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अध्याय -22 ” गजल ” | गायन के 22 प्रकार
गजल के प्रकार इस अध्याय में हम सारे पहलुओं को अच्छे से जानेंगे । पाठकों इस श्रृंखला का यह आखरी अध्याय है ।
- गायन
- प्रबंध गायन शैली
- ध्रुपद गायन शैली
- धमार गायन शैली
- सादरा गायन शैली
- ख्याल गायन शैली
- तराना
- त्रिवट
- चतुरंग
- सरगम
- लक्षण गीत
- रागसागर या रागमाला
- ठुमरी
- दादरा
- टप्पा
- होरी या होली
- चैती
- कजरी या कजली
- सुगम संगीत
- गीत
- भजन
- ग़ज़ल
चलिए शुरुआत करते हैं कुछ शायरी से या शायद एक ग़ज़ल से । क्या शायरी और ग़ज़ल में अंतर होता है ? पहले ये शेर पढ़िए फिर आगे समझते हैं –
पास रहकर जुदा सी लगती है ,
ज़िन्दगी बे वफ़ा सी लगती है
मै तुम्हारे बगैर जी लूँ ,
ये दुआ बद्दुआ सी लगती है
नाम उस का लिखा है आँखों पर आँसुओं की खता सी लगती है
वो अभी इस तरफ़ से गुजरा है
ये जमीं आसमाँ सी लगती है
प्यार करना भी जुर्म है शायद
आज दुनिया ख़फ़ा सी लगती है । – बशीर बद्र
शायद आपको पता होगा कि शेरों के समूह को ग़ज़ल कहते हैं । ऊपर दिए गए शेरों के समूह को हम ग़ज़ल कहेंगे । लेकिन नीचे दिए गए शेरों के समूह को हम ग़ज़ल नहीं कह सकते । ऐसा भला क्यों ? आइये जानते हैं ;-
आइये कुछ सवाल जवाब कर लेते हैं फिर ठीक ऊपर दिए गए बशीर बद्र के शेरों को उदहारण के तौर पर रखकर हम सारी बातें जानेंगे । पहले कुछ QnA
गजल– दीवान, रदीफ़, काफिया, मक्ता, मतला, मिस्सा क्या है ?
गजल के प्रकार- गजल यह अरबी साहित्य में उल्लेखित प्रसिद्ध काव्य विधा है , जो समय के साथ फारसी , उर्दू , नेपाली और हिन्दी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुई । संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई । गजल का अरबी भाषा में अर्थ है आँखों से या आँखो के बारे में बात करना ।
सवाल और जवाब – Questions and Answers
गजल एक ही लहर और वजन के क्रम में लिखे गए शेरों के समूह होते हैं ।
गजलों में शेरों की संख्या विषम होती है । एक गजल में कम – से – कम 5 और ज्यादा – से – ज्यादा 25 तक शेर हो सकते हैं । इन शेरों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होता है ।
मतला का अर्थ है उदय । ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहा जाता है .
मक्ता का अर्थ है अस्त । गजल के अन्तिम शेर को मक्ता कहा जाता है ।
गजल के शेर में तुकान्त शब्दों को काफिया कहा जाता है ।
शेरों के अन्तर्गत दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है ।
शेर की पंक्ति को मिसरा कहा जाता है ।
कभी – कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं । इस प्रकार के शेरों को कता बन्द कहा जाता है ।
मतले के दोनों मिस्सों में काफिया आता है । आगे के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफिया आता है । रदीफ़ हमेशा काफिए के बाद आता है रदीफ़ और काफिया एक ही शब्द के भाग भी हो सकते हैं ।
गजल में प्रयोग होने वाले सबसे अच्छे शेर को ‘ शाहे बैत ‘ कहा जाता है ।
उर्दू का पहला दीवान शायर कुली कुतुबशाह था ।
गजलों के संग्रह को दीवान कहा जाता है , जिसमें हर हर्फ से कम एक गजल अवश्य हो ।
बशीर बद्र के ग़ज़ल के इस शेर पर नज़र डालते हैं
सर से पा तक गुलाबों का शजर लगता है बावजू होके भी छूते हुए डर लगता है
शजर = पेड़ , बावजू = साफ़ , पवित्र
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है जमीं
पाँव फैलाऊं तो दीवार से सर लगता है
किसी ग़ज़ल के पहले शेर को हम मतला कहते हैं । इस शेर में ” लगता है ” रदीफ़ है । तथा ” शजर , डर, सर ” ये तुक मिलने वाले शब्द काफिया हैं । मतला = उदय ,
रदीफ़ और काफिया के बीच कोई शब्द नहीं हो सकता । रदीफ़ पूरे ग़ज़ल में वही रहता है, यह बदलता नही है ।
शेर की पंक्ति को मिसरा कहा जाता है । जैसे हम कहते हैं पहली लाइन दूसरी लाइन । उसी तरह, यहाँ हम कहेंगे पहला मिसरा, दूसरा मिसरा । आप देख रहे होंगे कि रदीफ़ ” लगता है ” दोनों मिसरों में आया है , उसके बाद के शेर में ” लगता है ” केवल दूसरे मिसरे में आया है । इसी तरीके से शेर लिखे जाते हैं । और 5 से ज्यादा पर 25 से कम शेरों के समूह ग़ज़ल कहलाते हैं ।
ग़ज़ल के अंतिम शेर को हम मक्ता कहते हैं । मक्ता = अस्त
पास रहकर जुदा सी लगती है , ज़िन्दगी बे वफ़ा सी लगती है
इस शेर में जुदा और वफ़ा तुक शब्द के रूप में नहीं मिल रहा पर ” आ ” की ध्वनि का तुक मिल रहा । एक और उदहारण से समझते हैं । यहाँ ” हो जाएगा ” रदीफ़ है ।
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा ।
हम भी दरिया हैं हमे अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा ।
गजल के प्रकार
तुकान्तता के आधार पर गजल दो प्रकार के होते हैं –
- मुअद्सगजले इन गजल के अंशआरों में रदीक और काफिया दोनों का विशेष ध्यान रखा जाता है ।
- मुकफ्फागजले इन गजल के अशआरों में काफिया का विशेष ध्यान रखा जाता है ।
भावनात्मक आधार पर गजल दो प्रकार के होते हैं , जो निम्न हैं
- मुसल्सल इसके अन्तर्गत प्रत्येक शेर का भाव स्वतन्त्र होता है ।
- क्रमिक विकास के आधार पर गजलें तीन प्रकार की हैं , जो निम्न हैं ।
- ( i ) अरबी में गजलों में शुरुआत अरबी साहित्य की काव्य विधा के रूप में हुई । अरबी भाषा में गाई गई गजलें वास्तव में नाम के ही अनुरूप थीं अर्थात् उनमें आँखों से बातें या उनके बारे में बातें होती हैं ।
- ( ii ) उर्दू में उर्दू में गाने पर भी गजल का शिल्प रूप ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया । हिन्दुस्तानी गजलों का जन्म बहमनी सल्तनत के समय दक्कन में हुआ , जहाँ गीतों से प्रभावित होकर गजलें लिखी गईं । दक्किनी उर्दू के गजलकारों ने अरबी फारसी के बदले भारतीय प्रतीकों , काव्य रूढ़ियों एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को लेकर रचना की । उत्तर भारत में राजकाव्य की भाषा फारसी थी । जब गजल उत्तर भारत से आई , तो पुनः उस पर फारसी का प्रभाव बढ़ने लगा । गालिब जैसे उर्दू के श्रेष्ठ गजलकार भी फारसी गजलों को महत्त्वपूर्ण मानते हैं । और उर्दू गजल को फारसी के अनुरूप बनाने की कोशिश करते हैं । बाद में उत्तर भारत में फारसी का प्रभाव कुछ कम हुआ , परन्तु बाद में राजनीतिक स्थितियों के कारण उर्दू गजलों पर फारसी का प्रभाव पुनः बढ़ने लगा ।
- ( iii ) हिन्दी में हिन्दी के अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपनाया , जिनमें निराला , शमशेर , बलबीर सिंह रंग , भवानी शंकर , सर्वेश्वर दयाल सक्सेना , त्रिलोचन आदि प्रमुख हैं । इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्धि दुष्यन्त कुमार को मिली ।
- संगीत शैली के प्रकार- Music Genre (Sangeet Shaili) ke prakar
- रस के प्रकार या भेद (विस्तृत वर्णन)-Ras ke Prakar
- संगीत कला के प्रकार कितने है ? Types of Indian Music Art/Kala ?
आशा करता हूँ आपको ” ग़ज़ल के प्रकार ” यह अध्याय पसंद आया होगा । कृपया comment करके बताएं । मुझे आपके सुझाव और सवालों का इंतज़ार रहेगा ।
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