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मार्गी संगीत और देशी संगीत की विशेषतायें व अन्तर, Margi and Deshi

मार्गी संगीत और देशी संगीत

मार्गी संगीत और देशी Sangeet – मार्गी संगीत को गांधर्व संगीत भी कहते हैं । इस संगीत को मोक्ष प्राप्त करने का साधन माना जाता था । देशी संगीत को हम गान भी कहते हैं । इस संगीत का मुख्य उद्देश्य जनता का मनोरंजन करना है ।

मार्गी संगीत क्या है ? देशी संगीत क्या है ?

देशी संगीत क्या है ?

देशी संगीत को हम गान भी कहते हैं । आज का संगीत जो जन साधारण में प्रचलित है तथा जिसका मूल मनोरंजन करना है वैसे संगीत को हम देशी संगीत कहते हैं । इसमें प्रयुक्त नियम जटिल नहीं बल्कि सरल होते हैं ।

मार्गी संगीत क्या है ?

मार्गी संगीत को हम गांधर्व संगीत भी कहते हैं । माना जाता है भूतकाल में एक ऐसा संगीत था जिसके प्रयोग से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती थी । ऐसे संगीत को हम मार्गी संगीत के नाम से जानते हैं ।

चलिए विस्तार से जानते हैं कि Margi Sangeet किसे कहते हैं ? Deshi Sangeet क्या है ?

मार्गी संगीत अथवा गांधर्व संगीत किसे कहते हैं ?

मार्गी संगीत अथवा गांधर्व संगीत – प्राचीन काल में जिस संगीत को मोक्ष प्राप्त करने का साधन माना जाता था , उसे मार्गी अथवा गांधर्व संगीत कहते थे । कहते हैं कि सर्वप्रथम ब्रह्मा ने भरत को और फिर भरत ने गांधर्वो को मार्गी संगीत की शिक्षा दी ।

गांधर्व लोग मार्गी संगीत में प्रवीण होते थे , शायद इसीलिये इसे गांधर्व संगीत भी कहा जाने लगा । आधुनिक काल में न तो मार्गी संगीत का स्वरूप मिलता है और न तो गांधर्व लोग ही मिलते हैं । ऐसा लगता है कि गांधर्व लोगों के साथ मार्गी संगीत भी लुप्त हो गया ।

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मार्गी संगीत की विशेषतायें

देशी संगीत / गान

देशी संगीत अथवा गान – आजकल जिस संगीत का प्रचार है अथवा जिस संगीत को हम लोग प्रयोग करते हैं , देशी संगीत या गान कहलाता है ।

हमारे पूर्वजों ने यह अनुभव किया कि संगीत में मोक्ष प्राप्त करने की आध्यात्मिक गुण के साथ ऐसा भी गुण है जिससे लोगों का मनोरंजन हो सकता है । संगीत में मनोरंजन शक्ति होने के कारण जनता में देशी संगीत प्रचलित हुआ ।

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इस संगीत का मुख्य उद्देश्य जनता का मनोरंजन करना है । अतः इसके नियम बहुत कठोर नहीं बनाये गये । लोक – रुचि में परिवर्तन के फलस्वरूप देशी संगीत में भी परिवर्तन होने लगा । आज का शास्त्रीय संगीत अनेक परिवर्तनों का परिणाम है ।

कुछ समय पूर्व प्रबन्ध गायन का प्रचार था । प्रबन्ध के बाद ध्रुपद का जन्म हुआ और ध्रुपद के बाद ख्याल और ठुमरी का जन्म हुआ । इस प्रकार देशी संगीत का विकास होता रहा और उसका स्वरूप समय – समय पर बदलता रहा । यहाँ तक कि केवल हिन्दुस्तान में शास्त्रीय संगीत की दो पद्धतियाँ हो गईं , हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति और कर्नाटक अथवा दक्षिणी संगीत पद्धति

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शास्त्रीय संगीत के अलावा लोक संगीत तो एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में भिन्न दिखाई पड़ता है । इतना ही नहीं , एक प्रदेश में भी लोक संगीत के विविध रूप दिखाई पड़ते हैं । इसका कारण , यहाँ की रीति – रिवाज़ , भौगोलिक स्थिति और लोक – रुचि में भिन्नता है ।

मार्गी संगीत और देशी संगीत में अन्तर

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