत का प्रकार होते हुए भी लावणी में भक्तिपूर्ण धार्मिक विस्तृत वार्ता एवं प्रकृति वर्णन सन्निहित रहता है । लावणी के गायक दक्षिणी जिलो विशेषकर तंजौर व तिरुचिरापल्ली में मिलते हैं । लोकसंगीत का दूसरा प्रकार ‘ वितलूपोहू ‘ है , जिसमें छः से आठ गायकों के समूह होते है ।

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• यह समूह एक धनुषाकार वाद्य बजाता है , जिसकी रस्सी में घण्टियाँ लगी रहती है और वे बजती रहती हैं । इसमें एक मिट्टी का बर्तन भी काम में लाया जाता है , जिसका मुंह धीरे – धीरे चमड़े के टुकड़े से बजाया जाता है । एक उडक्कु वाद्य भी काम में लाया जाता है ।

कहावोम्मन

‘ कहावोम्मन गीत का दूसरा प्रिय विषय होता है , संगीत में ही कहानी के दल का नायक सीढ़ी – दर – सीढ़ी सुनाएगा व दूसरे उसके टेर के द्वारा उच्चारित करेंगे । यह कला अधिकांशतः मदुरा , रामनन्द व टिन्नेवेली जिलों में पाई जाती है ।

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केचीलम्बू

केचीलम्बू ‘ एक प्रकार की लोककथा है , जो संगीत से मिलती – जुलती एवं संगीतात्मक प्यनियों का समपुट होती है , नयन्दीवेलम वन्दवाद्य है । यह स्वतन्त्र रूप में कराकम , करवाड़ी , मूक अरब नृत्य एवं दूसरे नृत्यों में भी बजता है । इसकी विचित्रता यह है कि वादक अपने वाद्य को बजाते हुए भा नृत्य करते हैं । लाल , जल , नरलंगू और सम्माधीएसल लोकसंगीत के प्रकार है , जो सभी घरों में विवाह उत्सव पर प्राचीन समय में बहुत प्रचलित रहे है ।

प्रथम तीन यद्यपि सरल है , किन्तु ये श्रेष्ठ राग धुनों से युक्त रहते हैं । पुराने ज़माने में स्त्री व पुरुष इनको उमंग पूर्वक बजाते थे, सम्मानदिअसल एक प्रकार का पारस्परिक विनोद है । विवाह के अवसर पर जब युगल आमने – सामने बैठ जाते हैं , तब वर – वधू के बीच यह होता है । प्रत्येक दल संगीत में ही एक – दूसरे की कमजोरी व अच्छाई , हास्य विनोदपूर्ण प्रकार के वातावरण में प्रकट करता है । यह सम्बन्धियों में अप्रत्याशित झगड़ों को प्रकट करता है ।

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किरिकट्टी

किरिकट्टी यह वाद्यम लोकसंगीत है , जिसे बजाने के साथ – साथ नृत्य किए जाते हैं । वंचिपटू मालाबार का नौकागीत है ।

लोकगीतों , लोक के विचारों व सही भावनाओं को ढूंढ निकालने का साधन है । लोगों की आधुनिकतम आन्तरिक भावनाएँ लोकगीतों में अपनी अभिव्यक्ति पाती हैं ।

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दक्षिण भारतीय लोकसंगीत के इस अध्याय के बाद लोकसंगीत के इस शृंखला में हम जानेंगे भारत के अन्य राज्यों के लोकगीत , लोकसंगीत के बारे में ।

तो बने रहें सप्त स्वर ज्ञान के साथ , धन्यवाद ।

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