Western Notation System in Hindi पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति के प्रकार

Western Notation System in Hindi  – पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति में संगीत हमेशा मुख्य रूप से क्रियात्मक (Practical) रहा है । संगीत के इस क्रियात्मक रूप को स्थाई रखने के लिये स्वरलिपि पद्धति (Notation System) अथवा स्वरांकन पद्धति का जन्म हुआ । समय – समय पर आवश्यकतानुसार संशोधन होता रहा है ।

इतना ही नहीं , प्रारम्भ से आज तक भारत में अनेक स्वरलिपियों का जन्म , विकास और ह्रास हुआ । हरेक नयी शैली को अधिक पूर्ण बनाने की कोशिश की गयी और आज भी केवल भारतीय संगीत में ही नहीं , बल्कि पाश्चात्य संगीत Western Music में भी अपनी स्वरलिपि पद्धति को अधिक पूर्ण , सरल और वैज्ञानिक बनाने की कोशिश हो रही है ।

पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति

स्वरलिपि पद्धति से क्या लाभ है ? What is the Benefits of Notation System ?

स्वरलिपि पद्धति से लाभ यह है कि जहाँ किसी देश अथवा किसी काल के क्रियात्मक संगीत Practical म्यूजिक कैसा था यह जानने के लिए हमारे पास कोई रिकॉर्डिंग हो जिसे हम सुन सके ऐसा होना असंभव है , क्योकि उस समय ऐसी सुविधा थी ही नहीं । वहीं हम स्वरलिपि द्वारा वहाँ के संगीत का थोड़ा – बहुत आभास अवश्य समझा जा सकता है ।
स्वरलिपि पद्धति एक ओर जहाँ क्रियात्मक संगीत के द्वारा नियन्त्रित होती है , दूसरी ओर क्रियात्मक संगीत को भटक जाने से बचाती भी है ।
eg- दक्षिण भारतीय ( कर्नाटक ) संगीत इसका ज्वलन्त उदाहरण है । वहाँ शास्त्र और स्वरलिपि का अटूट बंधन होने के कारण क्रियात्मक संगीत में बहुत कम परिवर्तन हुए हैं । कर्नाटक अथवा दक्षिण भारतीय संगीत में किसी गीत अथवा संगीत – रचना को स्वरलिपि के ही अनुसार अक्षरशः गाना पड़ता है ।

स्वरलिपि पद्धति के कितने भाग हैं ?

आदि काल से आज तक के संसार की सम्पूर्ण स्वरलिपि पद्धतियों को मुख्य 4 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है ।
1. सोल्फा स्वरलिपि पद्धति ( Solfa Notation System )
2. न्यूम्स स्वरलिपि पद्धति ( Neumes Notation System )
3. चीव्ह स्वरलिपि पद्धति ( Chievh Notation System )
4. स्टाफ नोटेशन सिस्टम ( Staff Notation System )

1. सोल्फा स्वरलिपि पद्धति ( Solfa Notation System )

( 1 ) सोल्फा स्वरलिपि पद्धति– सोल्फा का शाब्दिक अर्थ है , प और म , इसलिये सोल्फा स्वरलिपि पद्धति का यह अर्थ हुआ कि वह पद्धति जिसमें स्वर – नाम जैसे सा , रे , ग , म आदि का प्रयोग होता हो । अतः उत्तर भारतीय स्वरलिपि पद्धति इसी श्रेणी में आती है । कुछ दिनों पूर्व तक सोल्फा नोटेशन सिस्टम का प्रयोग पश्चिमी देशों में होता था , किंतु जब से स्टाफ नोटेशन का प्रचलन हुआ , यह पद्धति समाप्त हो गई ।

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हिन्दुस्तानी स्वरलिपि पद्धति की विशेषतायें स्वयं सोल्फा पद्धति की विशेषतायें कही जा सकती हैं ।

2. न्यूम्स स्वरलिपि पद्धति ( Neumes Notation System )

( 2 ) न्यूम्स स्वरलिपि पद्धति- इस पद्धति का जन्म मिश्र में और विकास यूरोप में हुआ । इसमें सोल्फा पद्धति के समान स्वर – नामों का प्रयोग नहीं होता था , बल्कि गीत के शब्द प्रयोग किये जाते थे । पहले एक रेखा खींची जाती थी और फिर ऊपर – नीचे गीत के शब्द लिखे जाते थे । यह रेखा मध्य सा की रेखा मानी जाती थी । शब्दों के ऊपर उनका काल मान ( मात्रा चिन्ह ) होता था । इन चिन्हों को दिखाने के लिये (Short Break / स्वल्प विराम ( ‘ ) पूर्ण विराम ( . ) आदि चिन्हो का प्रयोग होता था ।

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स्वल्प विराम से एक मात्रा और पूर्ण विराम से 2 मात्रा जाना जाता था । एक मात्रा में 2 स्वरों को लिखने के लिये उन पर अर्ध चन्द्राकार ( ) का चिन्ह लगा देते हैं । साधारणतः दो स्वरों के बीच का कालांतर समान माना जाता था , किन्तु ऊँचे और नीचे स्वरों के लिये कोई विशेष चिन्ह नहीं था । केवल जो शब्द जितना ऊंचा होता था , उसका संकेत – चिन्ह अपने पिछले शब्द से काल्पनिक ऊँचा लिखा जाता था । इसके था ।

उसके विपरीत जो शब्द जितना नीचा होता था , उसका चिन्ह पिछले शब्द से उतना ही नीचा होता था । इस स्वरलिपित पद्धति से कुछ लाभ तो अवश्य हुआ , किन्तु स्वरों की ऊँचाई निश्चित न होने के कारण स्वयं रचयिता को कुछ दिनों बाद अपनी लिखी चीजें पढ़ने में कठिनाई होती थी । अन्य व्यक्ति अपनी – अपनी रुचि और सुविधा के अनुसार उसमें परिवर्तन भी कर लेते थे । फलस्वरूप इस Notation System/ पद्धति से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ । समय के साथ – साथ इस पद्धति में कुछ संशोधन और परिवर्तन आवश्यक हो गया । Western Notation System में यही पद्धति संशोधित रूप में स्टाफ स्वरलिपि पद्धति कहलाई । आजकल स्टाफ पद्धति ही पश्चिमी देशों में प्रचलित है ।

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3. चीव्ह स्वरलिपि पद्धति ( Chievh Notation System )

( 3 ) चीव्ह स्वरलिपि पद्धति- इस पद्धति का नामकरण इसके आविष्कारक फ्रॉस के चीव्ह नामक गणितज्ञ के आधार पर हुआ है । उन्होंने 18 वीं शताब्दी में इस नवीन स्वरलिपि – पद्धति की कल्पना की । इस पद्धति में उन्होंने गणित के अंकों का सहारा लिया । वर्तमान काल में इस पद्धति का प्रचलन फ्रॉस के कुछ भागों में है । इस प्रणाली से भी भारत अनभिज्ञ नहीं रहा है । सामवेद की ऋचाओं पर एक , दो , तीन आदि अंकों का प्रयोग मिलता है । भारतीय संगीत की कुछ प्राचीन पुस्तकों में भी यह विधि प्रयोग की गई है ।

4. स्टाफ नोटेशन सिस्टम ( Staff Notation System )

( 4 ) स्टाफ स्वरलिपि पद्धति– पीछे हम यह बता चुके हैं कि यह न्यूम्स स्वरलिपि का विकसित रूप है । Western Notation System में न्यूम्स की कमियों को लोगों ने अनुभव किया और उसे संशोधित किया , फलस्वरूप स्टाफ पद्धति का जन्म हुआ । स्टाफ पद्धति न्यूम्स का विकसित और संशोधित रूप है ।

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पाश्चात्य संगीत के विकास में वहाँ के गिरिजाघरों का विशेष स्थान रहा है । धार्मिक संगीत में सामूहिक गायन , पार्श्व संगीत और वृन्दवादन ( Orchestra ) को विशिष्ट स्थान प्राप्त है । समूह में स्त्री – पुरूष , बालक – बालिकायें सभी का समावेश होता है और यह भी स्पष्ट है कि उनके स्वर एक दूसरे से पृथक होते हैं । इसलिये सभी प्रकार के कन्ठों की स्वरलिपि लिखने के लिये पाँच से छ : और छः से ग्यारह रेखाओं की कल्पना की गई है । इस ग्यारह रेखाओं के समूह को ग्रेट स्टेव ( Great Stave ) कहा गया ।

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