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सौन्दर्यशास्त्र क्या है ? What is Aesthetics in Music ?

सौन्दर्यशास्त्र

सौन्दर्यशास्त्र की परिभाषा

सौन्दर्य का अर्थ है – इन्द्रिय सुख की चेतना । सौन्दर्यशास्त्र मानव की कला , चेतना और तत्सम्बन्धी आनन्दानुभूति का विवेचन व विश्लेषण प्रस्तुत करता है । मनुष्य जीवन के अस्तित्व में आने के साथ मनुष्य अन्दर स्वत : ही कलात्मक अभिरुचियाँ प्रकट हुईं , जिसे वह कलाकृतियों और मूर्तियों आदि के माध्यम से प्रकट करता रहा । अत : इन कृत्यों द्वारा जो आनन्दानुभूति प्राप्त होती है इसका व्यवस्थित ढंग से चिन्तन अध्ययन ही सौन्दर्यशास्त्र का विषय है । 18 वीं शताब्दी में एलेक्जेण्डर वामगार्टन ने सर्वप्रथम ‘ एस्थेटिक्स ‘ शब्द का प्रयोग किया था । एस्थेटिक्स ग्रीक भाषा का शब्द है , जिसे हिन्दी में ‘ सौन्दर्यशास्त्र ‘ कहा जाता है ।

प्रारम्भ में सौन्दर्यशास्त्र का प्रयोग दर्शनशास्त्र की एक शाखा के रूप में होता था , किन्तु धीरे – धीरे सौन्दर्यशास्त्र को ललित कलाओं के सन्दर्भ में रखकर इसका अध्ययन किया जाने लगा । हीगल ने अपने ग्रन्थ ‘ The Philosophy of Fine Arts ‘ में कहा है कि यह एक ऐसा विषय है जिसके अन्तर्गत सौन्दर्य का सम्पूर्ण क्षेत्र आता है । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि ललित कला , कला का ही एक क्षेत्र है ।

भारतीय दार्शनिकों के अनुसार सौन्दर्यशास्त्र

भारत में सौन्दर्य तत्त्व की व्याख्या में प्राचीन परम्परा समृद्ध रही है । प्राचीन ग्रन्थों में सौन्दर्य का चारुत्व , रमणीयता , शोभा , कान्ति , चमत्कार , वैचित्र्य आदि नामों से जाना जाता था । उपनिषदों में सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ‘ ( भारतीय संस्कृति का मूल आदर्श ) की अभिव्यक्ति सौन्दर्य के लिए की गई है । यद्यपि सौन्दर्य का अर्थ पाश्चात्य एस्थेटिक्स के निकट है तथापि पूर्णत : उसके समान अर्थ भारतीय दर्शन में नहीं मिलता ।

सौन्दर्यशास्त्र को लालित्य शास्त्र या एस्थेटिक्स के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया गया है । यदि कोई वस्तु या कला हमें भौतिक या मानसिक रूप से इन्द्रिय सुख का अनुभव कराती है तो यह सौन्दर्य की वस्तु है या कला है । इस प्रकार किसी कला के दर्शन या श्रवण से हमें आनन्द मिलता है , तो यह सुख का अनुभव ही सौन्दर्यानुभूति है । भारतीय शास्त्रज्ञों के अनुसार सौन्दर्य के तीन पक्ष हैं – कलाकार , कलाकृति एवं कला रसिक हैं । कलाकार व कला रसिक के सौन्दर्य बोध का स्तर एक होना आवश्यक है ।

सौन्दर्य के प्रकार

सौन्दर्य के कितने प्रकार हैं?

भारतीय विद्वानों के अनुसार सौन्दर्य के दो प्रकार हैं ;-

बाह्य सौन्दर्य – ऐसे सौन्दर्य जिससे हमारी इन्द्रियों को सुख की अनुभूति होती है या सुख मिलता है , उसे बाह्य सौन्दर्य कहा जाता है।

आन्तरिक सौन्दर्य – ऐसे सौन्दर्य जिसका अनुभव अन्तर आत्मा से होता है , उसे आन्तरिक सौन्दर्य कहा जाता है।

अब भारतीय विचारकों के अनुसार व्यक्त किए गए विचार निम्न प्रकार से हैं –

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इस उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि सौन्दर्यशास्त्र कला का सैद्धान्तिक रूप से विवेचन करता है तथा कला से सम्बन्धित मानव व्यवहार का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करता है । वस्तुतः सौन्दर्यशास्त्र के सिद्धान्तों में मतानुसार होने पर भी स्पष्ट है कि सौन्दर्यानुभूति से आनन्द मिलता है । इस प्रकार भारतीय मतों से स्पष्ट है कि सौन्दर्यशास्त्र में हम कला द्वारा अभिव्यक्त आनन्द ( इन्द्रिय व आत्मिक ) का अध्ययन करते है ।

पाश्चात्य दार्शनिकों के अनुसार सौन्दर्यशास्त्र

पश्चिम में सौन्दर्यशास्त्र का चिन्तन वामगार्टन से माना जाता है । इससे पूर्व यह पश्चिम दर्शन के अन्तर्गत ही एक शास्त्र के रूप में कला सम्बन्धी मूल्यांकन में सहायक रहा । 18 वीं शताब्दी में एलेक्जेण्डर वामगार्टन ( 1714-1762 ) ने सर्वप्रथम ‘ एस्थेटिक्स ‘ शब्द का प्रयोग किया तथा कालान्तर में उसने एस्थेटिक्स के स्थान पर ‘ साइन्स ऑफ ब्यूटी ‘ का प्रयोग किया ।

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सौन्दर्य शब्द का अंग्रेजी शब्द में पर्याय ‘ ब्यूटी ‘ है । ‘ ब्यूटी ‘ का अर्थ रसिक का भाव है । रसिकता शृंगारिक पुरुष का गुण है । संसार के सौन्दर्य के विभिन्न रूपों में अलग दृष्टिकोण है और किसी भी वस्तु के सौन्दर्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति का अपना निजी दृष्टिकोण होता है और कुछ का सौन्दर्य के प्रति आदर्शवादी दृष्टिकोण है ।

वामगार्टन के पश्चात् पाश्चात्य विचारकों ने ‘ सुन्दर ‘ के अनुभव को सौन्दर्यानुभूति के रूप में ग्रहण किया । काण्ट ने इसे ज्ञान – विज्ञान से अलग कला माना तथा सौन्दर्य को अन्य शास्त्रों से जोड़ के विभिन्न ललित कलाओं के परिप्रेक्ष्य में चिन्तन का विषय माना । सौन्दर्य चेतना विषय है इसलिए सौन्दर्य चेतना का अर्थ है तथा सौन्दर्य बोध मनुष्य की भावात्मक अवस्था है । सौन्दर्य बोध का आधार होने से इसे सौन्दर्य दर्शन भी कहा जाता है और सौन्दर्यशास्त्र के अन्तर्गत रखकर अध्ययन किया जाता है ।

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सौन्दर्य के सम्बन्ध में पश्चिम के विचारकों ने अनेक व्याख्याएँ की हैं । जिनमें प्लेटो और सेण्ट ऑगस्टाइन को प्राचीन और मध्य युगीन सौन्दर्य के चिन्तन का प्रतिनिधि माना जाता है , तो वहीं राम , काण्ट , हीगेल , शोपेनहार , क्रोचे आदि को आधुनिक कला व सौन्दर्य का प्रमुख विवेचक माना जाता है । 18 वीं शताब्दी में वामगार्टन , विश और काण्ट ने व्यवस्थित रूप से सौन्दर्य का शास्त्रीय अध्ययन किया ।

अब पाश्चात्य विचारों द्वारा सौन्दर्य के सम्बन्ध में व्यक्त किए गए विचार निम्न प्रकार से है •-

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दार्शनिक सौन्दर्य

सौन्दर्यशास्त्र दर्शन की एक शाखा है । हिन्दी कोष के अनुसार दर्शन वह शाखा है जिसमें आत्मा , जीव मोक्ष धर्म है । सौन्दर्यशास्त्र और दर्शनशास्त्र में साम्य यह है कि सौन्दर्यशास्त्र जिन ललित कलाओं का अध्ययन करता है उनका लक्ष्य ही परम सुन्दर ईश्वर को स्थापित करना है । योग दर्शन में जिस प्रकार एकाग्रता की आवश्यकता होती है , ललित कलाएँ भी एकाग्रता की आदि होती हैं । ललित कलाएँ एकाग्र चिन्तन और बाहा आदि से सम्बन्ध रखती हैं । इसी स्थान पर दर्शनशास्त्र और सौन्दर्यशास्त्र का साम्य हो जाता है , किन्तु सौन्दर्यशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र इसके अतिरिक्त विविध कलाओं के समाज सौन्दर्य तत्त्व , कलाकार और उसके गुण , कला , सृजन व उसका अन्य तत्त्व को ग्रहण करता है , दर्शनशास्त्र इन्हें ग्रहण नहीं करता और यही इन दोनों के बीच भिन्नता है ।

भारतीय सौन्दर्य दर्शन प्रधान है व आध्यात्मिक भी है । सामान्य दृष्टिकोण से कला जहाँ एक ओर प्रकृति की अनुकृति है, तो दूसरी ओर कलाकार की आत्मा की अभिव्यक्ति के रूप में होती है , उसी प्रकार चित्र तत्त्व की अभिव्यक्ति कला रूप में होती है । भारतीय सौन्दर्य दर्शन पाश्चात्य सौन्दर्य दर्शन की अपेक्षा अधिक अन्तर्मुखी व आध्यात्मिकता की ओर से उन्मुख है । यहाँ उत्तम वस्तु के सौन्दर्य में ईश्वरीय प्रेरणा व तेज निहित होने का भाव ही स्वीकार्य है और इस सौन्दर्य की साधना वस्तु या कला के माध्यम से होती है ।

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भारत में कला का रूप सत्यम् है । कला का लक्षण शिवम् है तथा अनुभूति सुन्दरम् है । अतः भारतीय सौन्दर्य दर्शन सर्वोत्कृष्ट है ।

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