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भजन शैली Bhajan Shaili अध्याय(21/22)

भजन शैली

अध्याय -21 ” भजन शैली ” | गायन के 22 प्रकार

  1. गायन
  2. प्रबंध गायन शैली
  3. ध्रुपद गायन शैली
  4. धमार गायन शैली
  5. सादरा गायन शैली
  6. ख्याल गायन शैली
  7. तराना
  8. त्रिवट
  9. चतुरंग
  10. सरगम
  11. लक्षण गीत
  12. रागसागर या रागमाला
  13. ठुमरी
  14. दादरा
  15. टप्पा
  16. होरी या होली
  17. चैती
  18. कजरी या कजली
  19. सुगम संगीत
  20. गीत
  21. भजन
  22. ग़ज़ल

भजन शैली

भजन ” सुगम संगीत की एक शैली है । इसका आधार लोकसंगीत या शास्त्रीय संगीत हो सकता है । भजन मूल रूप से किसी देवी – देवता की प्रशंसा में गाया जाने वाला गीत है । स्तोत्र और श्रवण का लोकरूप ही भजन है ।

सामान्य रूप से उपासना की सभी पद्धतियों में भजनों का प्रयोग किया जाता । है । इनमें शास्त्रीय संगीत की तरह बन्धन नहीं रहता है , जिन गीतों में ईश्वर का गुणगान किया जाता है । उनमें प्रार्थना की जाती है , उन्हें भजन और जिन कविताओं को स्वर तालबद्ध करके गाते हैं , उन्हें गीत कहते हैं । राग – ताल नियमों से स्वतन्त्र आकर्षक रचनाए , भावानुकूल शब्दी द्वारा गीत रचना आदि एक अच्छे भजन की विशेषताएँ होती हैं ।

भजन को सामान्यतः दादरा और कहरवा ताल में गाया जाता है । भजन और चित्रपट गीतों में मुख्य अन्तर यह है कि इनकी तुलना में चित्रपट गीतों की रचना बहुत चलती फिरती और शब्द सरल होते हैं ।।

भजन का विकास

उपासना में प्रयुक्त होने वाले गीतों को भजन की संज्ञा दी गई है । सगुणोपासना के कारण इस विधान को अधिक प्रसार मिला । स्तोत्र ग्रन्थ धर्म सम्बन्धी पंचक , अष्टक , दशकादि रचनाएँ इस पद्धति के अन्तर्गत हैं ।

भज गोविन्द भज मूढ़मते भजन की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है । बौद्ध , जैन और तत्पश्चात् पौराणिक हिन्दू धर्म ने यह रचना विधि अपनाई । लोक रचना विधि का यह धार्मिक अभियान है । भजन के लिए न तो कोई विशेष छन्द है और न ही गेयता की दृष्टि से कोई राग – विशेष | स्तोत्र काव्य जहाँ विशेष रूप से छन्दात्मक है । वहाँ भजन गेय पद्धाश्रित है ।

प्रातःकाल गाए जाने वाले भजन को प्रभावी कहते हैं । संस्कृत में भी प्रभात स्तोत्र हैं , जिनमें से भी हर्ष कृत सुप्रभात स्तोत्र में बुद्ध की प्रार्थना स्त्रग्धरा कृत में है । यामुनाचार्य ने लक्ष्मी और विष्णु की स्तुति में रचनाएँ की थीं । स्वामी रामानन्द के कारण उत्तरी भारत में भक्ति की जो धारा बही , उससे गेय पदों में भजनों की रचना को प्रोत्साहन मिला । भजन में इष्ट का रूप कीर्तन अथवा गुण कीर्तन होता है । 

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