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लखनऊ घराना : तबला
लखनऊ घराना तबला भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली कत्थक के कलाकारों से जुड़ा प्रसिद्ध घराना है ।
- 18 वीं सदी के मध्य में दिल्ली पर नादिरशाह के आक्रमणों के फलस्वरूप मोहम्मदशाह रंगीले का मन संगीत की ओर से हटने लगा । और , इस कारण उनके दरबारी संगीतज्ञ दिल्ली छोड़कर अन्यत्र जाकर बसने लगे ।
- सिद्धार खाँ के दो पौत्र मोदू खाँ और बख्शू खाँ लखनऊ में आकर बसे तथा लखनऊ के नवाब आसिफुद्दौला के दरबार में राज्याश्रय प्राप्त किया । लखनऊ के नवाब रंगीन मिजाज होने के कारण शृंगारिक गायिकी तथा नृत्य के शौकीन थे । उस समय पखावज ही मुख्य ताल वाद्य था , जो ख्याल तथा शृंगारिक मधुरता गायन – शैली के अनुकूल नहीं था ।
- इस प्रकार सामयिक गायन शैली तथा स्थानीय संगीत की स्थिति के कारण तबला वादकों को वहाँ शीघ्र स्थान प्राप्त हुआ । इस प्रकार मोदू खाँ व बख्शू खाँ ने अपने वादन में बदलाव कर लखनऊ के स्थानीय सांगीतिक वातावरण , गीत एवं नृत्य के लिए उपयुक्त खुले बोल बन्दिशों की रचना की , इन्होंने ही दिल्ली के बन्द बोलों के स्थान पर नृत्य के लिए • उपयुक्त पखावज शैली का आधार लेकर तबला वादन में परिवर्तन किए तथा यही परिवर्तित वादन शैला लखनऊ घराने की शैली का आधार बनी तथा विख्यात हुई ।
लखनऊ घराना : तबला की वंश परम्परा
इस घराने की नींव रखने वाले उस्ताद मोदू खाँ और बख्शू खाँ थे । मोदू खाँ के वंशजों में मम्मू खा का नाम प्रमुख है । मम्मू खाँ के पुत्र मुहम्मद खाँ थे तथा इसके दो पुत्र बड़े मुन्ने खाँ और आबिद हुसैन खाँ हुए । इनमें बड़े मुन्ने हा के पुत्र वाजिद हुसैन खाँ हुए जो आबिद हुसैन खाँ के दामाद भी थे । वाजिद हुसैन खाँ के पुत्र अशफाक हुसेन खाँ उच्चकोटि के तबला वादक हए । अशफाक हुसैन खाँ के सुपुत्र इल्यास खाँ हुए । इस घराने के अन्य सप्रसिद्ध शिष्यों में आबिद हुसैन खाँ के शिष्यों में वीरू मिश्र , इन्दौर के जहाँगीर खाँ तथा कलकत्ते के हीरू गांगुली हैं ।
वादन की विशेषताएँ
लखनऊ घराना तबला वादन शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- लखनऊ बाज में मुक्त प्रहार से बजने वाले खुले बोलों का व्यवहार अधिक किया जाता है । अतः इस बाज में बजाई जाने वाली रचनाएँ जोरदार और गूंजदार होती हैं ।
- इस शैली में दाहिने तबले पर तर्जनी और मध्यमा अँगुली के साथ – साथ अनामिका अँगुली के प्रयोग का भी बहुत महत्त्व रहता है ।
- इसमें पखावज वादन शैली की भाँति गत , परन , टुकड़े चक्रदार तथा फरमाइशी चक्रदार आदि रचनाएँ बजाई जाती हैं ।
- इस बाज में कत्थक नृत्य के साथ बजाई जाने वाली रचनाओं का प्रभाव अधिक दृष्टिगोचर होता है ।
- इस बाज की मुख्य विशेषता है , चाँटी के स्थान पर स्याही का अधिक प्रयोग करना ।
- इसमें तबले के लव से विशेष ध्वनि निर्माण होता है ।
- दाएं हाथ की सभी अँगुलियों का प्रयोग किया जाता है ।
- बाएँ पर मीन्ड घसीट का प्रयोग होता है ।
- नृत्य के अनुसार लम्बी गतें एवं परनें , नौ हक्का , टुकड़े आदि विशेषताओं के साथ घेत , तगन्न , तकतक , धिड़ान , क्ड़ां आदि बोल प्रकारों का बाहुल्य होता है ।
उपसंहार / निष्कर्ष
उपसंहार इस प्रकार हम देखते हैं कि इस घराने में नृत्य के अंग संचालन के अनुसार बंदिशें, ठुमरी के लिए लग्गी लड़ियों का नया वादन आदि के कारण यहाँ तबले की अलग वादन शैली का प्रादुर्भाव हुआ तथा इस नई परम्परा के कारण इस वादन शैली को लखनऊ घराना कहा जाने लगा , जोकि न तो दिल्ली के समान बन्द था और न पखावज के समान थापिया वाला खुला था ।
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