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होरी गायन शैली Hori Gayan Shaili अध्याय(16/22)

होरी गायन शैली

अध्याय- 16 ( होरी गायन ) | गायन के 22 प्रकार

  1. गायन
  2. प्रबंध गायन शैली
  3. ध्रुपद गायन शैली
  4. धमार गायन शैली
  5. सादरा गायन शैली
  6. ख्याल गायन शैली
  7. तराना
  8. त्रिवट
  9. चतुरंग
  10. सरगम
  11. लक्षण गीत
  12. रागसागर या रागमाला
  13. ठुमरी
  14. दादरा
  15. टप्पा
  16. होरी या होली
  17. चैती
  18. कजरी या कजली
  19. सुगम संगीत
  20. गीत
  21. भजन
  22. ग़ज़ल

होरी गायन शैली – होरी शब्द की व्युत्पत्ति का सम्बन्ध शास्त्रीय संगीत की धमार शैली के साथ जोड़ा जा सकता है , क्योंकि इसके साहित्य में प्रायः होरी का वर्णन  मिलता है । 

 भारतीय संस्कृति में शृंगार और आनन्द महोत्सव के रूप में बसन्त एवं होली क्रीड़ा का हमेशा से महत्त्व रहा है । प्राचीन ग्रन्थों में इसे मदनोत्सव कहा जाता है ।। ऋतुराज के आने पर उसके मनमोहक वातावरण में स्वयं को सम्मिलित करते अपनी उमंगों को व्यक्त करने का त्योहार है होली । होरी मूलत : ब्रज शैली का गायन है ।

ख्याल गायक जब होली सम्बन्धी गीतों को विभिन्न तालों में गाते हैं , तब उन्हें होरी कहा जाता है । राधा – कृष्ण और कृष्ण – गोपियों की फाल्गुन मास की लीलाओं के वर्णन को जब धमार ताल में गाते हैं , तो उसे धमार कहा जाता है । जब ख्याल गायक उसे त्रिताल दीपचन्दी कहरवा आदि तालों में गाते हैं , तब उसे होरी कहा जाता है ।

होरी की विशेषता

होरी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

आशा करता हूँ आप इन अध्यायों की श्रृंखला पसंद आ रही होगी । आगे आने वाली केवल संगीत से जुड़ी जानकारियों के लिए Subscribe करें, Share करें अपने मित्रों के बीच और जुड़े रहे सप्त स्वर ज्ञान के साथ, धन्यवाद ।

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