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अन्तर्सम्बन्धात्मक पहलू : संगीत का सम्बन्ध अन्य विषयों से
संगीत का सम्बन्ध अन्य विषयों से : अन्तर्सम्बन्धात्मक पहलू – प्राचीनकाल में शिक्षा सभी विषयों को पृथक् – पृथक् करके दी जाती थी । लेकिन जैसे – जैसे शिक्षा दर्शन के क्षेत्र का विकास हुआ , तो यह धारणा विकसित हुई है कि सभी विषयों में कहीं न कहीं समान तत्त्व पाया जाता है , जिसके कारण किसी भी विषय का ज्ञान कराने लिए उससे सम्बन्धित किसी अन्य विषय का सहारा लेकर सुगमता से अध्ययन कराया जा सकता है , जिससे बालक का अर्जित ज्ञान स्थायी हो सकेगा तथा शिक्षा उसके व्यक्तित्व का एक अंग बन जाएगी ।
सह – सम्बन्ध की यह विचारधारा तर्कसंगत , मनोवैज्ञानिक व व्यावहारिक है । मनोविज्ञान के अनुसार ज्ञान की विविधता की अपेक्षा ज्ञान की उपादेयताः अधिक उपादेय उपयोगी है । इसलिए छात्रों को प्रत्येक विषय अन्य विषयों से सम्बन्ध करके पढ़ाना हितकर है । इन विषयों के पारस्परिक सम्बन्ध को ही हम शिक्षा के क्षेत्र में विविध विषयों का ‘ सह – सम्बन्ध ‘ कहते हैं ।
संगीत का सम्बन्ध : विषयों को अन्तर्सम्बन्धित करने की आवश्यकता
किसी भी विषय का ज्ञान कराने ( बोध कराने ) के लिए दिए जाने वाले ज्ञान को रोचक , स्पष्ट , सरल व व्यावहारिक बनाने हेतु शिक्षण को प्रभावी बनाने । के लिए विषयों को परस्पर अन्तर्सम्बन्धित करने की आवश्यकता पड़ती है ।
विषयों में सह – सम्बन्ध दो प्रकार के होते हैं ।
- सुनियोजित सह – सम्बन्ध – इसके अन्तर्गत अध्यापक पूर्व में ही विषय ज्ञान प्रक्रिया में अन्य विषयों से सह – सम्बन्ध पूर्ण नियोजित करके शिक्षण अधिगम कराता है ।
- आकस्मिक सह – सम्बन्ध – इस प्रक्रिया के अन्तर्गत कक्षा – कक्ष में अध्ययन कराते समय किसी अन्य विषय का परिचय आने से उस सम्बन्धित तथ्य को जोड़ता है , तो उसे आकस्मिक सह – सम्बन्ध कहते हैं ।
किसी भी विषय का अन्य विषयों से सह – सम्बन्ध स्थापित करते हुए अध्याप कराने से निम्नलिखित लाभ होते हैं ।
- • एक विषय की सहायता से दूसरे विषय का अध्ययन कराने में बालक के मस्तिष्क में विविध साहचर्य ( Associations or Bonds ) स्थापित होते हैं , जो इस ज्ञान को अधिक समय तक ( स्थाई रूप से ) धारण करने में तथा आवश्यकतानुसार पुनर्म्मरण करने में सुविधा प्रदान करते हैं ।
- • विविध विषयों की समानता छात्र में ज्ञान प्राप्ति के प्रति रुचि व प्रेरणा का विकास करती है ।
- • सह – सम्बन्ध , बालकों को अर्जित ज्ञान का सामान्यीकरण प्रदान करता है , जिससे बालकों को ज्ञान का उपयोग करने में सुविधा होती है ।
- • स्वाभाविक सह – सम्बन्ध शिक्षण की कृत्रिमता को दूर करता है ।
स्कूल पाठ्यक्रम व उच्च शिक्षण में संगीत एक ऐसा विषय है , जो अन्य सभी विषयों से किसी – न – किसी रूप में सम्बन्धित है , यहाँ हम संगीत और उसका विभिन्न विषयों से अन्तर्सम्बन्ध किस प्रकार कर सकते हैं , इन तथ्यों से स्पष्ट करेंगे । वे विभिन्न विषय निम्नांकित है ।
संगीत एवं साहित्य – Music and Literature
- संगीत एवं साहित्य – साहित्य के माध्यम से हम किसी भी समय की सभ्यता , संस्कृति , आर्थिक स्थिति , धर्म , लोकरुचि एवं भाषा को जान सकते हैं । साहित्य के माध्यम से काव्य , नाटक , कहानी , गद्य , पद्य रचना , निबन्ध आदि का रसास्वादन किया जा सकता है ।
- • संगीत एवं साहित्य भी एक – दूसरे के पूरक हैं । संगीत के विविध रूप साहित्य पर निर्भर हैं , जैसे शास्त्रीय संगीत की विभिन्न शैलियों की गीत रचना , जो अलग – अलग भाषाओं में लिखी होती है , जो हमारे साहित्य पर आधारित होती है । इसी प्रकार नाटक – नृत्य नाटिका की विषय – वस्तु , लोकगीत , फिल्मी गीत , सुगम संगीत की रचनाएँ आदि भी साहित्य अर्थात् किसी – न – किसी भाषा मे लिखी जाती है ।
अतः हम कह सकते हैं कि संगीत की भाषा रूप में अभिव्यक्ति ही साहित्य है , तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
संगीत एवं चिकित्सा – Music and Therapy
- संगीत एवं चिकित्सा • संगीत एवं चिकित्सा का इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि कई चिकित्सक संगीतज्ञ भी है । इसका उदाहरण है भारत के डॉ . एल . सुब्रमण्यम जिन्होंने वियाना , न्यूयॉर्क , लन्दन आदि शहरों में चिकित्सकों के वाद्यवृन्द Doctor’s Orchestra तथा Hospital Choirs उत्तम स्तर के तैयार किए है ।
- आधुनिक वैज्ञानिकों ने शरीर के विविध कार्यकलापो पर पड़ने वाले संगीत के प्रभाव का अध्ययन कर स्पष्ट किया है कि स्वतन्त्र नाही संस्थान ( Autonomic Monus System ) के कार्य ; जैसे रक्तचाप , नाड़ी की गति , श्वसन तथा मांसपेशियों का समन्वय आदि सभी व्यक्ति की संगीत के प्रति संवेगात्मक प्रतिक्रिया करने की क्षमता अभिरुचि व अभिवृत्ति संगीत पर निर्भर करती है ।
- ● चिकित्सकों के रूप में अनेक कार्यक्षेत्रों में संगीत को सेवाएं ली है . इसका प्रयोग सामान्य वातावरण सम्बन्धी शामक के रूप में , प्रसूति वार्ड में प्रसव के पूर्व व पश्चात् नवजात शिशुओं को लोरियों तथा माँ की हृदय धड़कन की ध्वनि का अनुकरण करने के लिए तथा मानसिक रूप से विकृत रोगियों के केन्द्रों में भी किया , जिसके परिणामस्वरूप यह परिणाम प्राप्त हुआ कि संगीत के प्रयोग से सभी को स्वास्थ्य लाभ हुआ ।
- • एक अन्य प्रयोग में शिशुओं के सामने शान्त व गीतात्मक संगीत बजाया गया . जिससे शिशुओं के समायोजन करने के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम प्रदर्शित किए । अतः चिकित्सकों का मानना है कि चिकित्सा विज्ञान में रोगी का इलाज करने में संगीत बहुत सहायक है ।
संगीत एवं मनोविज्ञान – Music and Psychology
- संगीत एवं मनोविज्ञान • इन दोनों विषयों का सह – सम्बन्ध मुख्य रूप से सुनना व ध्वनि अभिव्यक्ति से है । सभी कलाओं में संगीत कला मनुष्य को आन्तरिक प्रकृति , भावनाओं एवं विचारों को अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित करती है । राग व उसमें निबद्ध रचनाएँ अद्भुत सौन्दर्यात्मक इकाइयाँ है , जो मनुष्य के संवेगों पर प्रभाव डालती है । राग एवं उसमें परिलक्षित रस का अध्ययन ही हमे मनोविज्ञान के क्षेत्र में ले जाता है ।
- • जनसामान्य व्यक्ति सांगीतिक ध्वनियों को सुनकर अपनी भावनाओं को उतार – चढ़ाव के साथ ही अभिव्यक्त करता है । अतः संगीत मानव संवेगों को इतना हिला देता है कि मनुष्य विभिन्न रंगों व रूपों में उनका सफलतापूर्वक प्रस्तुतीकरण कर सकता है ।
संगीत एवं दर्शनशास्त्र – Music and Philosophy
- • किसी भी जाति या राष्ट्र को प्रगति के मापक साधकों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन दर्शनशास्त्र है जो राष्ट्र जितना अधिक चिन्तनशील होगा , वह राष्ट्र उतना हो प्रगतिशील होगा ।
- • दर्शन का शाब्दिक अर्थ है ‘ देखने वाला ‘ या ‘ देखने से पता चलने वाला । इसी जिज्ञासा में दर्शन की उत्पत्ति मानी जाती है । इसका मूल अर्थ है साक्षात् अनुभव अर्थात् साक्षात् अनुभव व देखकर जिसके बारे में जाना जाए ।
- • उपनिषदों व अन्य ग्रन्थों में आत्मा को दर्शन का विषय माना गया है । दर्शनशास्त्र सीन मूल तत्त्वों पर आधारित है- जीव कौन है , जगत क्या है एवं इसका रचयिता कौन है ?
- ऐसे सभी प्रश्नों को जिज्ञासा के समाधान हेतु मनीषियों ने विभिन्न मार्गों का अन्वेषण किया और विभिन्न सिद्धान्त स्थापित किए । इस सिद्धान्त को ही दर्शन व उसकी विभिन्न शाखाओं के नाम से जाना जाता है ।
प्रमुखतः भारतीय दर्शन दो भागों में विभक्त है –
- आस्तिक दर्शन – जिस व्यक्ति का ईश्वर में विश्वास होता है , उसे आस्तिक कहते हैं और आस्तिक दर्शन के अन्तर्गत आते हैं ।
- नास्तिक दर्शन – जो वेदों की निंदा करते हैं , वे नास्तिक कहलाते हैं और नास्तिक दर्शन के अन्तर्गत आते हैं । चारा दर्शन , जैन दर्शन व बौद्ध दर्शन वेदों को नहीं मानते , इसलिए वे नास्तिक दर्शन के अन्तर्गत आते हैं ।
- ● भारत साधन संपन्न अध्यात्म प्रधान देश रहा है । यहाँ के मनीषियों का ध्यान स्वतः हो परवा की प्राप्ति या मोक्ष प्राप्ति का मुख्य माध्यम रहा । हमारी विभिन्न धार्मिक परम्पराओं और ज्ञान प्रन्यो ( दार्शनिक अन्यो ) जैसे – वेद उपनिषद स्मृति सूत्र योग दर्शन आदि में संगीत का पर्याप्त महत्त्व रहा है । संगीत सौकिक हो या पारलौकिक संगत सदैव भक्ति भावना से परिपूर्ण रहा है ।। •
- भारतीय परम्परा के आधारभूत ग्रन्थ वेद है , जो संगीत पर आधारित सामवेद तो पूर्णतया संगीतमय है । सामगान की परमकल्याण का सा होने के कारण मोक्ष प्राप्ति कराने वाला कहा है । वैदिक काल के में ज्ञान के अतिरिक्त योग , धर्म शक्ति आदि की भी जानकारी मिलती है ।
- • तैत्तरीय उपनिषद् में संगीत से अद्भुत इसकी विशुद्ध आनन्दमय अनुभू होती है तथा संगीत को ब्रह्मानन्द का सहोदर बताया है श्रीमदभगवतगीता को तो भारतीय दर्शन का साररूप कहा है । इसमें के सगुण – निरगुण दोनों ही रूपों का वर्णन है । इसमें श्री कृष्ण की ब प्राप्ति के लिए संगीत कला का ज्ञान महत्त्वपूर्ण है । दर्शन में शिव शक्ति के संयोग के परिणाम से ही सृष्टि की रचना बताई है । दर्शन संगीत आधारित माद और लय का भी पर्याप्त महत्त्व है । भारत नाट्यशास्त्र में भी जप तप आदि की अपेक्षा संगीत को परमार्थ प्राप्ति क सहायक कहा है । शास्त्रों में आहत और अनाहत नाद , जो संगीत हैं उसे दर्शन का तत्व बताया है ।
- अतः सांसारिक जीवों से मुक्ति पाने , परम् तत्त्व की अनुभूति करने ( अर्थात् मोक्ष प्राप्ति ) त्रिविध तपों से सतत जीवों को शान्ति प्राप्त करान जो संगीत व दर्शनशास्त्र के परस्पर सहयोग से ही प्राप्त हो सकती है इसलिए संगीत व दर्शन का भी अटूट सम्बन्ध है ।
संगीत और भौतिक विज्ञान– Music and Physics
- • संगीत और भौतिक विज्ञान दोनों विषयों में गहरा सम्बन्ध है । भौतिक विज्ञान की बहुत उपलब्धियाँ संगीत , गायन , वादन का आधार है , इसलिए दोनों विषयों का ज्ञान एक – दूसरे पर आधारित कराया जा सकता है । संगीत का आधार ध्वनि है तथा ध्वनि के वैज्ञानिक पक्ष का ज्ञान संगीत के सिद्धान्त को समझाने में सहायक होता है ; जैसे – नाद की उत्पत्ति , प्रकृति , गुण व तीव्रता , प्रतिध्वनि , ऊँचाई निचाई , लय के सामान्य सिद्धान्त व सम्पूर्ण म्यूजिकोलॉजी , भौतिकी के ध्वनि सम्बन सिद्धान्तों व नियमों पर आधारित है ।
- 36 इंच के तार पर स्वरों की स्थिति विज्ञान की ही देन है , विभिन्न प्रक के तालवाद्य , तारवाद्य सभी ध्वनि के सिद्धान्तों के आधार पर निर्मित होते हैं । संगीत सम्बन्धी किसी भी प्रदर्शन को प्रभावशाली बनाने के लिए ध्वनि सम्बन्धी सिद्धान्तों को जानना आवश्यक है ।
- किसी भी संगीत रचना में ध्वनि का उत्पादन व अभिव्यक्ति यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर की जाए , तो उसका सम्पादन या प्रस्तुतीकरण अधिक शुद्ध होता है ; जैसे – किसी संगीत सम्मेलन के हॉल में संगीत का प्रस्तुतीकरण कर्णप्रिय लगे इसके लिए हमें ध्वनि सम्बन्धी कुछ वैज्ञानिक परिस्थितियों ; जैसे अनुगूँज ( Echo ) का सिद्धान ध्यान रखना पड़ता है ।
- संगीत वाद्यों की रचना में भी ध्वनि के नियमों अनुनाद व अनुकम् ( Resonance ) के आधारभूत नियम , तार कम्पन के नियम प्रतिध्वनि इत्यादि का ज्ञान बहुत महत्त्वपूर्ण है । अतः हम कह सकते हैं कि भौतिक विज्ञान में ध्वनि नामक प्रकरण नहीं होता , तो संगीत के सैद्धान्तिक पक्ष , वाद्यों की रचना ( निर्माण ) आदि शुद्ध रूप में करने असम्भव था । इसलिए संगीत और भौतिक विज्ञान एक – दूसरे के पूर है । संगीत के बिना विज्ञान का विज्ञान के बिना संगीत का ज्ञान अधूरा क्योंकि संगीत का आधार विज्ञान है । इसलिए दोनों विषयों है 2 सह – सम्बन्ध है ।
संगीत एवं गणित– Music and Math
- • संगीत एक यथा तथ्य एवं सुनिश्चित विज्ञान है । संगीत की बहुत – सी समस्याए परोक्ष व अपरोक्ष रूप से गणित पर निर्भर हैं । सप्तक के 12 स्वर से 72 घाटों की रचना , थाटों से 484 रागों की रचना , विभिन्न तालों व लयों की लिपिबद्ध रूप में लेखन , श्रुति अन्तराल का अध्ययन स्वर – संवाद आदि गणित पर ही आधारित है ।
- वाद्यों की निर्माण रचना , स्वर लिपि लेखन , लयात्मक नृत्य संचालन सभी गणित के हिसाब पर ही आधारित है । रागों व तालो की संरचना को भी हम गणित के ज्ञान आधार पर ही समझ सकते हैं । लय और ताल आधारित विभिन्न तिहाइयों परनों आदि का निर्माण भी गणित के आधार पर सम्भव है ।
- • आचार्य बृहस्पति जी ने अपनी पुस्तक में तीनताल में 32 तिहाइयों को गणितीय आधार पर लिपिबद्ध किया है ।
- • श्री भगवतशरण जी ने सितार में विविध तिहाइयों का वर्गीकरण गणित ज्ञान के आधार पर अपनी पुस्तक में किया है ।
- छोटी कक्षाओं जैसे – नर्सरी , किण्डरगार्टन आदि में भी बालकों को गणित के सामान्य सिद्धान्त , पहाड़े , गिनती आदि संगीत के द्वारा सरलता से सिखाई जाती है । अतः गणित के बिना सही विशुद्ध संगीत का ज्ञान पाना असम्भव है ।
संगीत एवं शारीरिक शिक्षा– Music and Physical Education
संगीत का सम्बन्ध शारीरिक शिक्षा जैसे विषयों से भी है । संगीत का एक मुख्य उद्देश्य बालकों का शारीरिक विकास करना भी है । भावगीत , पी.टी , लेजियम , लोकनृत्य , माचिंग धुन , लय प्रशिक्षा के लिए कराई जाने वाली शारीरिक क्रियाएँ सभी संगीतमयी लययुक्त होती हैं , जिससे बालकों में मांसपेशीय समन्वय एवं नियन्त्रण होता है । वादन व नृत्य किया से भी शारीरिक व्यायाम होता है तथा हड्डियों में लचीलापन रहता है । इस प्रकार संगीत एवं शारीरिक शिक्षा विषय भी एक – दूसरे से सह – सम्बंधित है ।
संगीत एवं अर्थशास्त्र – Music and Economics
- • संगीत और अर्थशास्त्र का भी सह – सम्बन्ध है । संगीत के माध्यम से अर्थशास्त्र का और अर्थशास्त्र के माध्यम से संगीत का अध्ययन एवं ज्ञान भली प्रकार अर्जित किया जा सकता है । संगीत ज्ञान का अर्जुन करके , उसे जीविकोपार्जन का माध्यम बनाकर धन प्राप्त किया जा सकता है , जोकि जीवन जीने के लिए अति आवश्यक है ।
- धन के माध्यम से मानव अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है । साथ ही स्वयं में उन सभी योग्यताओं एवं क्षमताओं को विकसित करता है , जो उसकी जीविका का आधार है । अत : संगीत और अर्थशास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध है , जो पूर्ण रूप से एक – दूसरे के पूरक है जैसे किसी अच्छे गुरु से या संस्थान में संगीत ज्ञान पाना बहुत अधिक धन के बिना असम्भव है तथा एक संगीत शिक्षक , प्राध्यापक तथा कुशल कलाकार बनकर हम मच प्रदर्शन कर अच्छा धन अर्जित कर सकते हैं । उसके लिए संगीत कला में निपुणता प्राप्त हो यह आवश्यक है ।
संगीत एवं सामाजिक विज्ञान – Music and Social Science
- संगीत के साथ सामाजिक विज्ञान विषय का अटूट सम्बन्ध है । सामाजिक विज्ञान में भूगोल , इतिहास एवं समाज की संस्कृति का अध्ययन करते हैं । इन तीनों के माध्यम से किसी देश – प्रदेश के संगीत का अध्ययन करते है , क्योंकि संगीत चाहे शास्त्रीय सुगम व लोक का ही क्यों न हो वह प्रदेश विशेष के भौगोलिक , ऐतिहासिक वातावरण से , समाज व संस्कृति से प्रभावित होता है । इसलिए संगीत और सामाजिक विज्ञान विषय में सह – सम्बन्ध है ; जैसे- भौगोलिक दृष्टि से देखें तो किसी भी स्थान के संगीत का रूप वहाँ के लोकगीत , लोकनृत्यों , लोकवाद्यों , विभिन्न स्थानों की वेशभूषा , रीति – रिवाज , परम्परा , कृषि , जलवायु व मौसम से प्रभावित होता है ।
- • प्रायः देखा गया है कि गायक की आवाज वहाँ जलवायु सम्बन्ध से बहुत प्रभावित होती है ; जैसे – गर्म देशों मेरी व गहरी तथा ठण्डे देशों में नाक से निकलने वाली ( Nasal ) आवाज सुनने को मिलती है । जलवायु ध्वनि के उतार – चढ़ाव को भी प्रभावित करती है ।
- • गीतों की भाषा , शब्दों के उच्चारण का तरीका , आवाज की कोमलता , कम्पन , धीमापन , खुलापन आदि भी जलवायु से प्रभावित होता है । इसके अतिरिक्त वाद्यों को बनाने के प्रयोग में आने वाले उपकरण व सामग्री , उसकी रचना देश की भौगोलिक स्थिति व वनस्पति पर निर्भर करती है ; जैसे – यूरोप में वायलिन बनाने के लिए ‘ मैपल व पाइन ‘ की लब प्रयोग करते हैं , क्योंकि वहाँ पर ये लकड़ी बहुतायत में पाई जाती है । भारत में बाँसुरी बॉस से बनाते हैं , जबकि यूरोप में बांसुरी को ‘ कावुड ‘ से बनाते हैं । अतः भूगोल व संगीत एक – दूसरे से सम्बन्धित है ।
- • ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो इतिहास व संगीत भी एक – दूसरे के पूरक है । हमारा इतिहास संगीत से अछूता नहीं है । जिस राष्ट्र का इतिहास लड़ाई और बुद्ध की बातों व परम्परा से भरा है , वहाँ का संगीत भी वीरतापूर्ण ही होता है । इसके साथ ही समाज की संस्कृति व परम्पराएँ भी संगीत के माध्यम से सुरक्षित व हस्तान्तरित होती रही है , जैसे किसी भी प्रदेश का लोकसंगीत वहाँ की जाति , धर्म , समाज के आचार – विचारों को विशेष रूप से संजोकर रखता है , जो पीढ़ी – दर – पीढ़ी संस्कृति के रूप में हस्तान्तरित होती रही है । विभिन्न लोक कलाएँ भी , जो हमारे सामाजिक जीवन से जुड़ी है , वो भी संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त की जाती है ; जैसे – लोकगीत , लोकवाद्य वादन , लोकनृत्यों की प्रस्तुति के नाट्यों की प्रस्तुति आदि । अतः सामाजिक विज्ञान और संगीत विषय दोनों ही स्वयं में स्वतन्त्र होते हुए भी एक – दूसरे के पूरक हैं अर्थात् परस्पर सम्बन्धित है ।
संगीत एवं धर्म – Music and Religion
- • संगीत और धर्म का भी गहरा सम्बन्ध है । हमारा संगीत केवल मनोरंजन का साधन मात्र ही नहीं है वरन् किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या कार्य को पूर्ण करने के लिए भी संगीत का प्रयोग ही किया जाता है । संगीत हमें मानसिक शान्ति तथा आत्मिक स्वास्थ्य भी प्रदान करता है , इसलिए संगीत अनादि काल से सभी धर्मों से गहरे भाव से जुड़ा है ।
- • प्रत्येक धर्म और अध्यात्म में भक्ति , संगीत किसी न किसी रूप में शामिल होता . है ; जैसे – भजन , कीर्तन , शब्द वाणी , आरती , गीत आदि । किसी भी धर्म का कोई भी धार्मिक कार्य या अनुष्ठान हो , संगीत के बिना अधूरा है । जैसे मन्दिरों में प्रातःकाल जो आरती होती है , वो भी स्वर , लय व ताल में निबद्ध होती है । आरती के समय कई ताल वाद्यों आदि का प्रयोग किया जाता है ।
- मुस्लिम धर्म में अजान के समय ‘ अल्लाहहो अकबर ‘ कहा जाता है , वो भी स्व लय के आधार पर हो लगाई जाती है ।
- गुरुद्वारों में होने वाला शब्द वाणी , कीर्तन आदि भी संगीत पर ही आधारि होते हैं ।
- • गिरजाघरों में यीशू मसीह के सामने होने वाले कोरस ( समूह ) गीत भी स्वर , लय निबद्ध होते हैं । संगीत के माध्यम से ही अपने धर्म के देवी – देवताओं जो लोग भजन एवं गीत गाते हैं , वह भी पूर्णतया संगीत पर को पूजते आधारित होते हैं ।
- • इस सन्दर्भ में एक विशेष बात यह है कि यूनान की परम्परा में देवी ‘ म्यूज ‘ की अवधारणा , भारत की सरस्वती देवी से बिल्कुल मिलती – जुलती है । उन्हें ‘ द इन्सपायरिंग गॉडेज ऑफ साँग्स ‘ अर्थात् गायन की प्रेरक देवी कहा गया है । देवी सरस्वती को भारतीय संस्कृति में साहित्य , संगीत कला की देवी माना जाता है । उनके हाथ में वीणा व पुस्तक है , इसलिए उन्हें वीणा पुस्तक धारणी , शारदा आदि नामों से भी जाना जाता है ।।
- • प्रत्येक विद्यालय अथवा शिक्षा के सभी स्तर पर किसी भी प्रकार के आयोजन में सर्वप्रथम संगीत की देवी सरस्वती की प्रार्थना ही की जाती है , जो स्वर , लय व तालों पर आधारित होती है । इसके वन्दन से वातावरण शान्त व संगीतमय बन जाता है ।
- इसी म्यूज शब्द से म्यूजिक व अन्य साम्य शब्दों की उत्पत्ति हुई है ; जैसे- यूनानी भाषा में संगीत को मौसिका , लैटिन में मुसिका , फ्रांसीसी में मुसीक , पातुगी में मुसिका , जर्मन में मूजिक , अंग्रेजी में म्यूजिक , इब्रानी , अरबी और फारसी में मौसिकी कहते हैं । अतः अलग – अलग धर्मों में अलग – अलग देशों में धार्मिक सिद्धान्तों व नियम को मानने के तरीके भिन्न हैं , परन्तु आधार एक ही है ‘ संगीत ‘ । अतः धर्म और संगीत का सम्बन्ध अटूट है ।
संगीत एवं संस्कृति – Music and Culture
- संगीत का संस्कृति सम्बन्ध विषयों से अनादि काल से ही घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । का उद्गम एवं विकास क्रम में देखा गया है । संगीत अपने विकास के लिए साधन या सामग्री जनजीवन प्राप्त करता है । अतः संगीत उतना ही प्राचीन जितनी मानव जाति । संगीत के सभी रूप शास्त्रीय हो या सुगम व लोक सभी सभ्यता व संस्कृति के साथ विकसित होते रहे हैं । इसलिए संगीत के इतिहास को संस्कृति के विकास से अलग – अलग नहीं कर सकते हैं ।
- वैदिक युग भारतीय सांस्कृतिक इतिहास का प्राचीनतम युग है , जहाँ सांस्कृतिक उपलब्धि भारत को मिली । वैदिक संस्कृति में आर्यों के समय यज्ञों में , ऋचाओं में , मन्त्रों के उच्चारणों , गाना सभी संगीत के माध्यम से किया जाता था ।
- मुस्लिम संस्कृति के समय भी राजाओं द्वारा कला व कलाकार को संरक्षण दिया गया । नई – नई गायन शैलियों का जन्म व विकास हुआ , वाद्यों की रचना हुई आदि ।
- आधुनिक काल में , 19 वीं व 20 वीं शताब्दी में राष्ट्रीय सरकार ने संगीत का चहुंमुखी विकास किया । अतः संगीत को संस्कृति से पृथक् करना या समझना एक भ्रान्ति है ।
संगीत का अन्य विषयों / कलाओं से सह – सम्बन्ध
- संगीत का सम्बन्ध ललित कला जैसे विषयों से तो है ही । संगीत का अन्य सभी कलाओं ; जैसे – चित्रकला , मूर्तिकला स्थापत्य कला और काव्य कला , सभी से घनिष्ठ सम्बन्ध हैं । ये सभी कलाएँ मानव के भावपक्ष का विकास करती हैं ।
- अतः मानव अपने भावों को अभिव्यक्त करने के लिए कलाओं का प्रयोग करता है , जिन्हें ललित कलाओं के नाम से जाना जाता है । इन कलाओं में भावों की अभिव्यक्ति पृथक् – पृथक् माध्यमों में की जाती है , जैसे काव्य या साहित्य की शब्द में , चित्रकला की रेखा व रंगों से , मूर्तिकला , स्थापत्य या वास्तु कला मिट्टी की पत्थर , चूना आदि में , परन्तु सभी में संगीत का लय तत्त्व निहित होता है ।
- एक लय और सौन्दर्यानुभूति से ही कला के सभी भावों की अभिव्यक्ति की जाती है । अत : संगीत का अन्य विषयों से अटूट सम्बन्ध है या सभी विषयों में कहीं न कहीं किसी – न – किसी रूप में संगीत निहित है अतः संगीत के बिना जीवन अधूरा है ।
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