Site icon सप्त स्वर ज्ञान

राग गोरख कल्याण का परिचय Raag Gorakh Kalyan

राग गोरख कल्याण

राग गोरख कल्याण सम सम्वाद द्वितीय रात्रि , ओडव षाडव मान ।

थाट खमाज मानत गुनि जन , गोरख राग बखान ।।

राग गोरख कल्याण बेहद ही मधुर राग है – यह राग खमाज थाट से उत्पन्न माना गया है । इसमें निषाद (नि) कोमल तथा शेष स्वर का शुद्ध रूप उपयोग करते हैं । आरोह में गंधार और पंचम वर्ज्य तथा अवरोह में केवल गन्धार वर्ज्य होने से इसकी जाति औडव – षाडव है । वादी स्वर षडज और सम्वादी मध्यम है । गायन – समय रात्रि का दूसरा प्रहर है । आरोह – सा मरम , सांधऽ नि ध सां । अवरोह – सां ध पध नि ध पम . रे म रे सा नि ऽ ध सा । पकड़- नि ध म , रे म रेसानि ऽध ऽ सा , रे म ।

राग गोरख कल्याण के प्रमुख बिंदु

न्यास के स्वर– सा , म और ध

समप्रकृति राग– दुर्गा और बागेश्वरी ( कुछ अंशों में )

विशेषता – (राग गोरख कल्याण)

( 1 ) नाम से ऐसा ज्ञात होता है कि यह कल्याण का एक प्रकार है , किन्तु स्वरूप में कल्याण से बिलकुल नहीं मिलता । इसलिए कुछ लोग इसे केवल गोरख के नाम से सम्बोधित करते हैं । प्रचार में गोरख मात्र से ही लोग इसे समझ लेते हैं । लेखक के मतानुसार इसे गोरख ही कहना चाहिये ।

Advertisement

( 2 ) इसमें दुर्गा और बागेश्री का संयोग है । ( 1 ) रे म , ( 2 ) प ध , और ( 3 ) ध प म , स्वर – समूह दुर्गा रागांग हैं और ( 1 ) म ध नि ध सां , ( 2 ) सां नि ध और ( 3 ) ध नि ध म , स्वर – समूह बागेश्री रागांग हैं । कुछ विद्वानों ने इसमें केदार रागांग भी माना है । 

( 3 ) कुछ विद्वानों ने इसे दुर्गा का एक प्रकार माना है ।

Advertisement
Advertisement

( 4 ) इसमें पंचम अति दुर्बल है । आरोह में तो वर्ण्य है और अवरोह में अति अल्प प्रयोग किया जाता है । कुछ विद्वानों ने अवरोह में पंचम की संख्या नहीं जोड़ा है और इसकी जाति ओडव – ओडव माना है ।

( 5 ) यह राग मन्द्र सप्तक में अधिक खिलता है । मन्द्र सप्तक में निषाद पर थोड़ा विश्रांति करना इस राग में बहुत सुन्दर तथा उपयुक्त है । मन्द्र नि पर रुकने से बागेश्वरी तथा दुर्गा रागों से अलग हो जाते हैं और गोरख का स्वरुप खिल उठता है ।

Advertisement

( 6 ) रे नि ध म तथा ध सां स्वर – संगतियों का प्रयोग इस राग में बाहुल्य है । उदाहरणार्थ आलाप देखें ।

( 7 ) कुछ विद्वानों ने वादी म और सम्बादी सा माना है , किन्तु दूसरी ओर गायन – समय रात्रि का दूसरा प्रहर माना है । अतः वादी – संवादी की दृष्टि से यह उत्तरांग प्रधान और समय की दृष्टि से पूर्वांग प्रधान राग होना चाहिये । वास्तविकता यह है कि गोरख पूर्वांग प्रधान राग है , इसलिये अधिकांश विद्वानों ने सा – म को वादी – सम्वादी माना है । म – स को वादी – सम्वादी मानने से इसे चलन और गायन – समय नियम का अपवाद मानना होगा ।

Advertisement

आलाप

1. सा , रेसानि ऽऽ ध सा , नि ध सा , रे नि ध सा , म ध ध नि ऽ ध सा ।

2. रे म रे सा निनिसासाध सा नि ध , मध मधनि ध ध, रे रे म ऽ रेसानि ऽध सा । 

3. सारे म , ध म , रे नि ध सा रे म , रे सा नि सा ध नि सा रे म , पधनि ध प म , म सांध सां ऽ ऽ धप म , रे म रे सा नि ऽ ध सा ।

4. म ध सांनि ध सां ऽ ऽ धसां , ध रें सां , मंरे रें सां ऽ रे मं धं मं रेंसानिऽध सां , नि ध म , रे म ऽ निम , रेमरेमरेसानि ऽ ध सा ।

Advertisement

राग विभास का परिचय Raag Vibhas ka Parichay

राग चन्द्रकौंस का परिचय Raag Chandrakauns

Advertisement

राग मालगुंजी का परिचय Raag Malgunji ka Parichay

सप्त स्वर ज्ञान से जुड़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद ।

Advertisement

Advertisement
Share the Knowledge
Exit mobile version