अध्याय- 15 ( टप्पा गायन ) | गायन के 22 प्रकार
- गायन
- प्रबंध गायन शैली
- ध्रुपद गायन शैली
- धमार गायन शैली
- सादरा गायन शैली
- ख्याल गायन शैली
- तराना
- त्रिवट
- चतुरंग
- सरगम
- लक्षण गीत
- रागसागर या रागमाला
- ठुमरी
- दादरा
- टप्पा
- होरी या होली
- चैती
- कजरी या कजली
- सुगम संगीत
- गीत
- भजन
- ग़ज़ल
टप्पा का अर्थ
टप्पा गायन शैली – टप्पा संस्कृत भाषा का शब्द माना जाता है , जिसका अर्थ – उछलना कूदना छलांग लगाना है । यह पंजाब में अत्यधिक लोकप्रिय है । मूलरूप से यह पंजाब की लोक गायन शैली रही है , जो कालान्तर में विभिन्न विशेषताओं से विभूषित होकर सम्पूर्ण भारत में तो प्रचलित हुई ही है । इसने भारतीय उपशास्त्रीय संगीत की गायन शैली में प्रमुख स्थान प्राप्त किया है ।
यह गायन शैली शृंगार रस प्रधान गायन शैली है । इस गायन शैली का प्रचार सर्वप्रथम गुलाम नबी शोरी ने किया , इसलिए इन्हें इसका आविष्कारक माना जाता है । इसमें गीत के शब्द बहुत अल्प होते हैं , इसके स्थायी और अन्तरा नामक दो भाग होते ख्याल की भाँति इसमें भी खटका , मुर्की , मींड ताल आदि का सुन्दर रूप देखने को मिलता है । इसका उद्गम पंजाब के पहाड़ी प्रदेशों में हुआ और विकास अवध के दरबार में ठुमरी के साथ – साथ हुआ । पंजाब के मियाँ शोरी तथा गायकी के जन्मदाता माने जाते हैं ।
इस टप्पा गायन शैली के गीतों का प्रवर्तन पंजाब के ऊँट चराने वालों के द्वारा किया गया । उनकी आकर्षणता के कारण इन्हें शास्त्रीय संगीत में स्थान प्राप्त हुआ । यह पूर्णत : सत्य है कि इस विधा के विवेचन के अभाव में पंजाब से सम्बन्धित कोई । भी विवेचन अर्थात् सांगीतिक विवेचन अधूरा माना जाता है । कुछ विद्वानों ने इस गायन शैली को बेसरा नामक गीति से सम्बन्धित माना है ।
टप्पा की शैली
टप्पा गायन शैली की प्रकृति चंचल है । इसमें कहीं भी स्वर व लय को विश्रान्ति नहीं मिलती है । इसमें प्रयोग की जाने वाली टप्पा नामक ताल 16 मात्राओं की होती है ।
भावपक्ष अधिक प्रबल व महत्त्वपूर्ण माना जाता है । क्षुद्र प्रकृति के रा इसके अन्तर्गत आलाप का प्रयोग नहीं किया जाता है । इसमें कलापक्ष की अपेक्षा जैसे – खमाज , झिंझौटी , काफी , भैरवी , पीलू आदि चंचल व चंचल प्रकृति के रामो में इसे गाया जाता है । अतः टप्पा सम्बन्धित मत चाहे कितने भी हों , अनन्त मूल रूप से इसका स्थान पंजाब ही है ।
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टप्पा नामक ताल 16 मात्राओं की होती है । यह मूलरूप से यह पंजाब की लोक गायन शैली रही है, यह गायन शैली शृंगार रस प्रधान गायन शैली है ।