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राग जनसम्मोहिनी का परिचय raag Janasammohini ka Parichay

राग जनसम्मोहिनी

राग जनसम्मोहिनी संक्षिप्त परिचय

राग जनसम्मोहिनी Parichay in Hindi – इस राग को खमाज थाट में शामिल किया गया है । कोमल निषाद के अतिरिक्त शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है । आरोह – अवरोह दोनों में मध्यम वर्ज्य होने से इसकी जाति षाडव – षाडव है । गायन – समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है । गंधार स्वर को वादी और धैवत स्वर की सम्वादी का स्थान प्राप्त है । आरोह- सा रे ग , प , ध नि ध सां । अवरोह – सां नि ध प , ग , रे , सा । पकड़- ग प ध नि ध ऽ प , ग प गरे , नि ध सा ।

Raag Janasammohini राग जनसम्मोहिनी के महत्वपूर्ण बिंदु

न्यास के स्वर- रे , ग और प

समप्रकृति राग- राग कलावती

विशेषता

( 1 ) यह कर्नाटक पद्धति का राग है , किन्तु उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हो गया है ।

( 2 ) मोटे तौर से राग कलावती में रिषभ प्रयोग करने से इस राग की रचना हुई है । 

( 3 ) हिन्दुस्तानी पद्धति की दृष्टि से इसके पूर्वाग में कल्याण और उत्तरांग में झिंझौटी के मिश्रण से इस राग का जन्म हुआ । इसमें सा रे ग प रे , से शुद्ध कल्याण , सा रे ग प ग रे से भूपाली और प ध नि ध प ध सां , रें सां नि नि ध ऽ प , से झिंझौटी राग की छाया आती है , किंतु कोमल निषाद का प्रयोग और धैवत का बहुत्व दिखाने से शुद्ध कल्याण और भूपाली की छाया समाप्त हो जाती है और मध्यम के वर्जित होने से राग झिंझौटी का आभास मिट जाता है ।

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आलाप

1. सा नि ध प ध सा , रे ग प ग रे , ग प रे , सा ।

2. रे ग प , ग प ध नि ध प , नि ध प ग प , ध प ग प नि ध , सा रे ग प ध नि ध प , ग प ग रे , नि ध सा ।

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3. ग प ध नि ध सां , रे नि ध सां , ध सां रें गं रे सां , रे सां निध सां , नि नि ध ध प , गपधसां , नि ध प , ध प ग रे , ग रे सा नि ध सा ।

4. ग प ध नि ध प सां , ध सां रें सां , रे सांध सां रें गं रें सां , रें सां नि सां निनि ध प ध प ग प ध सां ऽ नि ध प , ग प ध नि ध प , ध प ग रे ग रे सा नि ध सा । 

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