Tansen Biography in Hindi तानसेन का जीवन परिचय

Tansen Biography – तानसेन का जीवन परिचय in Hindi

Tansen Biography in Hindi – तानसेन का जन्म 1500 ईस्वी लगभग ग्वालियर के पास बेहट गांव में मकरंद पांडे के यहां हुआ था। तानसेन के बचपन का नाम तन्ना मिश्र था। इन्होंने प्रारंभिक संगीत शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। तानसेन को बचपन से ही संगीत से प्रेम था। तानसेन की गुरु परंपरा ध्रुपद गायन शैली की थी। उसी के अनुसार तानसेन भी एक उच्च कोटि के कलावंत थे। गायन के साथ ही साथ तानसेन एक उच्च कोटि के कवि भी थे। इनके रची हुए अनेक ध्रुपद भाव और भाषा की दृष्टि से उच्च कोटि की साहित्य रचना कही जा सकती है।

ग्वालियर नरेश तन्ना से बहुत प्रसन्न रहते थे और उन्होंने ही बचपन में तन्ना को तानसेन की उपाधि दी थी। परंतु कुछ लोगों का मत है कि अन्ना को तानसेन की उपाधि सम्राट अकबर ने दी थी। संगीत का ज्ञान लेकर रीवा नरेश श्री रामचंद्र के दरबार में रहने लगे। अकबर बादशाह ने तानसेन का नाम सुनकर अपने दरबारी जलालुद्दीन कूची को भेजकर तानसेन को बुलवा लिया। अकबर ने तानसेन को अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया।

जाति – जाति तानसेन कलावंत नामक संगीत जीवी जाति में उत्पन्न हुए थे। अबुल फजल ने ढारी, कव्वाल, हुरकिया, दफजन, नटवा और कलावंत नामक संगीत जीवी जातियों का वर्णन किया है। इन जातियों में केवल कीर्तनिया वर्ग को ब्राह्मण बताया गया है। अबुल फजल के अनुसार ग्वालियर निवासी ध्रुपद गायक ‘कलावंत’ कहलाते थे। अतः तानसेन का जन्म उस संगीत जीवी जाति में हुआ था जो अकबरी युग में कलावंत कहलाती थी ।

तानसेन की संगीत शिक्षा

तानसेन का संगीत शिक्षा – तानसेन मुहम्मद आदिल शाह ‘अदली’, बक्सु, बैजू, स्वामी हरिदास आदि को अपना गुरु मानते थे। संभवतः मकरंद पांडे भी इनके गुरु रहे हो।

तानसेन की संताने और शिष्य प्रशिष्य

तानसेन की संताने और शिष्य प्रशिष्य :- तानसेन के 4 पुत्र हुए – तानतरंग खां, विलास खां, सूरत सेन और हमीर सेन तथा सरस्वती नाम की एक पुत्री थी। एवं सौहिलसेन और सुधीर सेन क्रमशः तानसेन के पौत्र एवं प्रपौत्र थे। तानसेन के वंशज दो वर्गों में बंट गए। एक तो बीनकार कहलाए और दूसरे रबाबिये कहलाए।

भारतीय संगीत में तानसेन का योगदान

भारतीय संगीत में तानसेन का योगदान :- तानसेन ने जो भी दिन संगीत को दी है उसी उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कई नए अविष्कार किए हैं जैसे –

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(i)सुरबहार नामक वाद का अविष्कार इन्होंने वीणा और सितार के आधार पर किया।

(ii) वीणा के आधार पर ही इन्होंने रबाब नामक वाद का आविष्कार किया।

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शाहजहां के युग में तानसेन के प्रायः 2000 ध्रुपद प्रचार में थे। इनके रचे हुए अनेक ध्रुपद भाव और भाषा की दृष्टि से उच्च कोटि की साहित्य रचना कही जा सकती है।

Tansen की उपलब्धियां

उन्होंने अनेक नए रागों की रचना की जैसे मियां मल्हार, मियां की सारंग, मियां की तोड़ी, दरबारी कन्हड़ा आदि। कहा जाता है कि फकीर गुलाम गौस की स्मृति में अपने नवीन रागों के आगे ‘मियां’ शब्द को जोड़ दिया। तानसेन के वंशज ‘सेनिया’ कहलाते हैं। इनकी शिष्य परंपरा तीन भागों में विभाजित हो गई है- पहला बीनकार (ii) दूसरा रबाबिया और (iii) तीसरा ध्रुपद गायक।

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गायन शैली के प्रकार में ” ध्रुपद गायन ” का नाम जहां भी आता है तानसेन का नाम उच्चतम शिखर पर लिया जाता है । उनकी ध्रुपद गायन की शैली भी बहुत अच्छी थी और गायन अत्यंत मोहक था।

मृत्यु तानसेन ज्वर से पीड़ित हो गए और फरवरी सन 1585 ईस्वी में दिल्ली में ही स्वर्गवासी हो गए। तानसेन की अंतिम इच्छा अनुसार तानसेन का शव ग्वालियर पहुंचाया गया और मोहम्मद गौस की कब्र के बराबर उनकी समाधि बनाई गई।

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ग्वालियर में प्रतिवर्ष तानसेन समारोह के अंतर्गत संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है। तानसेन की मृत्यु के पश्चात उनका कनिष्ठ पुत्र बिलास खां ने तानसेन के संगीत को जीवित रखने व उनकी कीर्ति को प्रसारित करने में समर्थ हुआ । 

Tansen Biography in Hindi के इस अध्याय में बस इतना ही। जुड़े रहें सप्त स्वर ज्ञान के साथ ।

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