विषय - सूची
अध्याय- 19 ( सुगम संगीत ) | गायन के 22 प्रकार
- गायन
- प्रबंध गायन शैली
- ध्रुपद गायन शैली
- धमार गायन शैली
- सादरा गायन शैली
- ख्याल गायन शैली
- तराना
- त्रिवट
- चतुरंग
- सरगम
- लक्षण गीत
- रागसागर या रागमाला
- ठुमरी
- दादरा
- टप्पा
- होरी या होली
- चैती
- कजरी या कजली
- सुगम संगीत
- गीत
- भजन
- ग़ज़ल
सुगम संगीत की विशेषता
सुगम संगीत का अर्थ है वह संगीत जो सीखने में आसान है और जिसे सरलता से गाया तथा बजाया जा सकता है । सुगम संगीत को भारतीय संगीत विद्या का ही एक भाग कह सकते हैं । इसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के नियम या किसी खास नियमों में नहीं बाँधा गया है। जो लोगों के बीच प्रसिद्ध है, लोकप्रिय है, लोगों को प्रिय है, सुगम संगीत कहलाता है। लोकप्रिय संगीत, लोक गीत / लोक संगीत, फ़िल्मी गीत, भजन आदि इसी वर्ग में आते हैं। सुगम संगीत के ‘लोकप्रियता के कारण’ गीत के सरल रूप को माना जा सकता है । यही सुगम संगीत की विशेषता है ।
सुगम संगीत की तीन गेय विधाएँ हैं – गीत, ग़ज़ल, और भजन ।
सुगम संगीत का परिचय
सुगम संगीत जिसमें राग केवल आधार रूप में रहते हैं। उसमें राग का कोई महत्व नहीं रहता है । इसमें शब्दों पर विशेष ध्यान दिया जाता है , अतः यह शब्द प्रधान होता है । पार्श्व संगीत में विभिन्न प्रकार के स्वर समूह जो बजते हैं उनमें मैलॉडी नहीं रहती , किन्तु उनमें हारमनी भी नहीं रहती । फिल्म संगीत में पश्चिमी संगीत का बहुत प्रभाव है , इसमें हारमनी का प्रभाव अवश्य है , लेकिन विकृत रूप में ।
बंगाल का लोक गीत और लोक नृत्य Folk Song and Folk Dance of Bengal বাংলা
सुगम संगीत का अर्थ क्या है ?
यह संगीत की वह कला है , जिसके द्वारा संगीतज्ञ अपने हृदय के सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों को स्वर व लय के माध्यम से प्रकट करता है । संगीत का सम्बन्ध केवल हृदय से ही नहीं , वरन् सम्पूर्ण शरीर से है । चाहे वह किसी भी विधा का हो , जैसे – सुगम संगीत , फिल्म संगीत , ग़ज़ल , भजन , शास्त्रीय इत्यादि ।
पूर्वकाल में अपने क्षेत्र में पारंगत साहित्यकार , संगीतज्ञ फिल्म की कथावस्तु व स्वभाव के अनुरूप साहित्य और संगीत का सृजन करते थे तथा नियमित अभ्यास किए हुए गूढ़ रहस्यों को जानने वाले गायक गीतों को गाते थे , जिसके कारण राग – रस उत्पन्न होता था , जिसे कर्णप्रिय सुरीले वाद्ययंत्र अत्यन्त हृदयग्राही बना देते थे ।
सुगम संगीत का महत्व – Sugam sangeet ka Mahatv
सर्वोत्तम संगीत और साहित्य में भूतकाल की श्रेष्ठ परंपराएं , वर्तमान की सजीवता तथा भविष्य की प्रगति की ओर उन्मुख विधाओं का समावेश होना चाहिए । संगीत और साहित्य समाज का दर्पण होता है तथा पथ प्रदर्शक भी , इसलिए साहित्य और संगीत में नैतिकता नितांत आवश्यक है ।
आज के समय में पूरे भारत में सुगम संगीत की लोकप्रियता अभूतपूर्व है । इसका कारण यदि हम जानने की कोशिश करें तो हमें पहले और पहलुओं पर गौर करना होगा । ये पहलू निम्नलिखित हैं –
1. सुगम संगीत में भावानाओं का व्यक्त होना
1. सुगम संगीत में भावानाओं का व्यक्त होना – सुगम संगीत में जिन शब्दों के प्रयोग होते हैं वे बहुत ही सरल भाषा में बंधे होते हैं , जिसे आम लोग जल्द ही समझ जाते हैं और शब्दों के अनुसार जब संगीतकार इसके सुर बांधते हैं तब ये संगीत में परिवर्तित हो जाते हैं । अच्छे गायक इसमें इतने अच्छे भाव का प्रदर्शन करते हैं कि कभी – कभी आम श्रोता झूमते रह जाते हैं । यह भी देखा जाता है कि कई श्रोताओं की आँखों में आँसू आ गये हैं । ऐसा भी देखा जाता है कि कई श्रोता सुगम संगीत की भावनाओं में लीन होकर इतने अधिक आकर्षित और भावात्मक हो जाते हैं कि संगीत के क्षेत्र में अपने आपको समर्पित कर देते हैं । सुगम संगीत में घंटों तक लोग विलीन रहकर अपने आपको संगीत की मादकता में डुबो देते हैं ।
2. सामाजिक अवसरों पर सुगम संगीत
2. सामाजिक अवसरों पर सुगम – संगीत का गाया जाना – सुगम संगीत का क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत होता है । विभिन्न सामाजिक अवसरों पर सुगम संगीत बहुत ही महत्व होता है , जैसे – फूल सजाते समय , माला गूंथते समय , शादी के अवसर पर , जन्मदिन के अवसर पर , पूजा के अवसर इत्यादि पर ।
3. सुगम संगीत का व्यवसायिक रूप
3. सुगम संगीत का व्यवसायिक रूप – पहले सुगम संगीत का व्यावसायिक क्षेत्र बहुत ही सीमित था , लेकिन आज के युग में यह बहुत ही व्यापक आकार में नज़र आता है , जैसे – रेडियो , फिल्म , टी.वी. , स्टेज प्रोग्राम इत्यादि । इसे पेशेवर तरीका भी कहा जा सकता है । इस पेशेवर तरीके से कलाकार का अपना खर्चा चलता है ।
4. सुगम संगीत में शिक्षा का प्रभाव
4. सुगम संगीत में शिक्षा का प्रभाव – सुगम संगीत में शिक्षा का प्रभाव होने से कलाकार अच्छी सरल भाषा प्रयोग करता है । सार्वजनिक गीतों में , जिनमें ज्ञानवर्धक शिक्षाप्रद एवं तत्वज्ञान मिलते हैं । गीतों में जीवन – दर्शन होता है और कुछ न कुछ संदेश अवश्य निहित होता है । आत्मा का परमात्मा से मिलन किस विधि होना है , इसका ज्ञान भी निहित होता है ।
भाषा सरल और सुन्दर होने पर ज्यादा प्रभाव डालती है । आम लोग इसे जल्दी समझ लेते हैं और पूरा आनंद भी उन्हें अवश्य मिलता है ।
अभ्यार्थियों के लिए संगीत संस्थाएं
अन्तत : कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में सुगम संगीत के अभ्यार्थियों के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर इसकी गायकी तथा शैली के विषय पर पाठ्य – पुस्तकें उपलब्ध हैं । इससे सभी सुगम संगीत गायक – गायिका लाभान्वित हो सकते हैं ।
इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय ( छत्तीसगढ़ ) में सुगम संगीत के शिक्षण हेतु गीतांजलि जूनियर व गीतांजलि सीनियर दो वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम का संचालन भी होता है । इसके अतिरिक्त कई और संगीत संस्थाएं भी सुगम संगीत में डिप्लोमा कक्षाएँ संचालित करती हैं । यह संगीत का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है । इसमें भजन , ग़ज़ल , गीत आदि के अतिरिक्त विभिन्न प्रांतों के लोक संगीत , लोकनृत्य आदि का समावेश है ।
Share > Subscribe > ” सप्त स्वर ज्ञान ” से जुड़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद।