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मध्यकालीन संगीत का इतिहास – Madhyakalin Sangeet (6/9)

मध्यकालीन संगीत का इतिहास

हिन्दुस्तानी संगीत के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन ( 6/9)

  1. वैदिक काल में संगीत- Music in Vaidik Kaal
  2. पौराणिक युग में संगीत – Pauranik yug me Sangeet
  3. उपनिषदों में संगीत – Upnishadon me Sangeet
  4. शिक्षा प्रतिसांख्यों में संगीत – Shiksha Sangeet
  5. महाकाव्य काल में संगीत- mahakavya sangeet
  6. मध्यकालीन संगीत का इतिहास – Madhyakalin Sangeet
  7. मुगलकाल में संगीत कला- Mugal kaal Sangeet Kala
  8. दक्षिण भारतीय संगीत कला का इतिहास – Sangeet kala
  9. आधुनिक काल में संगीत – Music in Modern Period

मध्यकालीन संगीत का इतिहास

• मध्यकालीन संगीत का इतिहास सामान्यतः 8 वीं से 18 वीं सदी के काल को मध्यकाल माना जाता है , किन्तु संगीत की दृष्टि से संगीत रत्नाकर के बाद अर्थात् 13 वीं से 18 वीं सदी के कालखण्ड को मध्य युग माना गया है ।

• मध्यकालीन संगीत / मध्यकाल को संगीत का स्वर्ण काल भी कहा जाता है । इसमें संगीत के महान् कलाकारों जैसे स्वामी हरिदास , बैजू बाबरा , तानसेन एवं गोपाल नायक आदि का प्रमुख योगदान रहा है । साथ ही कबीर , तुलसी , मीरा , सूरदास , नानक आदि भक्त कवियों के माध्यम से संगीत का प्रचार – प्रसार हुआ , जिसे निम्न प्रकार देखा जा सकता है ।

खिलजी काल में संगीत

खिलजी काल में संगीत • खिलजी काल 1290 से 1320 ई . तक माना जाता है । अलाउद्दीन खिलजी एक वीर एवं संगीत प्रेमी था , इन्हीं के दरबार में अमीर खुसरो नामक कवि तथा संगीतज्ञ हुए ।

• इसके अतिरिक्त इनके काल में गोपाल नायक जैसे उच्चकोटि के संगीत कलाकार थे । अमीर खुसरो ने भारतीय संगीत पर अमिट छाप छोड़ी । अमीर खुसरो ने भारतीय संगीत में कव्वाली , गजल , तराना , ख्याल , मुजीर , तिल्लाना आदि अनेक नई गायन शैलियों का प्रारम्भ किया । सरपरदा , साजगिरी , ऐमन , सोहिला आदि नए रागों का सृजन किया तथा वीणा के स्थान पर तीन तार वाले एक नए वाद्य ‘ सहतार ‘ का निर्माण किया । आधुनिक काल का सर्वाधिक प्रचलित वाद्य सितार , सहतार का ही परिष्कृतः रूप है ।

• ऐसा माना जाता है कि तबला वाद्य का आविष्कार भी अमीर खुसरो ने ही किया था । खुसरो भारतीय कला एवं संस्कृति के प्रशंसक थे ।

• अमीर खुसरो ने हिन्दुस्तानी संगीत में फारसी संगीत का मिश्रण कर राग – रागिनी की एक नवीन प्रणाली का आविष्कार किया । उन्होंने हिन्दुस्तानी 6 राग और 36 रागनियों तथा ईरानी के 12 मुकामों का समन्वय किया जिसके परिणामस्वरूप हिन्दुस्तानी संगीत में नवीनता के दर्शन हुए । द्वारा निर्मित रागिनियों ईमन रागिनी गायकों में आज भी विशेष प्रिय है । खुसरो ने भारतीय ‘ हिण्डोल ‘ तथा फारसी ‘ मुकाम ‘ राग मिलाकर ‘ इयामन ‘ या ‘ ईमन ‘ राग की रचना की थी ।

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• मुहम्मद गोरी के साथ शेख मुईनुद्दीन चिश्ती जैसा मुसलमान भी भारत में आया , इनके अनुयायियों ने भारतीय लोकाचार , भाषा एवं संस्कृति आदि को अपनाया , मौलवियों के विपरीत चिश्ती परम्परा के सूफी लोग भक्ति संगीत को स्वीकार करते हैं । अपने गीतों के लिए इन्होंने भारतीय धुनों को चुना । इस कारण हिन्दू समाज भी सूफी परम्परा की ओर आकर्षित हुआ । इस समय भी सफी सन्तों ने संगीत को सम्मान एवं प्रोत्साहन दिया । गोपाल नायक यह खिलजी काल के दूसरे प्रमुख संगीतकार थे ।

गोपाल नायक देवगिरी राज्य के प्रसिद्ध गायक थे । अलाउद्दीन खिलजी ने 1296 ई . में देवगिरी पर आक्रमण किया और विजय के पश्चात् वहाँ के गायकों को बन्दी बनाकर अपने दरबार में ले आया । गोपाल नायक संस्कृत भाषा का ज्ञाता था । वह संगीत के क्रियात्मक पक्ष के साथ – साथ संगीत के सैद्धान्तिक पक्षों में भी निपुण था । नायक ने ख्याल शैली के विकास के लिए काफी प्रयास किया तथा बडहंस , पीलू आदि रागों का आविष्कार किया ।

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तुगलक काल में संगीत

तुगलक काल में संगीत • यह काल 1320-1412 ई . तक माना जाता है । मोहम्मद तुगलक संगीत प्रेमी थे , इनके समय में दरबार में संगीत आयोजन होते रहते थे , किन्तु इस काल में संगीत को पर्याप्त राज्याश्रय नहीं मिला , फलस्वरूप इस काल में पूर्व काल की तरह संगीत की अधिक वृद्धि नहीं हुई , जबकि संगीत स्त्रियों को प्रिय था पर वे सार्वजनिक रूप से उसको प्रस्तुत नहीं कर सकती थीं । अतः इस काल में संगीत का विकास नाममात्र ही रहा ।

लोदी काल में संगीत

लोदी काल में संगीत • यह काल 1414-1526 ई . तक माना जाता है । इस समय संगीत की स्थिति सुधरने लगी थी । संगीतज्ञों का समाज में आदर था । इस समय ख्याल , गजल , कव्वाली आदि खूब प्रचलित थे । समूह गान का प्रचार था व संगीत आम जनता को खूब पसन्द था । 14 ई . में सौराष्ट्र के राजा हरिपाल देव एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ हुए ।

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• इन्होंने संगीत सुधाकर नाम से प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की । इस समय संगीतोपनिषद् व संगीतोरणिषत्सार नामक संगीत के प्रमुख ग्रन्थों की भी रचना हुई । संगीत मकरन्द की रचना भी इसी समय हुई । इस ग्रन्थ में पहली बार पुरुष , स्त्री व नपुंसक रागों का वर्गीकरण हुआ । 1428 ई . में संगीत शिरोमणि ग्रन्थ की रचना हुई ।

• लोदी के आक्रमण के समय जो 14 ई . से 15 वीं ईसवी तक का समय है अधिकांश राज्य छिन्न – भिन्न हो चुके थे तथा हिन्दू जाति के वीर पुत्र एक – एक कर समाप्त होते जा रहे थे । साथ ही दूसरों की अधीनता को स्वीकार करते जा रहे थे , जिसके कारण समाज व राज सत्ताओं के ढाँचे में विघटन हो गया था । अपनी स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने में भारतीय असफल रहे । संगीत के जिस वट वृक्ष को महर्षियों ने सींच कर हरा – भरा किया था , वह अब सूखने लगा था । राजनैतिक परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि मानव का मन कला – कौशल से हटकर स्वजीवन की रक्षा का विकल्प था ।

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• इसी समय में मोहम्मद गोरी तथा गजनवी ने भारत पर अनेकों बार आक्रमण किए । उनका लक्ष्य भारत की सम्पन्नता को समूल रूप से नष्ट करना था । उनकी सभ्यता भौतिक ही नहीं , बल्कि कला – कौशल के क्षेत्र को भी नष्ट करने वाली थी ।

मध्यकालीन संगीत का इतिहास ” यह हिन्दुस्तानी संगीत के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन का छठा अध्याय था , आगे बने रहें सप्त स्वर ज्ञान के साथ । धन्यवाद , हाँ इसे शेयर करना साथ ही साथ सब्सक्राइब करना न भूलें ।

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