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स्वतन्त्रता पश्चात् भारतीय संगीत का पश्चिमी देशों में प्रसार – Indian music

स्वतन्त्रता पश्चात् भारतीय संगीत

स्वातन्त्र्योत्तर काल ( स्वतन्त्रता पश्चात् ) में भारतीय संगीत

स्वतन्त्रता पश्चात् भारतीय संगीत – भारत में वर्ष 1947 में स्वतन्त्रता के बाद जब से अपनी राष्ट्रीय सरकार स्थापित हुई तब से देश में संगीत का प्रचार तीव्र गति से बढ़ रहा है । स्कूल और संगीत कॉलेजों के पाठ्यक्रम में संगीत विषय सम्मिलित किए जा रहे हैं । कुछ संगीत विद्यालयों को एम . ए . परीक्षा में भी संगीत विषय के रूप में समाहित कर दिया । गया है । संगीत विषय में पी . एच . डी . की उपाधियाँ भी मिलने लगी है ।

आकाशवाणी व दूरदर्शन पर भी संगीत के प्रचार – प्रसार हेतु अनेक संगीत के कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है । संगीत की अनेक शिक्षण संस्थाएं . विभिन्न नगरों में सुचारू रूप से चल रही है ।

देश का शिक्षित वर्ग संगीत की ओर विशेष रूप से आकृष्ट होकर इस कला के महत्व को समझने लगा है । कुलीन घराने के लोग भी संगीत शिक्षा ग्रहण करने लगे हैं , जिससे जनसाधारण में संगीत के प्रति आशातीत अभिरुचि देखने को मिलती है । विदेशों में जाकर भी भारतीय कलाकार भारतीय संगीत का विश्वव्यापी प्रचार कर रहे हैं । साथ ही संगीत सम्बन्धी पुस्तकों का भी प्रकाशन किया जा रहा हैं , जिससे जन सामान्य भी संगीत के सैद्धान्तिक पक्ष को जान सके ।

भारत में विभिन्न संगीत आयोजक संस्थाएँ भी हैं , जो विभिन्न स्थानों पर संगीत के बड़े – बड़े आयोजन कर हिन्दुस्तानी संगीत का प्रचार – प्रसार कर रही हैं । संगीत प्रचार की ये सभी संस्थाएँ संगीत की सभी विधाओं गायन , वादन , नृत्य चाहे वो शास्त्रीय हो , सुगम हो या लोकसंगीत हो , सभी से सम्बन्धित हैं ।

पुरस्कार / सम्मान

भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय द्वारा संगीत एवं ललित कलाओं के विकास हेतु नई दिल्ली में केन्द्रीय सरकार ने ‘ संगीत नाटक अकादमी ‘ की स्थापना वर्ष 1953 में की । इस संस्था का प्रमुख कार्य भारत के राज्यों के साथ केन्द्र द्वारा 158 संगीत नृत्य एवं नाट्य का प्रचार करना । अकादमी का उद्देश्य कलाकारों को प्रोत्साहित करना एवं कला का विकास करना है । संगीत का राष्ट्रीय संस्थान ‘ संगीत नाटक अकादमी ‘ द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत नृत्य एवं नाट्य के क्षेत्र में प्रतिवर्ष कलाकारों को उनकी सेवा के लिए नई दिल्ली में प्रतिवर्ष अकादमी सम्मान से सम्मानित किया जाता है ।

अकादमी सम्मान के अतिरिक्त भी भारत सरकार संगीत कला को प्रोत्साहन देने तथा संगीत तथा ललित कलाओं की उन्नति के लिए आयोजनबद्ध तरीके से कार्यक्रमों का आयोजन कर कला , संस्कृति व संगीत के क्षेत्र में कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को उनकी सेवाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाने लगा । वर्ष 1952 से भारत सरकार द्वारा संगीत कला के प्रोत्साहन हेतु राष्ट्रीय पदक गणतन्त्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा कलाकारों को प्रदान किया जाने लगा है ।

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इन राष्ट्रीय पुरस्कारों में प्रमुख सम्मान हैं – भारत रत्न , पद्म पुरस्कार , पद्मश्री , पद्मभूषण , पद्मविभूषण , अकादमी अवार्ड , कालिदास सम्मान , तानसेन सम्मान आदि ।

आधुनिक तकनीकी विकास एवं इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के बढ़ते हुए प्रभाव से भी संगीत जनसाधारण में प्रचलित हुआ है आज समाज का कोई भी वर्ग ऐसा नहीं है , जो संगीत से अछूता हो , आज जनमानस का सम्पूर्ण वर्ग संगीत के प्रवाह में प्रवाह्यमान है ।

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संगीत का सम्बन्ध विषयों से( अन्य विषय ) Different Subjects and Music

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भारतीय संगीत का पश्चिमी देशों में प्रसार

भारतीय संगीत का पश्चिमी देशों में प्रसार में भारतीय संगीत ने स्वतन्त्रता के पश्चात् एक नए युग में प्रवेश किया और वर्ष 1960 के दशक में इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ । यह वह समय था जब भारतीय शास्त्रीय संगीत ने एक निश्चित पद या शब्द ग्रहण किया । संगीतकारों के लिए विश्व एक महत्त्वपूर्ण व नजदीक स्थान बन गया , जिससे भारतीय संगीतकारों ने पश्चिमी देशों में अपने लिए पहचान बनाना प्रारम्भ कर दिया । इस प्रवृत्ति की शुरुआत प्रसिद्ध सितारवादक पण्डित रविशंकर ने की थी , जो यूएसए ( संयुक्त राज्य अमेरिका ) में लोकप्रिय हो रहे थे ।

उनकी प्रसिद्धि का क्षण प्रसिद्ध संगीत बैण्ड ‘ द बीटल्स ‘ के साथ उनके सहयोग के रूप में आया । पण्डित रविशंकर ने ‘ बीटल्स एलबम ‘ के लिए सितार बजाया जिसे काफी ख्याति मिली । इसके पश्चात् वे संयुक्त राज्य अमेरिका में ही स्थानान्तरित हो गए । इस प्रकार भारतीय संगीत में एक नए अध्याय का शुभारम्भ हुआ , जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी देश के छात्रों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया ।

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पण्डित रविशंकर के अतिरिक्त एक और महान् संगीतकार सरोद वादक अली अकबर खान ने भी यूएस ( US ) में लोकप्रियता प्राप्त की और बाद में वहीं बस गए । इसके अतिरिक्त एक और कलाकार जिसने पश्चिमी दुनिया में भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में योगदान दिया , वह थे प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे । वह विश्वव्यापी मान्यता प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय निर्देशक थे । उनकी सार्थक कला सिनेमा में एक संस्था थी । अपने श्रेय के लिए उन्होंने रविशंकर और विलायत खान के साथ सहयोग किया , जिन्होंने अपनी कुछ फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया । विलायत खान भारत के अब तक के सबसे महान् सितारवादकों में से एक हैं ।

इस प्रकार पण्डित रविशंकर ने भारतीय संगीत को एक नया आयाम दिया तथा पश्चिमी देशों में भी प्रसिद्धि दिलाई । सही अर्थों में रविशंकर एक पथ – प्रदर्शक थे । उन्होंने अन्य भारतीय संगीतकारों को भी प्रस्तुत किया । उदाहरण के रूप में प्रसिद्ध वायलिन वादक एल शंकर और सुब्रह्मण्यम को भी पश्चिमी संगीतकारों के साथ काम करने और उत्कृष्ट कृतियों का निर्माण करने का श्रेय दिया जाता है । इन प्रख्यात संगीतकारों से भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नई पहचान मिली ।

हाल के दिनों में , भारतीय – पश्चिमी संगीत सहयोग एक आम दृश्य बन गया है । आशा भोंसले जैसे पार्श्व गायको / गायिकाओं ने यूएसए के विभिन्न रॉक बैण्ड के साथ काम किया । जिससे भारतीय संगीत एवं शैली का प्रसार विदेशों में हुआ है । इसी के साथ भारतीय संगीत के अध्ययन एवं अनुसन्धान के लिए अमेरिका के टेक्सास , मिनिसोटा , न्यूजर्सी , वाशिंगटन एवं कैलिफोर्निया आदि शहरों में भारतीय संगीत विद्यालय है । भारतीय संगीत की पाश्चात्य संगीत के साथ जुगलबन्दी भी इतनी अधिक प्रचलित हुई है कि अब अनेक स्थानों पर पश्चिमी आर्केस्ट्रा का संचालन भारतीय संगीत वाद्यों से हो रहा है ।

विदेशी संगीतकार और भारतीय शास्त्रीय संगीत

यहाँ विदेशी संगीतकार शास्त्रीय गायन का अध्ययन कर रहे हैं तथा चिकित्सक इसके प्रभाव के प्रयोग परीक्षण में लगे हुए हैं , जिसका परिणाम अत्यन्त उत्साहवर्द्धक एवं आश्चर्यजनक है । अमेरिका के ‘ हैटकास्त थियेटर ‘ एवं ‘ सिंफनी आर्केस्ट्रा ‘ में हिन्दुस्तानी संगीत पर नए अनुसन्धान किए जा रहे हैं ।

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हालैण्ड की राजधानी एम्स्टर्ड ने बाँसुरी एवं अन्य भारतीय वाद्यों को सीखने के लिए एक प्रतिष्ठित संगीत केन्द्र को स्थापना की है । विदेशों में हिन्दुस्तानी संगीत के साथ – साथ कर्नाटक संगीत भी लोकप्रिय हो रहा है । इस प्रकार विदेशी भूमि पर भारतीय संगीत की लोकप्रियता उसकी वैश्विक पहचान के प्रति प्रगतिशील कदम अतः कहा जा सकता है कि

भारतीय संगीत में वह सामर्थ्य एवं क्षमता जिससे वह सम्पूर्ण विश्व के हृदय में अपनी सरगम एवं भावों को प्रसारित कर सके तथा इसका प्रत्यक्ष प्रभाव वर्तमान में दृष्टिगोचर है ।

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स्वतन्त्रता पश्चात् भारतीय संगीत

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