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सादरा गायन शैली – Sadra Gayan Shaili अध्याय (5/22)

सादरा गायन शैली

अध्याय- 5 ( सादरा गायन शैली ) | गायन के 22 प्रकार

  1. गायन
  2. प्रबंध गायन शैली
  3. ध्रुपद गायन शैली
  4. धमार गायन शैली
  5. सादरा गायन शैली
  6. ख्याल गायन शैली
  7. तराना
  8. त्रिवट
  9. चतुरंग
  10. सरगम
  11. लक्षण गीत
  12. रागसागर या रागमाला
  13. ठुमरी
  14. दादरा
  15. टप्पा
  16. होरी या होली
  17. चैती
  18. कजरी या कजली
  19. सुगम संगीत
  20. गीत
  21. भजन
  22. ग़ज़ल

सादरा गायन शैली क्या है ?

सादरा अर्द्धशास्त्रीय संगीत और लोकगीत के बीच की कड़ी है गायन की यह शैली दादरा से बहुत मिलती – जुलती है । सादरा को अधिकतर कथक गायक गाते हैं । इसमें कहरवा , रूपक , झपताल तथा दादरा इन तालों का प्रयोग होता है । भाव की दृष्टि से गीतों में शृंगार रस और उसकी चंचलता की प्रधानता रहती है इसलिए इसकी प्रकृति प्रायः ठुमरी की तरह होती है ।

ठुमरी गायक सादरा भली प्रकार गा सकते हैं । वाजिद अली शाह ने कई सादरा गीत भी लिखे जो कि अधिकांशतः खमाज राग में हैं । कुछ विद्वानों का ऐसा विचार है कि मध्यकाल में ठुमरी के साथ मिलती – जुलती एक और शैली प्रचार में आई जिसको सादरा कहा गया ।

क्रमिक पुस्तक मालिका के 6 भागों में ध्रुवपद के अन्तर्गत झपताल की बन्दिशें भी प्राप्त होती हैं , जिससे सादरा शैली का आभास मिलता है । राग बिहाग , कायम रहे राज़ और उमर दराज आदि रचनाएँ सादरा के अन्तर्गत गाई जाती हैं ।

सादरा की विशेषता

सादरा शैली की निम्न विशेषताएँ हैं –

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