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भारतीय शास्त्रीय संगीत और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत में अंतर
Difference between INDIAN Classical Music and WESTERN Classical Music in Hindi
भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक -चलिए शुरुआत करते हैं भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक के इस अध्याय को और जानते हैं उस तत्व के बारे में जो भारतीय संगीत को वेस्टर्न म्यूजिक से अलग करता है । वह तत्त्व क्या है ? जवाब है – वह तत्व है मेलडी और हार्मनी । भारत का संगीत मेलडी के तत्व पर आधारित है । वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में हार्मनी का इस्तेमाल किया जाता है ।
मेलडी(Melody) मतलब क्या ?
अब ये मेलडी मतलब क्या है ???
मेलडी मतलब कोई भी धुन जिसमें एक स्वर के बाद दूसरा स्वर आ जाता है । इन स्वरों के आने से स्वरों की एक माला हो जाती है। सुनने में यह जितना मुश्किल है उतना मुश्किल यह है नहीं ।
धुन – मतलब जो भी आप गुनगुनाते हो, गाते हो या किसी भी वाद्य पर बजा पाते हो, वो धुन है / मेलडी है। भारतीय संगीत में शास्त्रीय संगीत में जो राग पेश करते हैं वह भी एक मेलडी है ।
वेस्टर्न म्यूजिक में अलग क्या होता है ? (भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक)
पश्चातिया
अब आप पूछोगे कि वेस्टर्न म्यूजिक में ऐसा अलग क्या होता है ? वेस्टर्न म्यूजिक में भारतीय शास्त्रीय संगीत से अलग क्या होता है ?
भारतीय शास्त्रीय संगीत में जैसे मेलडी का इस्तेमाल होता है। वैसे ही वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में हार्मनी का इस्तेमाल किया जाता है ।
अब सवाल ये उठता है – मेलडी और हार्मनी में क्या फर्क है ?
मेलडी और हार्मनी ( Melody & Harmony ) क्या है ?
मेलडी – मेलडी जो है वह सिर्फ एक धुन की होती है ।
हार्मनी – हार्मनी दो या तीन धुन को एक साथ गाने से या बजाने से तैयार होती है ।
इसका मैं आपको उदहारण देता हूं ताकि आपको और भी गहराई में समझ में आए । अगर आप खाने के शौकीन हैं तो आप मेलडी की तुलना कर सकते हो किसी रोटी के साथ जहां पर सिर्फ एक लेयर होता है । हार्मनी की तुलना आप कर सकते हो किसी सैंडविच या फिर बर्गर के साथ जहां पर दो से अधिक लेयर होते हैं ।
मुझे आशा है कि आपको समझ में आया होगा कि कैसे मेलडी और हारमोनी दो तत्व भारतीय संगीत और वेस्टर्न म्यूजिक को एक दूसरे से अलग करते हैं।
तो आगे बढ़ते हैं और जानते हैं ” आवाज लगाओ की तकनीक ” । ” आवाज लगाओ की तकनीक ” से मेरा मतलब क्या है और यह कैसे भिन्न होती है भारतीय शास्त्रीय संगीत में और वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में ???
आवाज लगाओ की तकनीक ( भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक )
INDIAN CLASSICAL MUSIC / भारतीय शास्त्रीय संगीत में आवाज लगाओ की तकनीक
शास्त्रीय संगीत में जो है खुले आवाज में गाने की एक परंपरा है । गायक की आवाज तीनों सप्तकों में घूमने चाहिए । निचले सप्तक के ‘ प ‘ से लेकर ऊपरी सप्तक के ‘ ग ‘ तक इन स्वरों में गायक को गाना आना चाहिए।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में जो गायक आवाज चुरा कर नहीं गाते । कई गायक खुली आवाज जैसी आवाज वह नहीं लगाते । आवाज चुराकर गाना बिलकुल ही मना है भारतीय शास्त्रीय संगीत मे ।
आवाज चुराकर गाने को हम कहते हैं फॉलसेटो या फॉल्स वॉइस ।
अब जानते हैं आवाज लगाओ कि तकनीक वेस्टर्न म्यूजिक में
WESTERN CLASSICAL MUSIC / वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक मे आवाज लगाओ की तकनीक
आवाज के कितने प्रकार हैं ?
वेस्टर्न म्यूजिक में ऐसे माना जाता है कि आवाजों के प्रकार होते हैं । हर इंसान की अपनी एक रेंज होती है कोई लो पिच में गाता है तो कोई हाई पिच में गाता है तो उसका एक क्षेत्र होता है । उसका एक रेंज होता है जहां पर उसको गाना चाहिए । तीनों सप्तकों में गाना जरूरी है ऐसा नहीं है।
आवाज के चार मुख्य प्रकार होते हैं ।
आवाज के चार मुख्य प्रकार
लो रेंज से लेकर हाई रेंज तक यह चार मुख्य प्रकार हैं –
- बेस / BASS
- टेनर / TENOR
- अल्टो / ALTO
- सोप्रानो / SOPRANO
बेस और टेनर क्या है ? अलटो और सोप्रानो किसे कहते हैं ?
साधारणतः बेस और टेनर यह मेल वॉइस होते हैं जबकि अलटो और सोप्रानो फीमेल वॉइस होते हैं ।
फाल्स वॉइस का या फॉलसेटो का साथ विब्राटो का भी इस्तेमाल किया जाता है वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में ।
Note:- आवाज चुराकर गाने को हम कहते हैं फॉलसेटो या फॉल्स वॉइस ।
Note:- गाने के अंतिम शब्द को गाते समय कम्पन दिया जाना विब्राटो(Vibrato) कहलाता है ।
भारतीय शास्त्रीय संगीत और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत में आवाज लगाओ की तकनीक में अंतर ( DIFFERENCE )
भारतीय संगीतकार जब कोई स्वर लगाते हैं तो उसे बहुत सीधी तरीके से लगाते हैं । वही स्वर यदि एक वेस्टर्न गायक को लगाना है तो वह अंत में एक कंपन देगा तो अंत में जो कम्पन दिया गया उसे कहते हैं विब्राटो (Vibrato) ।
इसके बाद जान लेते हैं कि कैसे एक भारतीय शास्त्रीय संगीत के महफिल की सेटिंग की जाती है तथा कैसे यह अलग है वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक के सेटिंग से ।
महफिल/Concert की सेटिंग – भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक |
भारतीय शास्त्रीय संगीत के महफिल/Concert की सेटिंग
अगर आप किसी भारतीय संगीत के महफिल में बैठेंगे तो जानेंगे कि बहुत कम वाद्यों का इस्तेमाल किया जाता है। एक मुख्य कलाकार होता है और उसके साथ दो या तीन संगतकार होते हैं । अब यह क्यों होता है ? जवाब – क्योंकि हम मेलडी में विश्वास रखते हैं । इसी के कारण एक वक्त पर सिर्फ एक ही धुन गायी या बजाई जा सकती है । जो संगतकार है वह मुख्य आर्टिस्ट के धुन को ही फॉलो / अनुसरण करते हैं या साथ संगत करते हैं । वह अपनी खुद की धुन नहीं बजा पाते ।
एक अच्छी बात जो उभरकर आती है इससे वह है इंप्रोवाइजेशन मतलब उसी समय एक नई धुन का निर्माण कर पाना । इसमें मुख्य कलाकार /आर्टिस्ट को एक फ्रीडम/ आजादी मिल जाती है इसी के कारण भारतीय शास्त्रीय संगीत में आप ज्यादा इंप्रोवाइजेशन पाएंगे ।
वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक के महफिल/Concert की सेटिंग
अब हम जानेंगे वेस्टर्न म्यूजिक की सेटिंग कैसे होती है ।
वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में पूरा आर्केस्ट्रा ही होता है । बहुत सारे वाद्ययंत्र होते हैं, बहुत सारे कलाकार होते हैं, गायक होते हैं । यह क्यों ? जवाब – क्योंकि वह हार्मनी में विश्वास रखते हैं ।
NOTE:- – हार्मनी दो या तीन धुन को एक साथ गाने से या बजाने से तैयार होती है
एक ही गायक के साथ हार्मनी नहीं हो सकती । इसलिए इस व्यवस्था में बहुत सारे गायक आ जाते हैं ।
वादन की बात करें तो एक ही वाद्य यन्त्र(Musical instrument) के साथ हारमोनी नहीं हो सकती तो इसलिए बहुत सारे बजाने वाले आ जाते हैं ।
इसमें कोई एक मुख्य कलाकार नहीं होता । इसमें जोभी कलाकार/आर्टिस्ट होते हैं वह सारे महत्वपूर्ण होते हैं । इन कलाकारों को कोऑर्डिनेट/ सामंजस्य करना पड़ता है, साथ संगत करना होता है, एक टीम वर्क होता है । इसमें हरेक आर्टिस्ट अपनी एक धुन बजाता है और फिर जाकर हार्मनी तैयार होती है ।
इंप्रोवाइजेशन / Improvisation
इंप्रोवाइजेशन = उसी वक़्त एक नयी धुन बनाना/बजाना
ऐसे नहीं कि वेस्टर्न क्लासिकल सोलो(Solo) नहीं होते जरूर होते हैं जो मेन आर्टिस्ट होता है या जो सोलो(Solo) परफॉर्मर होता है वह अपनी धुन गाता है । पर जो संगतकार है वह उसी धुन को नहीं बजाता वह एक अलग सी धुन बजाता है जिससे हार्मनी क्रिएट होती है । एक साथ एकजुट होकर उन्हें संगीत पेश करना पड़ता है । इसी के कारण उनका सारा संगीत पहले ही कंपोज किया जाता है ।
चुकि उनका सारा संगीत पहले ही कंपोज किया हुआ होता है । वह सारा संगीत लिखित होता है ताकि कोआर्डिनेशन में बाधा ना आए । इसलिए इंप्रोवाइजेशन यानि की उसी वक़्त उसी समय एक नयी धुन बनाने का रास्ता/स्कोप बहुत कम हो जाता है वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक मे ।
अब तक हमने जाना कि भारतीय संगीत में और पाश्चात्य संगीत में कैसे धुन अलग-अलग बनायीं जाती है । अब जानते हैं की लय को यानी रिदम /Rhythm को कैसे विस्तार किया जाता है भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक में ।
लय / रिदम / Rhythm ( भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक )
भारतीय संगीत में अगर आप रिदम(Rhythm) की बात करोगे तो ताल का जिक्र जरूर होता है ।
वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में अगर आप रिदम(Rhythm) की बात करोगे तो टाइम सिगनेचर होता है ।
ताल / बीट्स / Beats – ( भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक )
ताल मतलब होता है बीट्स का एक साइकिल / चक्र । यानी कि जो मात्राएं होती हैं उनका एक आवर्तन होता है एक चक्र होता है ।
भारतीय संगीत में अनेक ताल हैं जिनमें 6 मात्राएं होती हैं या 7 मात्राएं होती हैं । कुछ ताल 8 मात्राओं की होती हैं किसी में 12 मात्राएं होते हैं किसी में 14 होते हैं कुछ 16 मात्राओं की होती हैं । ऐसे अलग-अलग मात्राओं के कई ताल होते हैं ।
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ताल / टाइम सिगनेचर / Time Signature – ( भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक )
भारतीय संगीत में ताल होता है वैसे वेस्टर्न म्यूजिक में क्या होता है ?
जैसे भारतीय संगीत में ताल होता है वैसे ही वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में टाइम सिगनेचर होता है । एक हिसाब से यह यह चक्र या आवर्तन जैसे नहीं होते यह एक लीनियर कंसेप्ट है ।
बहुत ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले टाइम सिग्नेचर है –
टू बाई फोर (2/4) यानि एक खंड में 2 मात्रा या बिट्स होते हैं ।
उसी प्रकार से और एक टाइम सिग्नेचर है फोर बाई फोर (4/4) एक खंड में 4 बिट्स होते हैं।
एक और टाइम सिग्नेचर है 3 बाय 4 (3/4) मतलब 3 मात्रा है एक खंड में ।
यहीं पर समाप्त होता है हमारा यह अध्याय। जहां पर हमने तुलना की इंडियन क्लासिकल म्यूजिक की वेस्टर्न म्यूजिक के साथ । आशा करता हूं आपको ( भारतीय vs वेस्टर्न म्यूजिक ) का यह अध्याय पसंद आया होगा आपकी जानकारी बढ़ी होगी आपका नॉलेज बड़ा होगा।
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