गायन के घराने की परिभाषा – गायकी से घराने का निर्माण हुआ । एक गायक ने कुछ शिष्य को संगीत की शिक्षा दी । उन शिष्यों ने कुछ अन्य शिष्यों को तैयार किया । इस प्रकार शिष्यों की पीढ़ी चलती गई , जिसे घराना कहा गया । घराना का तात्पर्य है कुछ विशेषताओं का पीढ़ी दर पीढ़ी चला आना अर्थात् गुरू – शिष्य परम्परा को घराना कहते हैं ।
संगीत शिक्षण पद्धति – संस्थागत शिक्षण प्रणाली और गुरु शिष्य परंपरा क्या है ?
विषय - सूची
घराना संगीत – गायन के घराने
मध्य काल में देशी रियासतें बन गई जहाँ घरानों का जन्म और विकास हुआ । तानसेन के पूर्व कोई घराना नहीं मिलता है । मुगलों के पतन और ब्रिटिश राज्य की स्थापना से छोटी – छोटी रियायतें बन गई । हरेक रियासत में कुछ गायक – वादक जरूर होते थे । उन्हें राजा को गायन – वादन से खुश करना पड़ता था और बदले में राजा से पूर्ण आश्रय मिलता था । वे बड़े आराम से अपनी ज़िन्दगी बिताते और जब कभी कोई शिष्य उनसे सीखने आता तो उसे सिखाने में कतराते नहीं थे । केवल वही शिष्य काफी दिनों तक लगे रहने के बाद थोड़ा – बहुत सीख पाता था जो उस्ताद की सेवा करने में कुछ बाकी न रखता था ।
शिष्य पर उस्ताद की बड़ी निगरानी रहती । न तो उसे किसी अन्य गायक को सुनने की इजाजत रहती और न बिना उस्ताद की इजाजत के कहीं गा पाता । उस समय रेडियो व संगीत – सम्मेलन आदि साधन उपलब्ध नहीं थे । इस नियंत्रण का परिणाम अच्छा भी था और बुरा भी । अच्छा इस दृष्टि से कि शिष्य पर वाह्य प्रभाव न पड़ता और उसके बहकने की गुंजाइश न रहती । बुरा इस दृष्टि से कि कभी – कभी अयोग्य गुरू के पंजों में फँसकर वह अपने को नष्ट कर देता और उसे आँख खोलने का अवसर न मिलता ।
तानसेन के वंशजों से गायन के घराने का निर्माण माना जाता है । उनके पुत्र के वंशज सेनिये कहलाये जो ध्रुपद गाते थे और बीन बजाते थे । उनकी पुत्री के वंशज बानिये कहलाये जो ध्रुपद तो गाते ही थे , रबाब बजाते थे । ख्याल के छोटे – बड़े घराने अनेक हो गये , किन्तु मुख्य सात घराने माने जाते हैं जिनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है :
गायन के 7 घराने
( 1 ) ग्वालियर घराना Gwalior Gharana
( 1 ) ग्वालियर घराना – स्वर्गीय नत्थन पीरबख्श को इस घराने के जन्मदाता माना जाता हैं । उनके दो पुत्र कादर बख़्श और पीर बख्श थे । कादर बख्श ग्वालियर नरेश स्वर्गीय दौलतराव जी महाराज के यहाँ नियुक्त थे । कादर बख़्श के तीन पुत्र हुये- हदू , हस्सू व नत्थू खाँ । इन लोगों ने संगीत – जगत में बड़ा नाम कमाया । नत्थू खाँ को उनके चाचा पीरबख्श ने गोद लिया था । हस्सू खाँ के पुत्र गुले इमाम खाँ थे तथा उनके पुत्र मेंहदी हुसैन खाँ थे । इस परम्परा में बालकृष्ण बुआ इचलकरन्जीकर , बासुदेव जोशी एवम् बाबा दीक्षित ( नीलकंठ ) थे । बालकृष्ण बुआ के शिष्य पं 0 विष्णु दिगम्बर पलुस्कर थे . जिन्होंने संगीत के में बड़ा हाथ बटाया ।
स्वर्गीय विनायक राव पटवर्धन , स्व 0 वी 0 ए 0 कशालकर , स्व 0 वी 0 एन 0 ठकार , स्व 0 ओंकार नाथ ठाकुर , स्व नारायण राव व्यास इत्यादि पलुस्कर जी के शिष्य थे और इसी परम्परा के गायक थे । हदू खाँ के दो पुत्र थे , रहमत खाँ और मुहम्मद खाँ । उनके शिष्यों में इन्दौर के रामाभाऊ तथा विष्णुपन्त छत्रे प्रमुख थे । नत्थू खाँ के दत्तक पुत्र उस्ताद निसार हुसैन खाँ थे , जिन्होंने संगीत में बड़ा नाम कमाया । नत्थू खाँ के कोई पुत्र नहीं था , इसलिए उन्होंने अपने मित्र के लड़के निसार हुसेन को गोद प्रचार ले लिया जिन्हें संगीत की अच्छी शिक्षा दी ।
निसार हुसेन की शिष्य परम्परा में शंकर राव , पं 0 भाऊराव जोशी , पं 0 रामकृष्ण बुआ बझे , राजाभैया पूँछवाले , मुश्ताक हुसेन इत्यादि थे । शंकरराव पंडित के पुत्र पं 0 कृष्णराव शंकर पंडित थे तथा शिष्य स्व 0 राजा भैया पूँछवाले थे ।
ग्वालियर घराने की विशेषतायें
1- ध्रुपद अंग के ख्याल , 2- जोरदार तथा खुली आवाज , 3 बहलावा से विस्तार , 4- गमक का प्रयोग , 5- सीधी तथा सपाट तानों का विशेष प्रयोग , 6- लयकारी और कभी – कभी लड़न्त , 7- ठुमरी के स्थान पर तराना गायन और 8 – तैयारी पर विशेष बल ।
( 2 ) आगरा घराना Agra Gharana
( 2 ) आगरा घराना आगरा घराने का विशेष सम्बन्ध ग्वालियर घराने से है , इसलिये बहुत सी बातें आपस में मिलती – जुलती हैं । आगरा घराना के संस्थापक सुजान खाँ थे । आगे चलकर इस घराने का प्रचार घग्गे प्रवर्तक सुजान खुदाबख्श द्वारा हुआ । वे ग्वालियर के नत्थन पीरबख्श ( हस्सू , हद् , नत्थू खाँ के बाबा ) के शिष्य बन गये थे और उनसे ख्याल – गायकी की शिक्षा ली और फिर आगरा चले गये । इस प्रकार ग्वालियर घराने की विशेषतायें आगरा चली गई । खुदाबख्श और खाँ भाई – भाई थे । जग्गू खाँ के पौत्र नत्थन को संगीत शिक्षा घग्गे खुदा बख्श के पुत्र गुलाम अब्बास खाँ से प्राप्त हुई । गुलाम अब्बास खाँ स्व0 उस्ताद फैयाज खाँ आगरा घराने के रत्न माने जाते थे । नत्थन खाँ की गायकी का प्रभाव फैयाज़ खाँ के शिष्यों में शराफत हुसेन और लताफत हुसेन प्रमुख थे , जो आगरा जग्गू घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे । नत्थन पीरबख्श के पुत्र विलायत हुसैन की मृत्यु कुछ वर्षों पूर्व हुई है ।
आगरा घराने की विशेषतायें
आगरा घराने की विशेषतायें 1- ग्वालियर घराने की तरह खुली किन्तु जवारीदार आवाज़ , 2- ध्रुपद के समान ख्याल में भी नोम – तोम का आलाप , 3- जबड़े का अधिक प्रयोग , 4- बन्दिशदार चीजें , 5- बोलतानों की विशेषता , 6- ख्याल के अतिरिक्त ध्रुपद , धमार और ठुमरी में प्रवीणता , 7 लय – ताल पर विशेष अधिकार ।
( 3 ) दिल्ली घराना Delhi Gharana
( 3 ) दिल्ली घराना मुगलों के पतन के बाद तानरस खाँ ने इस घराने को शुरू किया । तानरस खाँ के तानों में एक अजीब बात यह थी कि उनकी तानों से ऐसा मालूम पड़ता था कि मानों बहुत से पक्षी एकदम उड़ गये हों । तानरस खाँ के पुत्र उमराव खाँ ने इस घराने को आगे बढ़ाया । पटियाला घराना के प्रसिद्ध उस्ताद अलैया और फत्ते अली खाँ ने तानरस खाँ से शिक्षा पाई थी । अभी तक उस्ताद चाँद खाँ इस घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे ।
दिल्ली घराने की विशेषतायें
दिल्ली घराने की विशेषतायें 1- ख्याल की कलापूर्ण बन्दिश , 2- तानों में निरालापन , 3 द्रुत लय में बोल तानों का प्रयोग , 4- तैयारी पर बल ।
( 4 ) जयपुर घराना Jaipur Gharana
( 4 ) जयपुर घराना आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व मुहम्मद अली खाँ ने जयपुर घराने को जन्म दिया था । कुछ लोगों का विचार है कि इस घराने के प्रवर्तक मनरंग थे । मुहम्मद अली इनके वंशज माने जाते हैं । इनके पुत्र प्रसिद्ध संगीतज्ञ आशिक अली खाँ थे । आशिक अली हाँ पहले गाना गाते थे किन्तु बाद में सितार बजाने लगे । इनके शष्यों में जी 0 एन 0 गोस्वामी , मुश्ताक अली , अनवरी बेगम , रसूलन नाई प्रमुख हैं ।
जयपुर घराने की विशेषतायें
जयपुर घराने की विशेषतायें 1- गीत का संक्षिप्त बन्दिश , 2- वक्र तानें तथा छोटी – छोटी तानों से आलाप की बढ़त , 3- आवाज लगाने का अपना ढंग , 4 खुली आवाज का गायन , 5- स्वर – सौन्दर्य पर विशेष बल इत्यादि । इस घराने के अलैया और फत्तू ने तथा अल्लादिया खाँ ने दो पृथक् घरानों को जन्म दिया , जिनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है ।
( 5 ) पटियाला घराना Patiyala Gharana
( 5 ) पटियाला घराना इस घराने को अलैया जिन्हें अलीबख्श कहते थे तथा फत्तू जिन्हें फतेह अली कहते थे , इन दो भाइयों ने चलाया । कुछ लोगों का विचार है कि इन लोगों के पिता बड़े मियाँ कालू खाँ ने इस घराने की नींव डाली । इन दो भाइयों ने जयपुर की गोरखी बाई , बैरामखाँ तथा तानरस खाँ से शिक्षा प्राप्त की थी और पटियाला घराने को बढ़ाया । अभी तक इस घराने का प्रतिनिधित्व बड़े गुलाम अली खाँ कर रहे थे । बड़े गुलाम अली खाँ को अपने चाचा काले खाँ से शिक्षा मिली । बड़े गुलाम अली खाँ के पिता अलीबख्श और चाचा काले खाँ को बड़े कालू खाँ से शिक्षा प्राप्त हुई । काले खाँ को फतेह अली द्वारा भी शिक्षा मिली थी । बड़े गुलाम अली खाँ के पुत्र मुनव्वर अली खाँ अभी तक इस घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे ।
पटियाला घराने की विशेषतायें
पटियाला घराने की विशेषतायें ( 1 ) ख्याल की कलापूर्ण बन्दिश किन्तु संक्षिप्त ख्याल ( 2 ) अलंकारिक , वक्र तथा फिरत तानों का प्रयोग , ( 3 ) तानों की तैयारी और उनका अधिक प्रयोग ( 4 ) ख्याल के साथ पंजाब अंग की दुमरी गाने में निपुणता और ( 5 ) गले की तैयारी । ( 256 )
( 6 ) अल्लादिया खाँ का घराना Alladiya Khan ka Gharana
( 6 ) अल्लादिया खाँ का घराना अल्लादिया खाँ ने अपनी स्वतंत्र गायन – शैली द्वारा एक नया घराना चलाया । उन्होंने जहाँगीर खाँ से संगीत – शिक्षा प्राप्त की थी । जहाँगीर खाँ ने अपने पिता ख्वाजा अहमद से और ख्वाजा ने मानतोल खाँ से शिक्षा ग्रहण की थी । बाद में खाँ साहब अल्लादिया खाँ महाराष्ट्र में रहने लगे , उनके भाई हैदर खाँ थे जो एक उच्चकोटि के गायक थे । स्वरा भास्कर बुआ बखले ने संगीत – जगत में अच्छा नाम कमाया । मंजी खाँ और भुर्जी खाँ अपने समय के बड़े अच्छे कलाकार थे । ये दोनों भाई थे और अल्लादिया खाँ के पुत्र थे । मंजी खाँ का पूरा नाम बदरूदीन खाँ और भुर्जी खाँ का पूरा नाम शमशुदीन खाँ था । आजकल इस घराने के प्रतिनिधि कलाकार थे- केसरबाई केरकर , मोघूबाई कुर्डीकर तथा शंकरराव सरनाइक आदि ।
अल्लादिया घराने की विशेषतायें
अल्लादिया घराने की विशेषतायें ( 1 ) बुद्धि प्रधान और पेंचदार गायकी , ( 2 ) बोल अंगों की विशेषता , ( 3 ) गीत को भरने का अपना विशेष ढंग , ( 4 ) अप्रचलित रागों की ओर विशेष झुकाव , ( 5 ) विलम्बित लय में गायन , ( 6 ) कठिन गायकी ।
( 7 ) किराना घराना Kirana Gharana
( 7 ) किराना घराना इस घराने की बुनियाद मुगल काल में हुई थी । बाढ़ के कारण दोताही के संगीतज्ञों को जहाँगीर ने यू 0 पी 0 में ही जिला मुजफ्फरनगर के किराना नामक स्थान में बसा दिया । इस घराने का नाम उस स्थान के आधार पर पड़ा । सादिक अली खाँ वहाँ के एक प्रसिद्ध बीनकार थे । उनके सुपुत्र उ 0 बन्दे अली खाँ एक अच्छे बीनकार और गायक हुये । वे इन्दौर दरबार के संगीतज्ञ और महाराजा के गुरू भी थे । उस्ताद बंदे अली खाँ के शिष्यों के हुये , जिनमें प्रमुख थे मुराद खाँ बीनकार और नन्हें खाँ ध्रुपदिया जिनके शिष्य और अब्दुल वहीद खाँ इस घराने के थे अलीबख्श और मौलाबख्श । आगे चलकर अब्दुल करीम खाँ मुख्य प्रतिनिधि इस घराने को बहुत आगे बढ़ाया । अब्दुल करीम खाँ अपनी मधुर आवाज तथा मोहक गायकी के कारण अधिक लोकप्रिय हुए । अब्दुल वहीद खाँ करीम खाँ के निकट सम्बन्धी थे जो मिरज में रहते थे तथा इस घराने के प्रतिनिधि थे । करीम खाँ चार भाई थे अब्दुल हक , अब्दुल गनी , अब्दुल मजीद और स्वयं । स्वर्गीय रामाभाऊ कुन्दगोलेकर ( सवाई गन्धर्व ) तथा स्व ० सुरेश बाबू माने इसी परम्परा के गायक थे , जिन्होंने अब्दुल करीम खाँ से शिक्षा प्राप्त की थी । आजकल इस घराने के प्रमुख प्रतिनिधि कलाकार हैं स्व 0 हीराबाई बडोदेकर , पं0 भीमसेन जोशी , सरस्वती बाई राने , बस्वराज राजगुरू , गंगूबाई हंगल , स्व0 रज्जब अली खाँ , स्व ० उस्ताद अमीर खाँ , बहरे बुआ , पाकिस्तान की श्रीमती रोशन आरा बेगम इत्यादि । सवाई गन्धर्व से भीमसेन जोशी , गंगूबाई हंगल तथा बस्वराज राजगुरू ने संगीत – शिक्षा ग्रहण की ।
किराना घराने की विशेषतायें
किराना घराने की विशेषतायें ( 1 ) आलाप प्रधान गायकी , ( 2 ) स्वर लगाने की भावपूर्ण ढंग , ( 3 ) स्वर की विलम्बित बढ़त , ( 4 ) चैनदार गायकी , ( 5 ) विलम्बित लय प्रधान गायकी ।
गायन के घराने से सम्बंधित प्रश्न – उत्तर
संगीत में घराना शब्द का अर्थ है वंश – परंपरा । विशेषताओं का पीढ़ी दर पीढ़ी चला आना ।
यूँ तो कई सारे घराने हैं पर मुख्य रूप से 7 घराने प्रचलित हैं ।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में घरानों के नाम इस प्रकार हैं –
ग्वालियर घराना,
आगरा घराना,
दिल्ली घराना,
जयपुर घराना,
पटियाला घराना,
किराना घराना,
अल्लादिया खाँ घराना
ग्वालियर घराना सबसे प्राचीन संगीत घराना है। यह 16वीं शताब्दी के मध्य में स्थापित हुआ।
जयपुर घराना आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व मुहम्मद अली खाँ ने जयपुर घराने को जन्म दिया था ।
तानरस खाँ को इस घराने का जन्मदाता माना जाता है ।
नत्थन पीरबख्श को ग्वालियर घराने का जन्मदाता माना जाता हैं ।
संगीतज्ञों को जहाँगीर ने वर्तमान उत्तर प्रदेश में ही जिला मुजफ्फरनगर के किराना नामक स्थान में बसा दिया । इस घराने का नाम उस स्थान के आधार पर पड़ा । उस्ताद अब्दुल करीम खाँ को किराना घराना का संस्थापक माना जाता है ।
तानसेन के वंशजों से गायन के घराने का निर्माण माना जाता है । उनके पुत्र के वंशज सेनिये कहलाये जो ध्रुपद गाते थे और बीन बजाते थे । उनकी पुत्री के वंशज बानिये कहलाये जो ध्रुपद तो गाते ही थे , रबाब बजाते थे । ख्याल के छोटे – बड़े घराने अनेक हो गये , किन्तु मुख्य सात घराने माने जाते हैं जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है :
मुहम्मद अली खाँ ने जयपुर घराने को जन्म दिया था । कुछ लोगों का विचार है कि इस घराने के प्रवर्तक मनरंग थे ।
गायन शैली क्या है ? Gayan Shaili के प्रकार ? Thumri, Khayal, Dhrupad, Tarana
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